The First Rain of College Days in Hindi Love Stories by Abhay Marbate books and stories PDF | कॉलेज की वो पहली बारिश

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कॉलेज की वो पहली बारिश

"कॉलेज की वो पहली बारिश"

लेखक: Abhay marbate 

> "कुछ यादें किताबों में नहीं मिलतीं, वो कॉलेज की गलियों में मिलती हैं..."



पहला दिन – पहली नज़र

साल का जुलाई महीना था। बारिश की फुहारों के बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज का पहला दिन। मैं, अविनाश, गाँव से आया एक सिंपल लड़का, जो बस अपने सपनों को सच करने शहर आया था। सब कुछ नया-नया था – बड़े-बड़े क्लासरूम, अनजाने चेहरे, और तेज़ भागती ज़िंदगी।

वहीं उसे पहली बार देखा – काव्या।

लाल रेनकोट में, हाथ में छतरी लिए, कॉलेज के गेट से अंदर आती हुई। उसकी मुस्कुराहट बारिश की बूंदों से भी ज़्यादा ताज़ा थी। जैसे हर चीज़ थम सी गई हो। मैं उसे बस देखता ही रह गया।


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दूसरे दिन – दोस्ती की शुरुआत

दूसरे दिन लाइब्रेरी में वही लड़की दिखी। मैं पास गया, और हिम्मत करके बोला:

"हाय, मैं अविनाश... न्यू एडमिशन।"

उसने मुस्कुराकर जवाब दिया, "मैं काव्या। और मैं भी।"

बस वही से दोस्ती की शुरुआत हुई। लंच ब्रेक साथ में, नोट्स शेयर करना, कैंटीन में समोसे खाना – सब कुछ धीरे-धीरे खास बनने लगा।


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तीसरा हफ्ता – एहसास का नाम

हम अब अच्छे दोस्त बन चुके थे। पर दिल के किसी कोने में कुछ और भी था, जो दोस्ती से ज़्यादा था।

एक दिन क्लास के बाद काव्या बोली, "अविनाश, क्या तुमने कभी किसी को पसंद किया है?"

मैं थोड़ा घबरा गया, लेकिन झूठ नहीं बोल सका।

"हाँ... शायद कर रहा हूँ।"

वो हँसते हुए बोली, "मैं भी।"

हम दोनों मुस्कराए, लेकिन नाम किसी ने नहीं लिया।


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पहली बारिश – पहला इज़हार

एक दिन बारिश हो रही थी। कॉलेज कैंपस भीग रहा था। सारे स्टूडेंट्स क्लासरूम में थे, लेकिन मैं और काव्या बाहर बेंच पर बैठे थे।

मैंने कहा, "काव्या, क्या हम हर बारिश साथ में बिताया करेंगे?"

वो बोली, "अगर तुम हर बार समोसे और चाय लाओगे, तो हाँ।"

मैंने हँसते हुए कहा, "डील। पर एक शर्त है..."

"क्या?"

"तुम हमेशा मेरी जिंदगी में रहोगी?"

काव्या थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, "हाँ अविनाश।"


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समय का मोड़ – दूरी की दीवार

सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन जिंदगी हमेशा सीधी नहीं चलती।

काव्या के पापा की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उसे वापस अपने शहर लौटना पड़ा। आखिरी दिन वो बिना बताए चली गई। न कोई गुडबाय, न कोई नोट।

मैं हफ्तों तक परेशान रहा। उसकी यादें हर कोने में थीं – कैंटीन की टेबल, लाइब्रेरी की खामोशी, और वो बेंच, जहाँ हम साथ भीगे थे।


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एक साल बाद – फिर वही बारिश

डिग्री का आखिरी साल चल रहा था। मैं अब थोड़ा परिपक्व हो चुका था। दिल में अब भी उसका नाम था, लेकिन ज़ुबान पर नहीं।

एक दिन, फिर वही बारिश हुई।

मैं वही बेंच पर बैठा था, और तभी पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई:

"समोसे और चाय तो लाए हो ना?"

मैं पलटा – वही रेनकोट, वही मुस्कान, और वही काव्या।

मैं कुछ बोल नहीं पाया, बस उसकी आँखों में देखता रहा।

वो बोली, "माफ़ करना अविनाश, बिना बताए चली गई थी। पर एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब तुम्हें मिस न किया हो।"

मैंने कहा, "अब मत जाना।"

वो धीरे से बोली, "अब हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी, हर बारिश में।"


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अंत – नई शुरुआत

कॉलेज की आखिरी बारिश में हमने एक-दूसरे का हाथ थामा। प्यार, जो पहली बारिश में शुरू हुआ था, अब जिंदगी भर के साथ में बदल चुका था।

कॉलेज खत्म हो गया, पर कहानी नहीं...

> "कभी-कभी प्यार वही होता है, जो सबसे पहले हुआ था। और अगर वो वापस लौट आए, तो समझो किस्मत भी मुस्कुरा रही है।"