Maharana Sanga - 12 in Hindi Anything by Praveen Kumrawat books and stories PDF | महाराणा सांगा - भाग 12

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महाराणा सांगा - भाग 12

पृथ्वीराज के विवाह की अनुमति 

राव सुरतान को टोडा की विजय का शुभ समाचार मिला तो वह प्रसन्नता से झूम उठा। बदनोर में उत्सव मनाया जाने लगा। जिस टोडा में राव सुरतान के भाई श्याम सिंह का शासन रहा था, वह बहुत समय तक अफगानों के अधीन रहा था और अब जाकर स्वतंत्र हुआ था। राव सुरतान को इससे भी बड़ी प्रसन्नता इस बात को लेकर थी कि उसकी पुत्री को मेवाड़ राजघराने की पुत्रवधू बनने का अवसर प्राप्त हुआ। राव सुरतान उसी समय अपने विश्वस्त सरदारों के साथ चित्तौड़ चल पड़ा था। उसे एक तो मृतक जयमल के चरित्र पर लगे मिथ्या कलंक को मिटाकर महाराणा से अपनी गलती की क्षमा माँगनी थी तथा दूसरे पृथ्वीराज और तारा के विवाह की बात भी करनी थी। 

चित्तौड़ पहुँचने पर राव सुरतान को विचित्र सी संकटपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ा। राजमहल पहुँचने से पहले ही किसी ने यह खबर फैला दी कि मेवाड़ के राजकुमार जयमल का हत्यारा आ गया। निश्चय ही यह कार्य सूरजमल का ही था, जो राव सुरतान के आने से घबरा गया था, क्योंकि वह सत्य को सामने नहीं आने देना चाहता था। इस समाचार ने प्रजा को भड़का दिया और राव सुरतान के दल को भीड़ ने घेर लिया। उग्र भीड़ कुछ भी करने पर उतारू थी। इससे राव सुरतान भयभीत हो गया। उसे लगा कि उसने वहाँ आकर गलती कर दी। इससे पहले कि भीड़ की उग्रता बढ़ती, वहाँ महाराणा रायमल का आदेश गूँज उठा। 

‘‘सुनो-सुनो! महाराणा का आदेश है कि आगंतुकों को किसी प्रकार की हानि न पहुँचाई जाए। जिसने भी राजाज्ञा का उल्लंघन किया, वह महाराणा के क्रोध का सामना करेगा। आगंतुक राव सुरतान इस समय मेवाड़ के अतिथि समान हैं।’’

 राव सुरतान के प्राण वापस लौटे और सूरजमल की चिंता बढ़ गई। अब उसे अपना भेद खुलने से रोकना था और यह काम बातें बनाकर भी किया जा सकता था। वह तत्काल राजमहल पहुँच गया और महाराणा से मिला। महाराणा ने उससे बाहर की स्थिति जानी।

 ‘‘महाराज, मैं तो राव सुरतान के चित्तौड़ में प्रवेश करते ही शंकित हो उठा था कि कहीं प्रजा उग्र न हो जाए और वही हुआ। यदि आपका आदेश न जाता तो मेवाड़ के माथे पर शरणागत की हत्या का कलंक लग जाता।’’ 

‘‘शरणागत!’’ 

‘‘हाँ महाराज, राव सुरतान अपने अपराध की क्षमा माँगने ही यहाँ आ रहे हैं। हो सकता है कि उनके पास कोई और भी विषय हो।’’

 ‘‘हूँ ऽऽऽ। उन्हें सम्मान सहित हमारे पास लाया जाए।’’ 

सूरजमल चाहता था कि वह उस वार्त्तालाप का साक्षी रहे और बात को बिगड़ता देखकर अपनी सफाई में कुछ कहे। वह राजमहल के मुख्य द्वार पर आ गया, जहाँ से राव सुरतान को लेकर महाराणा के पास आया। राव ने आते ही महाराणा के चरण पकड़ लिये। 

‘‘महाराणाजी! मुझ अपराधी को क्षमा करें। ऐसी गलतफहमी के कारण कुमार जयमल आज हमारे बीच नहीं रहे। मैं तुच्छ सा सरदार, जो आपकी दी हुई रियासत में जीवन निर्वाह करता हूँ, आज आपके सामने नत होकर किसी भी दंड के लिए सहर्ष तैयार हूँ।’’ राव सुरतान ने कहा। 

