कुँवर जयमल का अंत
बदनोर के सरदार राव सुरतान को एक गुप्तचर ने यह सूचना दे दी की कि राजकुमारी के राजसी उद्यान में एक अपरिचित युवक ने सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताकर प्रवेश किया और अंदर जाकर राजकुमारी आदि कन्याओं से अभद्रता करके भाग गया। इतना सुनते ही राव सुरतान के नेत्र क्रोध से जल उठे और वह काँपता हुआ उठ खड़ा हुआ।
‘‘इतना दुस्साहस! किसने किया?’’
‘‘ज्ञात नहीं हो सका महाराज! वह किसी राज्य का राजकुमार लगता था। उसके साथ कई और सशस्त्र सैनिक थे। उन्हीं सशस्त्र सैनिकों ने उद्यान प्रहरियों को कुछ समय के लिए बंदी बना लिया और वह राजकुमार सा दिखने वाला युवक उद्यान में प्रवेश कर गया।
‘‘सरदार रतन सिंह!’’ राव सुरतान दहाड़ उठा तो कुछ ही क्षण पश्चात् बदनोर का प्रमुख सुरक्षा सलाहकर रतन सिंह आशंकित होता हुआ उपस्थित हुआ।
‘‘महाराज, क्या हुआ? आप...आप इतने क्रोध में?’’
‘‘सरदार रतन सिंह! हमने अपनी पुत्री तारा की सुरक्षा व्यवस्था के लिए आपको नियुक्त किया था। उसके लिए राजसी उद्यान में किसी प्रकार का कष्ट न हो, ऐसी सुदृढ व्यवस्था करने का दायित्व आपका था और आज एक अपरिचित, कुछ सैनिकों के साथ न केवल उद्यान में प्रवेश कर गया, अपितु हमारी पुत्री से अभद्रता भी की। बदनोर के सम्मान को कोई अँगूठा दिखा गया!’’
‘‘गुप्तचर! वह दुष्ट किधर गया है? महाराज, आप निश्चिंत रहें, उस दुस्साहसी का कटा सिर आपके चरणों में होगा, अन्यथा सरदार रतन सिंह आपको अपना मुख नहीं दिखाएगा।’’ रतन सिंह भी अत्यंत क्रोध में आ गया।
‘‘हम उस दुष्ट का शीश अपने हाथों से काटेंगे रतन सिंह, अन्यथा हमारे हृदय को शांति नहीं मिलेगी। चलो, शीघ्र चलो।’’ राव सुरतान ने कहा।
तत्काल अपने अश्वों पर सवार होकर राव सुरतान, सरदार रतन सिंह और सैन्य सरदारों के साथ अश्वसेना चल पड़ी। रतन सिंह के आदेश पर अश्वारोहीयों ने चारों दिशाओं को घेरते हुए शीघ्र ही एक सरोवर के निकट विश्राम करते जयमल और उनके सैनिकों को घेर लिया। जयमल के सैनिक उन सभी अश्वारोहियों को मारकर वहाँ से आगे बढ़ने का समर्थन कर रहे थे।
‘‘कोई आवश्यकता नहीं।’’ जयमल ने कहा, ‘‘हम यहाँ प्रेम करने आए थे, युद्ध करने नहीं। राव सुरतान को आने दो, हमारा परिचय जानकर उनका क्रोध अवश्य ही दूर हो जाएगा।’’
जयमल के सैनिक आश्वस्त नहीं थे, परंतु उनकी आज्ञा टाल भी नहीं सकते थे। कुछ देर बाद आगबबूला होता हुआ राव सुरतान भी आ गया।
‘‘बदनोर के सरदार को मेवाड़ के भावी राजा जयमल सिंह का प्रणाम।’’ राव सुरतान का क्रोध तो ऐसा लगा, जैसे कम हुआ था, परंतु सुरक्षा प्रमुख रतन सिंह की क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगा था तो वह कैसे चुप रहता?
‘‘तेरा दुस्साहस कैसे हुआ नराधम कि बदनोर की राजकुमारी से अभद्रता करे?’’
