बगीचे में बैठकर अख़बार पढ़ रहे आनंदराव के पास कौसल्या आई और चिड़चिड़ाते हुए अख़बार खींच लिया।
आनंदराव हैरानी से देखते हुए पूछा – “क्या हुआ?”
कौसल्या गंभीरता से बोली – “अर्जुन, प्रिया का भविष्य बारे में आपने कुछ सोचा है?”
आनंदराव आराम से कौसल्या के हाथ से अख़बार लेते हुए बोला – “इसी बारे में? तुम्हें ऐसे गुस्से में देखकर मैंने सोचा कुछ बड़ा हुआ है।” और फिर से अख़बार पढ़ने लगे।
इतने में अशोक आया और बोला – “पापा, सबको पैसे दे दिए।”
आनंदराव अख़बार पढ़ते हुए ही बोले – “ठीक है बेटा।” फिर अचानक याद आया – “वो रामकृष्ण अंकल की कार डिलीवरी आज ही है न?”
अशोक बोला – “हाँ पापा।”
“ठीक है, तुम जाकर समय पर डिलीवरी हो जाए इसका ध्यान रखना” – कहा आनंदराव ने।
अशोक “ठीक है पापा” कहकर वहाँ से चला गया।
कौसल्या उदास होकर आनंदराव की ओर देखते हुए बोली – “देखिए, अर्जुन अगर यहीं रहेगा तो प्रिया से कभी प्यार से नहीं रहेगा। कुछ समय के लिए उन्हें कहीं दूर भेज देते हैं। जब वे अकेले रहेंगे तो एक-दूसरे को समझेंगे।”
अर्जुन के प्रति कौसल्या का प्यार देखकर आनंदराव खुश हुए और बोले – “आईडिया अच्छा है, लेकिन अर्जुन मानेगा?”
कौसल्या शरारत से बोली – “आप कहेंगे तो मान जाएगा।”
आनंदराव चौंककर बोले – “मैं?” फिर कौसल्या को छेड़ते हुए बोले – “माँ ताई, मुझे अपने चालों में मत फँसाओ।” और अख़बार पढ़ने लगे।
कौसल्या ने अख़बार खींचकर गुस्से से कहा – “कहेंगे या अभी बताऊँ?”
आनंदराव ने गहरी सांस ली और बोले – “ठीक है, वो आए तो बात करूँगा।”
कौसल्या खुशी से बोली – “कहाँ भेजें?”
कुछ पल सोचकर आनंदराव बोले – “काकीनाडा वाले शोरूम को देखने भेज दें। ऐसे में तो जाएगा।”
कौसल्या ने आनंदराव के गाल पर किस किया और बोली – “मुझे पता था आप मानेंगे।” और हँसते हुए वहाँ से चली गई।
आनंदराव चारों ओर देखकर मुस्कुराए और फिर से अख़बार पढ़ने लगे।
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रात, डाइनिंग टेबल:
सभी डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खा रहे थे।
राधिका (रसोइया) और कौसल्या सबको परोस रही थीं।
कौसल्या आनंदराव को चिकन परोसते हुए इशारे में अर्जुन से कहने का संकेत दिया और फिर खुद सुभद्रा के पास बैठ गई।
सुभद्रा यह सब देख रही थी लेकिन कुछ समझ नहीं पा रही थी।
आनंदराव ने अर्जुन की ओर देखते हुए कहा –
“अर्जुन…”
अर्जुन ने सिर उठाकर देखा – “जी पापा।”
“काकीनाडा वाले हमारे शोरूम की सेल्स बहुत गिर रही है। तुम कुछ समय वहाँ रहकर देखो सुधार का कोई तरीका निकलता है या नहीं।”
प्रिया भी दर्द से थोड़ा दूर होने का मौका पाकर अंदर से खुश हुई।
अर्जुन बोला – “ठीक है पापा।”
आनंदराव बोले – “वहाँ गेस्ट हाउस की गंगा को बता दूँगा तुम आ रहे हो। प्रिया, तुम भी कल ही अर्जुन के साथ निकल जाओ।”
अर्जुन चौंक गया – “प्रिया…?”
प्रिया भी हैरान रह गई।
आनंदराव बोले – “हाल ही में शादी हुई है, अलग-अलग कैसे रह सकते हो? प्रिया, तुम्हारे ऑफिस वर्क में कोई दिक्कत तो नहीं होगी?”
प्रिया थोड़ी देर चुप रही और बोली – “कोई दिक्कत नहीं मामा। मैं वहाँ से ही काम कर लूँगी।”
आनंदराव बोले – “ठीक है, अशोक भी तुम्हारे साथ जाएगा। मदद करेगा।”
अर्जुन मजबूरी में सिर हिला दिया।
आनंदराव हाथ धोने चले गए।
सुभद्रा ने कौसल्या की ओर देखते हुए कहा – “ये सब तुम्हारा प्लान है न?”
अर्जुन ने यह सुन लिया और गुस्से से कौसल्या की ओर देखा।
कौसल्या डर गई और सिर झुका लिया।
अर्जुन गुस्से से बोला – “माँ!!”
कौसल्या ने सिर उठाकर कहा – “क्या है?”
अर्जुन गुस्से से बोला – “ये सब तुम्हारा प्लान है न?”
कौसल्या बोली – “हाँ, तो अब क्या कर लेगा?”
अर्जुन गुस्से में उठ खड़ा हुआ – “तुम बहुत बदल गई हो माँ।” और हाथ धोने चला गया।
कौसल्या और सुभद्रा हँस रही थीं।
अशोक को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
खाना खत्म होने के बाद, राधिका बर्तन उठा रही थी। तभी उसने देखा कि उसकी बेटी ज्योति दरवाज़े पर खड़ी रो रही थी।
राधिका डरते हुए उसके पास गई – “क्या हुआ बेटा?”
ज्योति कुछ नहीं बोली, बस रोती रही।
आनंदराव, अर्जुन, प्रिया सब घबरा गए।
अर्जुन ने ज्योति का हाथ पकड़ा – “तुम मुझे भाई कहती हो न? मुझ पर भरोसा करो, बताओ क्या हुआ।”
ज्योति रोते-रोते बोली –
“बहुत दिनों से हमारे कॉलेज का गाजुवाका कॉर्पोरेटर का बेटा भार्गव मुझे सोने के लिए तंग कर रहा है। अगर घर पर बताती तो माँ पढ़ाई छुड़ा देती, इसलिए चुप रही। आज कॉलेज में फेयरवेल पार्टी थी, मैं वॉशरूम गई तो उसने मुझे जबरदस्ती बंद कर दिया। मेरी पैंट उतार दी, और… एक के बाद एक सबने हाथ लगाया… अब और नहीं बता सकती।” और ज़ोर से रोते हुए अर्जुन को पकड़ लिया।
अर्जुन गुस्से से आँखें बंद कर लिया।
राधिका रोते हुए ज़मीन पर गिर पड़ी।
प्रिया ने उसे संभाला।
अर्जुन ने पूछा – “उस कॉर्पोरेटर का नाम?”
ज्योति रोते हुए बोली – “सूर्यनारायण।”
अर्जुन गुस्से से अशोक की कार की चाबी लेकर बोला – “चलो!”
कौसल्या डरते हुए – “अर्जुन!” पुकारती रही लेकिन अर्जुन नहीं रुका।
To be continued....