‘‘उठो सरदार, तुम वीर राजपूत हो, तुमने क्षत्रिय पिता होने का कर्तव्य निभाया है। हमें तुम पर गर्व है। क्षमाप्रार्थी तो हमें होना चाहिए, जो हमारे कुलकलंकी पुत्र ने आपकी पुत्री के साथ...।’’

 ‘‘नहीं महाराज! यह मिथ्या है! पूर्ण असत्य है! कुमार जयमल ने ऐसा कुछ भी नहीं किया और यह उन पर आरोप किसने लगाया, मैं नहीं जानता। सत्य यह है कि कुमार जयमल ने वीरोचित ढंग से मेरी पुत्री से प्रेम-निवेदन किया और विवाह का प्रस्ताव रखा। मेरी पुत्री के शर्त के विषय में आप भी जानते हैं। कुमार ने उस शर्त को पूरा करने का वचन दिया और वे मेवाड़़ की ओर लौटने लगे। मुझे भी ऐसी आकस्मिक और मिथ्या सूचना मिली थी तो मेरा क्रोध जाग गया। यद्यपि जब मैं कुमार का परिचय प्राप्त कर चुका तो मेरा क्रोध शांत हो गया, परंतु मेरे साथी सरदार रतन सिंह ने अविवेकी होकर बिना किसी को अवसर दिए कुँवर पर प्रहार कर दिया।’’ 

‘‘अर्थात्...अर्थात् हमारा पुत्र निर्दोष ही मारा गया। सूरजमल, हम यह क्या सुन रहे हैं?’’ महाराणा आश्चर्य से बोले।

 ‘‘महाराज, हमें ऐसी ही सूचना मिली थी। कुँवर के साथियों में से एक ने यही सूचना दी थी।’’ सूरजमल संतुलित स्वर में बोला, ‘‘किंतु अब प्रतीत होता है कि उन लोगों ने मिथ्या सूचना देकर हमें भ्रमित किया।’’ 

‘‘क्यों? उन्हें इससे क्या लाभ था?’’

 ‘‘यह तो वही जानें, मैं उन्हें शीघ्र ही आपके समक्ष प्रस्तुत करूँगा।’’

 ‘‘कहीं इसमें पृथ्वीराज का तो दोष नहीं?’’

 ‘‘हो सकता है।’’ सूरजमल ने बात लपकनी चाही।

 ‘‘कदापि नहीं महाराज!’’ राव सुरतान ने दृढता से कहा, ‘‘कुमार पृथ्वीराज ने तो वह किया, जो मेवाड़ की शान के अनुरूप है। उन्होंने अपने अनुज द्वारा मेरी पुत्री को दिए वचन को पूर्ण करने का बीड़ा उठाया और टोडा को अफगानों से मुक्त करके समस्त राजपूतों का गौरव बढ़ा दिया। उन्होंने अपने अनुज के प्रेम की वचनबद्धता को रखते हुए अपना भ्रातृदायित्व निभाया है।’’ 

महाराणा रायमल को एक विचित्र सी प्रसन्नता का अनुभव हुआ। सूरजमल के लिए यह सूचना नई थी। वह चिंतित हो उठा।

 ‘‘महाराज, मेरी पुत्री ने संकल्प लिया था कि जो वीर टोडा का उद्धार करेगा, वह उसी को वरण करेगी। कुमार जयमल ने वचन दिया, दुर्भाग्य आड़े आ गया, किंतु कुमार पृथ्वीराज ने अपने कुल के वचन का निर्वाह किया। अब वे तारा से विवाह के लिए आपसे आज्ञा चाहते हैं।’’

 ‘‘मु...मुझसे।’’ राणा बड़बड़ाए, ‘‘पृथ्वी इतना आज्ञाकारी, इतना कुलसेवक!’’

 ‘‘महाराज, कई बार नासमझी में या किसी बहकावे में आकर किशोर आयु में गलती हो जाए और व्यक्ति उसका प्रायश्चित्त कर ले तो फिर उसे क्षमा किया जा सकता है। मेवाड़ वैसे ही उत्तराधिकार के संकट से जूझ रहा है। आप वृद्धावस्था के द्वार पर खड़े हैं। ऐसे में मेवाड़ के भविष्य का क्या होगा?’’

