Maharana Sanga - 11 in Hindi Short Stories by Praveen Kumrawat books and stories PDF | महाराणा सांगा - भाग 11

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महाराणा सांगा - भाग 11

साँगा के विरुद्ध गुप्त योजना 

कुँवर साँगा अब साधारण सैनिक न रह गए थे। राव कर्मचंद ने अपनी पुत्री का विवाह उनसे कर दिया था और अब वे एक भव्य महल में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। राजकार्यों में उनकी भूमिका बढ़ गई थी और व्यस्तता भी। अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहने वाले साँगा श्रीनगर के सैनिकों के लिए उदाहरण बन गए थे और उनकी प्रेरणा से सेना में उत्साह भी रहता था। कई बार उनके साथी सैनिक उनके इस उत्थान पर आश्चर्यचकित रह जाते थे कि कैसे एक साधारण सैनिक अपने पराक्रम और निष्ठा से राजा का जामाता बन गया था। अभी राव कर्मचंद, उनकी महारानी और साँगा की पत्नी के अतिरिक्त कोई नहीं जानता था कि वे मेवाड़ के राजकुमार संग्राम सिंह हैं। 

सदैव से जैसा कि राजशाही में होता आया है कि किसी की प्रगति किसी-न-किसी को सीमा से अधिक अखरने लगती है। श्रीनगर के सेनापति और कुछ अन्य सरदारों को कुँवर साँगा का यह राजनीतिक उत्थान काँटे की तरह चुभने लगा था। एक साधारण सैनिक, एक आँख से विहीन युवक राव कर्मचंद का इतना विश्वास और अनुराग उन्हें विचलित कर रहा था। 

‘‘कैसी विडंबना है कि हम महाराज की सेवा में वर्षों से लगे हुए हैं और वह अर्द्धनेत्र सैनिक हमारे देखते-ही-देखते हमें आदेश देने वाला बन गया। अब हम अपने पदों पर अवश्य हैं, यह भी एक जीवन है।’’ सेनापति हताशा से बोला।

 ‘‘भाग्य प्रबल हो तो रंक भी राजा बन जाता है। उस कुँवर सिंह ने श्रीनगर का कायाकल्प तो अवश्य ही किया है, परंतु इतना बड़ा पुरस्कार मिला, इसका तो हमें बहुत आश्चर्य है। राजकुमारी बालकुँवर इतनी सुंदर हैं, फिर भी महाराज ने उनका विवाह उस एक नेत्र विहीन से कर दिया।’’

 ‘‘आश्चर्य तो यह कि महाराज की बुद्धि पर भ्रम का परदा पड़़ा तो पड़ा, अन्य किसी ने भी इसका विरोध न किया। राजकुमार अपनी बहन को कितना स्नेह करते थे और जब उनका विवाह एकनेत्री युवक से कर दिया गया तो कैसे प्रसन्न दिखाई देते थे, जैसे कामदेव उनका बहनोई बन गया हो।’’ 

‘‘मुझे तो इस बात में कोई भेद लगता है कि यह कुँवर सिंह वास्तव में कोई ऐसा राजपुत्र है, जिससे वैवाहिक संबंध स्थापित करने में राव कर्मचंद को अपना सम्मान बढ़ता दिखाई दिया है।’’

‘‘इन सब बातों से हमें क्या लेना?’’ सेनापति खीझकर बोला, ‘‘हमारी समस्या तो अपदस्थ होने की है। हम अब अपने पदों पर नाममात्र को रह गए हैं और यही स्थिति रही तो एक दिन हमारी आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। हो सकता है कि हमें साधारण सैनिक ही बना दिया जाए।’’

 ‘‘इसमें हम कर भी क्या सकते हैं? जिस व्यक्ति की शारीरिक अपूर्णता को जानकर महाराज ने उसे अपनी पुत्री दे दी, वह साधारण तो नहीं है। उसका बल और बुद्धि हम देख ही चुके हैं। यदि अब हम उसके विरुद्ध चलते हैं तो जो हमारे पास अब है, वह भी न रहेगा। ऐसी मूर्खता क्यों की जाए?’’

 ‘‘तो प्रतीक्षा कीजिए कि एक दिन हम लोगों को सेवा से निवृत्त कर दिया जाए और वह कुँवर सिंह इस श्रीनगर का स्वामी बन जाए ।’’ 

‘‘ऐसा होना कैसे संभव है? श्रीनगर के दो उत्तराधिकारी हैं। अभी तो महाराज ही हैं और उनके दो पुत्र भी हैं। उनके होते श्रीनगर का शासक कुँवर सिंह क्यों?’’

 ‘‘ऐसे बुद्धिमान और वीर की महत्त्वाकांक्षाएँ साधारण नहीं होतीं। जो एक ग्वाले के नौकर से एक राज्य का जामाता बन गया, वह क्या महत्त्वाकांक्षा नहीं पालता होगा? देख लेना, एक दिन वह कुँवर सिंह ही इस रियासत का राजा होगा।’’ 

‘‘यह व्यर्थ का विचार है। हाँ, यह सही है कि उसके बढ़ते प्रभाव से हमारा सम्मान अवश्य कम होता जाएगा। इस विषय में कुछ सोचने की आवश्यकता है।’’ 

‘‘इसका एक उपाय तो मेरी समझ में आ रहा है।’’ एक सरदार ने कहा, ‘‘जहाँ तक मैं समझता हूँ कि यह कुँवर सिंह अपना वास्तविक परिचय दो कारणों से छुपा सकता है। एक तो यह कि उसे किसी से प्राणों का भय है। अब हमें यही पता लगाना चाहिए कि वास्तविकता क्या है? देख लेना, इसकी पोल खुलते ही यह यहाँ से भाग खड़ा होगा और हम निश्चिंत हो जाएँगे।’’ 

‘‘इतने बड़े देश में यह पता लगाना बड़ा कठिन होगा।’’ 

‘‘असंभव तो नहीं होगा। प्रयास किया जाए तो सफलता मिल सकती है।’’ 

‘‘उचित दिशा में प्रयास करने चाहिए। अपने विश्वस्त गुप्तचरों को राजपूताने में भेजते हैं, जिससे अवश्य ही कुछ पता चलेगा।’’ 

‘‘गुप्तचरों को इसका हुलिया ठीक से पता हो या हमें किसी चित्रकार से इसका चित्र बनवा लेना चाहिए। यह सबसे उचित रहेगा।’’ 

‘‘और यदि यह किसी राज्य का अपराधी निकले तो तत्काल उस राजा को हम सूचना देंगे। कुछ पुरस्कार भी मिल सकता है और हमारा मनोरथ भी सिद्ध होगा।’’ 

‘‘और यदि किसी का परम शत्रु हुआ तो हमें ही लाभ होगा।’’ 

सबने मिलकर यह योजना बना ली कि कुँवर सिंह की वास्तविकता जान ली जाए। सेनापति को इस योजना का सूत्रधार कहा जाए तो गलत न होगा, क्योंकि सबसे अधिक वही कुँवर सिंह से ईर्ष्या रख रहा था। सबने मिलकर विश्वस्त गुप्तचरों का एक दल तैयार कर लिया।