बरसात के मौसम की एक काली रात थी। आकाश में बादल गरज रहे थे, और हवा में मिट्टी की गंध के साथ किसी अजीब-सी नमी घुली हुई थी। गाँव के किनारे एक सुनसान बाग़ था, जिसके बीचों-बीच एक टूटा-फूटा कुआँ था। बुज़ुर्ग कहते थे की “उस कुएँ के पास रात में मत जाना, वहाँ ‘चीरबत्ती’ जलती है…”
कहते हैं, कई साल पहले उसी कुएँ में एक औरत की लाश मिली थी, जिसने अपने गहनों और चूड़ियों के साथ छलांग लगाई थी। तब से, अमावस की रातों में वहाँ एक छोटी-सी लालटेन जैसी रोशनी जलती दिखती थी। लेकिन अजीब बात ये थी कि वह रोशनी किसी इंसान के हाथ में नहीं होती थी—वो हवा में तैरती, धीमे-धीमे पास आती…
उस रात रामेश गाँव से लौट रहा था। शॉर्टकट लेने के चक्कर में वो उसी बाग़ के रास्ते निकल पड़ा। बिजली चमकी तो उसने दूर कुएँ के पास एक टिमटिमाती रोशनी देखी।
पहले तो उसे लगा कोई मछुआ या चरवाहा होगा, पर जैसे ही वो पास आया… उसकी सांस अटक गई। वो चीरबत्ती ज़मीन से दो-तीन हाथ ऊपर तैर रही थी, और उसके पीछे अंधेरे में किसी के पायल की हल्की-सी छनक सुनाई दे रही थी।
रामेश पीछे हटने लगा, मगर रोशनी उसके तरफ़ खिसकने लगी। हर बार जब बिजली चमकती, रोशनी के अंदर से किसी औरत का पीला, सूजा हुआ चेहरा झलक जाता—जिसकी आँखें खून जैसी लाल थीं और होठों पर अजीब-सी मुस्कान।
अचानक हवा का एक तेज़ झोंका आया, और रोशनी उसके बिल्कुल सामने आ गई। उसी पल पायल की आवाज़ रुक गई… और एक फुसफुसाती हुई आवाज़ उसके कान के पास गूंजी—
"तू भी मेरे साथ चल… कुएँ में नीचे… बहुत अकेली हूँ मैं।"
अगली सुबह, गाँव वाले बाग़ में पहुँचे तो कुएँ के पास रामेश के जूते पड़े थे… और पानी पर तेल की हल्की परत तैर रही थी, जैसे कोई दीया अभी-अभी बुझा हो।
रामेश के गायब होने के बाद गाँव में किसी की हिम्मत नहीं हुई कि रात के वक्त उस बाग़ के पास जाए। लेकिन उत्सुकता के मारे एक दिन, जोगी नाम का ओझा वहाँ पहुंचा। उसके पास एक लोहे की छड़ी, नींबू-मिर्च और तांबे का कटोरा था। उसने तय किया कि वो उस चीरबत्ती का सच सामने लाएगा।
अमावस की रात, ठीक बारह बजे, जोगी कुएँ के पास पहुँचा। हवा बिलकुल थम चुकी थी। अचानक, बिना किसी आवाज़ के, कुएँ के ऊपर फिर वही रोशनी जल उठी धीमे-धीमे गोल-गोल घूमते हुए। जोगी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया, मगर उसकी आवाज़ कांपने लगी।
रोशनी हिलने लगी… और फिर उसके अंदर से एक औरत का आधा सड़ा हुआ चेहरा बाहर झांकने लगा आंखों के नीचे गहरे काले गड्ढे, बालों में गीली काई, और होंठों से टपकता गंदला पानी।
"क्यों बुलाया मुझे?" वो कराहती हुई आवाज़ हवा में फैल गई।
जोगी ने काँपते हाथ से छड़ी उठाई और नींबू-मिर्च रोशनी की तरफ फेंकी। पल भर में रोशनी बुझ गई… लेकिन अंधेरा और गहरा हो गया। तभी पीछे से पायल की छनक सुनाई दी....तेज़, और करीब आती हुई।
उसने मुड़कर देखा एक सफ़ेद साड़ी में भीगा हुआ शरीर, जिसका चेहरा छाया में छिपा था, धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ रहा था। जोगी ने मंत्र पढ़ते हुए भागना चाहा, लेकिन उसके पैर जैसे ज़मीन में धंस गए। औरत ने उसके कान के पास आकर फुसफुसाया,
"अब तू मेरे साथ रहेगा… हमेशा के लिए।"
अगली सुबह, कुएँ के पास किसी ने जोगी को नहीं देखा… सिर्फ़ लोहे की छड़ी आधी जंग लगी और तांबे का कटोरा पानी में तैर रहा था। और हाँ—तेल की हल्की गंध पूरे बाग़ में फैली हुई थी।
अब गाँव वाले कहते हैं पहले चीरबत्ती बस अमावस को आती थी… पर जोगी के बाद, वो किसी भी रात, किसी भी वक़्त जल सकती है। और अगर रोशनी तुम्हारी आँखों में पड़ गई… तो शायद तुम भी वापस न आओ।
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