 ‘‘तुम संभवतः सत्य कह रहे हो सरदार!’’ महाराणा ने कहा तो सूरजमल सन्न रह गया। ‘‘जब कुसमय आता है तो बड़े -बड़े विद्वान् भी अविवेकी हो जाते हैं। पृथ्वी तो उस समय किशोरवय ही था। उसे अपने अपराध का दंड मिल गया, परंतु मेवाड़ का तो कोई अपराध नहीं? उसे तो योग्य उत्तराधिकारी चाहिए। अब हमारे पास विकल्प भी नहीं है।’’ 

‘‘महाराज! कुमार पृथ्वीराज ने अपने अपराध के प्रायश्चित्त के लिए अपना जीवन राजहित में लगा दिया। गोंडवाड को भयमुक्त किया। देसरी पर मेवाड़ का अधिकार कराया और टोडा को राजपूती साम्राज्य में मिलाया। उनकी वीरता अद्वितीय है।’’ 

‘‘कुमार सूरजमल! तुम्हारा क्या कहना है?’’ महाराणा ने पूछा। 

‘‘महाराज, राव सुरतान का कहना सत्य है। इस समय मेवाड़ का हित इसी में है कि इसका योग्य उत्तराधिकारी घोषित किया जाए। कुमार पृथ्वी ने जो भी किया, उसका दंड वे भुगत चुके हैं। उन्होंने मेवाड़ के हित मे प्राणों की बाजी लगाई है। अतः क्षमा योग्य हैं।’’

 ‘‘हमारा भी यही विचार है। जो हो गया, उसे भूलकर मेवाड़ के हित में निर्णय करना ही उचित है। सरदार, हमारी ओर से राजकुमार पृथ्वी और ताराबाई के विवाह की अनुमति है। जो बीत गया उसे भुला दो।’’ महाराणा ने निर्णय लिया। ‘‘आप महान् हैं महाराणा!’’ राव सुरतान ने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा, ‘‘मुझ तुच्छ सरदार को ऐसा सम्मान देकर आपने अपना ऋणी बना लिया। मेरा जीवन धन्य हो गया।’’ 

‘‘विवाह की तैयारियाँ करो सरदार! अब मेवाड़ अपने निश्चय के बल पर इन अनहोनियों से बाहर आने को तैयार है। बहुत हो चुका कष्ट सहना। बहुत हो चुके दुर्भाग्य के प्रहार! हो सकता है कि राजकुमारी तारा के शुभागमन से ही इस राजमहल में खुशियाँ लौटें?’’

 राव सुल्तान ने आँखों में अश्रु भरकर प्रसन्नता प्रदर्शित की।

 ‘‘सूरजमल, मेवाड़ के उत्तराधिकारी की घोषणा करने की व्यवस्था करो। कुमार पृथ्वीराज के शुभ विवाह के अवसर पर सभी सरदारों और नरेशों को निमंत्रण भेजो, तभी हम यह घोषणा कर देंगे।’’ 

‘‘जो आज्ञा महाराज!’’ सूरजमल ने तत्परता से कहा। उसकी आँखों में ऐसी प्रसन्नता तैर रही थी, जैसे वह समाचार उसके लिए बहुप्रतीक्षित था, परंतु वही जानता था कि उसके हृदय में कैसी आग लग गई थी। इस स्थिति में उसका मन फूट-फूटकर रोने को कर रहा था। पिछले पाँच वर्ष से वह जिस उद्देश्य के लिए पासे-पर-पासे फेंक रहा था, वह अंत में उसी मोड़ पर आ गया था, जहाँ से चला था। इसे दुर्भाग्य की गति ही कह सकते हैं।

 ‘‘अब मुझे आज्ञा दीजिए महाराणाजी!’’ राव सुरतान ने कहा।

 ‘‘सरदार, यह विवाह इतनी धूमधाम से होना चाहिए कि इसकी चमक में मेवाड़ के पिछले पाँच वर्ष के सब कष्ट विलीन हो जाएँ।’’

 ‘‘ऐसा ही होगा महाराणाजी।’’

 राव सुरतान प्रसन्न होकर गए और सूरजमल को दुःखी कर गए। उस पर उसकी समस्त योजनाओं पर जैसे वज्र प्रहार हो गया था।

 ‘‘सूरजमल! अब हम किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते। राजकुमार पृथ्वी ने अफगानों को परास्त करके मेवाड़ की नई शक्ति का संकेत दे दिया है। अपने दूत भेजकर कुमार को चित्तौड़ आने का आदेश पहुँचाओ। उसके आने पर उसका भव्य स्वागत किया जाए।’’

 ‘‘जो आज्ञा महाराज, अब मेवाड़ में फिर से उत्सव होंगे।’’

 ‘‘माता चारणी ने अनुकंपा की है।’’

 महाराणा के इस आदेश से सूरजमल को कितने ही भय सता रहे थे।