‘‘अपनी जिह्वा सँभाल!’’ जयमल को एक सुरक्षा प्रमुख की यह गरमी असहनीय हो रही थी, ‘‘जब दो राजा बात कर रहे हों तो सेवकों को बीच में बोलने की अभद्रता नहीं करनी चहिए।’’
रतन सिंह तो पहले ही आपे से बाहर था, इस कथन पर उसके क्रोध ने अपनी सीमा पार कर ली। उसने अपना भाला निकालकर जयमल को लक्ष्य करके पूरे वेग से दे मारा। सबकुछ इतना क्षणिक हुआ कि किसी को कुछ कहने-सुनने या करने का अवसर नहीं मिला। भाले ने जयमल के सीने में अपना स्थान बनाया और आर-पार हो गया। जयमल एक तीव्र चीख और विस्फरित नेत्रों से घुटनों के बल जमीन पर टिका और कुछ देर स्थिर सा होकर आगे को लुढ़क गया। उसके साथी हतप्रभ थे। ऐसी आशंका तो उन्हें बराबर थी, परंतु इतनी त्वरित प्रतिक्रिया की नहीं।
‘‘महाराज! आपका अपराधी आपके समक्ष शव बना पड़ा है।’’ रतन सिंह ने फुफकारकर कहा, ‘‘मेरी सुरक्षा व्यवस्था को बलपूर्वक भेदकर इस पापी ने अपनी मृत्यु पर हस्ताक्षर कर दिए थे।’’
राव सुरतान अभी कुछ समझने की स्थिति में नहीं था। तभी वहाँ घोडे़ पर सवार अपनी सखी-सेना के साथ बदहवास सी राजकुमारी तारा आ गई। उसने विस्फारित नेत्रों से जयमल के मृत शरीर को देखा और घोडे़ से कूद पड़ी।
‘‘यह...यह आपने क्या किया पिताश्री! अकारण ही मेवाड़ से शत्रुता मोल ले ली। यह मेवाड़ के भावी राणा जयमल सिंह थे, जो मुझसे इकतरफा प्रेम करते थे और मेरी शर्त पूरी करने का वचन देकर मेवाड़ जा रहे थे। इन्होंने केवल यही तो अपराध किया था कि ये वर्जित उद्यान में प्रवेश कर गए। इनके अतिरिक्त इस राजपूताने में और कौन ऐसा सामर्थ्यवान था, जो अफगानों से टोडा को मुक्त करा सकता! ऐसे वीर पुरुष को आपने...।’’
‘‘मैंने नहीं...मैंने नहीं पुत्री!’’ राव सुरतान हड़बड़ा गया, ‘‘रतन सिंह ने...।’’
राजकुमारी तारा की भृकुटि तन गई और उसने आन-ही-आन में अपनी तलवार निकालकर रतन सिंह का सिर घड़ से कलम कर दिया। थोड़ी ही देर में क्या से क्या हो गया था!
जब कुँवर जयमल की मृत्यु की सूचना कुंभलगढ़ पहुँची तो वहाँ हाहाकार मच गया।
महाराणा रायमल ने कुँवर की मृत्यु का समाचार सुना तो उनका कलेजा मुँह को आ गया। मेवाड़ पर यह कैसा वज्रपात हुआ था! जयमल बदनोर क्यों गया था? वहाँ एकाएक उसने ऐसा क्या कर दिया था कि उसकी हत्या कर दी गई? मेवाड़ के सामने बदनोर के राजा सुरतान की क्या हस्ती थी? राणा कुल की दी हुई रियासत के सरदार ने इतना भी भय न माना कि मेवाड़ के उत्तराधिकरी को समाप्त कर दिया। महाराणा को इन प्रश्नों के उत्तर सूरजमल ने न दिए होते तो निश्चय ही उनकी तलवार म्यान से बाहर होती और बदनोर का विध्वंस हो जाता।’’
‘‘महाराज! कुमार जयमल ने राजपूती मर्यादा का उपहास उड़ाया था।’’ सूरजमल ने महाराणा को बताया, ‘‘वे अपने साथियों के साथ गुप्त रूप से बदनोर गए थे और वहाँ की राजकुमारी तारा का अपहरण करने का प्रयास कर रहे थे। राजपूत सरदार ऐसा कैसे सहन करता, युद्ध छिड़ गया और...।’’
‘‘जयमल ने ऐसा क्यों किया?’’ महाराणा आहत हो उठे, ‘‘यदि उसे तारा ही चाहिए थी तो हमसे कहता! राव सुलतान का क्या साहस था कि वह मेवाड़ के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने से इनकार कर देता? वह तो ऐसा प्रसन्नता से करता।’’
‘‘यही तो मेरी समझ में नहीं आया महाराज! जयमल ने अवश्य ही कुमारी तारा की सुंदरता के चर्चे सुने होंगे और वह उस पर मोहित हो गया होगा। उसने समझा होगा कि अब वह मेवाड़ का उत्तराधिकारी है और उचित-अनुचित कुछ भी करे, उसे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है।’’ जयमल के प्रति सूरजमल के स्वर में सम्मान के भाव लुप्त होने लगे थे।
‘‘संभवतः यही अहंकार ले डूबा उस मूर्ख को! वह भूल गया कि राजपूत अपनी मान-मर्यादा की रक्षा में मृत्यु से भी टकराने में संकोच नहीं करते। राव सुरतान की भी क्या गलती! यदि हम उसके स्थान पर होते तो हम भी यही करते। मेवाड़ का दुर्र्भाग्य, घोर दुर्भाग्य! ईश्वर ने न जाने किन कर्मों का दंड दिया है?’’
‘‘महाराज! सेना में रोष व्याप्त है। आपके आदेश भर की प्रतीक्षा है। बदनोर का कण-कण बिखेर दिया जाएगा।’’
‘‘उस कन्याहरण करनेवाले जयमल के लिए किसी की मान-मर्यादा को अपनी शक्ति के मद में चूर करने का प्रयास करनेवाले के लिए, नहीं कुमार सूरज। यह तो अनुचित होगा...मेवाड़ का अहंकार-प्रदर्शन होगा और अन्याय सिद्ध होगा।’’
‘‘मेरे लिए क्या आदेश है महाराज?’’
‘‘हमें इस समय एकांत चाहिए। अभी हम कोई निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं। बड़ा ही अशुभ समय चल रहा है। मेवाड़ की शक्ति निरंतर क्षीण हो रही है।’’ महाराणा का स्वर जैसे गहरे अंधकूप से आ रहा था, ‘‘कहीं इस राजकुल का विनाशकाल तो नहीं चल रहा है? जाओ सूरज, इस समय हमें अकेला छोड़ दो।’’
सूरजमल मुदित मन से वहाँ से चला गया।