पिछली बार क्या हुआ था:
अनिरुद्ध ने दूसरे द्वार को पार किया और संज्ञा वन में प्रवेश किया — एक ऐसा जंगल जहाँ विचार ही शत्रु बन जाते हैं। द्वार ने उसे उसके अतीत के दर्द से सामना करवाया था लेकिन अब असली परीक्षा शुरू होने वाली थी
अब आगे:
हवा भारी थी। जंगल के हर पेड़ पर अजीब चिन्ह बने थे जो हल्की हरी आभा छोड़ रहे थे।
अनिरुद्ध चारों तरफ देख रहा था लेकिन यहाँ की खामोशी उसके भीतर डर भर रही थी।
ये जगह सामान्य नहीं है उसने धीरे से कहा।
जैसे ही उसने सोचा उसकी ही आवाज़ पेड़ों के बीच गूँज गई
सामान्य नहीं है सामान्य नहीं है
अनिरुद्ध चौंका। ये कैसा भ्रम है?
पेड़ों की छाल अचानक पिघलने लगी और उनमें से धुंध जैसी आकृतियाँ बाहर निकलने लगीं।
उन आकृतियों ने आकार लिया और अनिरुद्ध सन्न रह गया।
वो सब उसी की शक्लें थीं। दर्जनों अनिरुद्ध हर दिशा से उसे घेर रहे थे।
हम ही तेरा डर हैं उनमें से एक बोला।
तू सोचता है कि तू चुना हुआ है?
दूसरा बोला नहीं तू तो बस एक साधारण लड़का है, जिसे अपने अतीत से भागने की आदत है।
अनिरुद्ध ने पीछे हटते हुए कहा ये सब झूठ है।
पर उनमें से एक ने ठहाका लगाया
झूठ? तो क्या सच ये है कि तू अपनी माँ को ढूंढ ही नहीं पाया? सच ये है कि तू कमजोर है।
तू कभी उस शक्ति का वारिस नहीं हो सकता।
उनकी बातें जैसे तीर बनकर उसके सीने में उतर रही थीं।
उसके कानों में लगातार वही गूँज रहा था
कमज़ोर नाकाम अकेला
उसके घुटने कांपने लगे।
उसने आँखें बंद कर लीं।
पर तभी, उसके भीतर कहीं से एक स्वर उठा।
वही स्वर, जिसे उसने पहले भी सुना था वो रहस्यमयी स्त्री।
अनिरुद्ध
उसकी आवाज़ नरम थी, लेकिन दृढ़।
याद रखो शक्ति वो नहीं जो बाहर है। शक्ति वो है जिसे तुम मान लेते हो।
अनिरुद्ध ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं।
अब उसके सामने खड़े सारे अनिरुद्ध धुंधले लगने लगे।
उसने गहरी साँस ली और बोला
हाँ, मैंने अतीत खोया है। हाँ मैं डरता हूँ। लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा।
तुम मेरी परछाइयाँ हो और अब मैं तुम्हें स्वीकार करता हूँ।
और उसी पल उसकी हथेली में हल्की आग की चिंगारी जागी।
वो अग्निशक्ति थी वही शक्ति जिसे गुरु ने कहा था कि उसे जगाना होगा।
चिंगारी ने धीरे-धीरे लौ का रूप लिया और लौ ने जलती हुई तलवार का।
अनिरुद्ध ने उस तलवार को उठाया और एक ही वार में अपने सामने खड़े भय को चीर डाला।
एक-एक करके सारे नकली अनिरुद्ध धुएँ में बदल गए और गायब हो गए।
जंगल फिर से शांत हो गया।
नया रहस्य:
अचानक जंगल की ज़मीन कांपी।
पेड़ों के बीच एक और आकृति उभरी लंबा कद काले चोगे में लिपटा चेहरा छुपा हुआ।
उसकी आँखें लाल चमक रही थीं।
उसने भारी आवाज़ में कहा
अच्छा तो तूने अग्निशक्ति को छू ही लिया।
पर क्या तू जानता है कि ये शक्ति जितनी देती है उतनी ही छीन भी लेती है?
अनिरुद्ध ने तलवार कसकर पकड़ी। तुम कौन हो?
वो आदमी हँसा मैं तेरा दुश्मन नहीं
मैं तेरा ही भविष्य हूँ।
Hook Ending
संज्ञा वन की परीक्षा पूरी हो चुकी थी।
अनिरुद्ध ने अपने भीतर की अग्निशक्ति को जगाया लेकिन साथ ही उसने अपने सामने एक नया शत्रु पाया।
वो शत्रु जो दावा कर रहा था कि वही अनिरुद्ध का भविष्य है।
अब सवाल ये है
क्या अनिरुद्ध अपनी किस्मत खुद लिख पाएगा?
या उसका भविष्य पहले से ही किसी और ने तय कर दिया है?