पिछली बार क्या हुआ था:
अनिरुद्ध की बंद आंखों के सामने जब एक चमकदार नीली रेखा उभरी और उसने प्रथम द्वार पार किया तो उसकी चेतना जैसे किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गई। वहाँ न समय था न जगह बस गूंजते शब्द थे एक पुराना रहस्य, और एक छवि एक रहस्यमयी स्त्री जो उसे उसी की तरह देख रही थी।
इस बार
आँखें खोलो अनिरुद्ध
ये स्वर उसके कानों में हल्के से गूंजे, जैसे हवा में फुसफुसाहट हो। अचानक, उसकी पलकों ने हरकत की और उसके सामने एक बिल्कुल ही नई दुनिया खुल गई।
वह अब किसी साधारण जगह पर नहीं था। चारों ओर हल्की नीली रोशनी फैली थी और ज़मीन पर अजीब सी चमकती लकीरें बन रही थीं जैसे किसी रहस्यमयी मन्त्र को ज़मीन पर खुद उकेरा गया हो। और उसके सामने खड़ा था एक द्वार।
पर ये कोई सामान्य द्वार नहीं था।
ये जीवित लग रहा था। साँस लेता हुआ स्पंदित होता हुआ। द्वार पर प्राचीन लिपियों से उकेरे गए चिन्ह थे जिनमें से कुछ धीरे-धीरे अनिरुद्ध की आँखों के सामने चमकने लगे।
उसने खुद से बुदबुदाया ये है दूसरा द्वार?
पीछे से एक आवाज़ आई वो आवाज़ जो उसने पहले भी सुनी थी।
नहीं अनिरुद्ध ये द्वारमंथन है। असली परीक्षा की शुरुआत।
वो मुड़ा और देखा कि वही वृद्ध गुरु जो उसे पहले द्वार की यात्रा में मिले थे अब फिर उसके सामने खड़े थे। पर इस बार उनका स्वर गंभीर था और आँखें तेज़।
तुम्हें ये द्वार पार करना होगा लेकिन इससे पहले तुम्हें अपने अतीत की परतों से गुजरना होगा।
अनिरुद्ध चौंका। मेरा अतीत? पर क्यों
गुरु बोले क्योंकि जो अपने अतीत से आँख नहीं मिला सकता वो भविष्य के रहस्यों को सँभाल नहीं सकता।
और तभी द्वार के बीचोंबीच एक धुंधली सी परछाईं बनने लगी। वह धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगी और अनिरुद्ध का दिल कांप गया।
वो उसकी माँ थी।
लेकिन वो जैसी उसे याद थी वैसी नहीं उसकी आँखों में आँसू थे चेहरा थका हुआ और होंठों पर एक सवाल:
क्यों छोड़ा मुझे अनिरुद्ध
ये ये झूठ है! अनिरुद्ध चीखा।
नहीं गुरु बोले ये तुम्हारे मन की वो परछाई है जिससे तुम भागते रहे हो। इस द्वार को पार करने के लिए तुम्हें उसे स्वीकार करना होगा।
अनिरुद्ध की साँसे तेज़ हो गईं। उसकी माँ बचपन में ही उसे छोड़कर कहीं चली गई थीं। उसने हमेशा यही माना कि किसी मजबूरी में गई होंगी। लेकिन अब द्वार उसे उसके ही डर से सामना करवा रहा था।
क्या तुम सच में तैयार हो गुरु ने पूछा।
अनिरुद्ध ने अपने भीतर झाँका दर्द था ग़ुस्सा था सवाल थे पर उसके साथ एक दृढ़ संकल्प भी था।
हाँ उसने धीरे से कहा मैं जानना चाहता हूँ। मैं सच्चाई से भागना नहीं चाहता।
और जैसे ही उसने वो स्वीकार किया, द्वार की लकीरें एक बार फिर चमकने लगीं। हवा में एक तीव्र कंपन हुआ और उसके सामने की परछाई गायब हो गई।
अब द्वार पूरी तरह खुल गया था।
पर उसके पार क्या था
जब वह उस रौशनी से भरे द्वार में कदम रखने ही वाला था गुरु ने उसे रोका।
रुको अनिरुद्ध उन्होंने कहा। दूसरे द्वार के पार संज्ञा वन है। वहाँ तुम्हें अपने सबसे प्रबल भय का सामना करना होगा। वहाँ तुम्हारे विचार तुम्हारे शत्रु बन सकते हैं।
और यदि मैं हार गया?
तो तुम खुद को खो दोगे हमेशा के लिए।
अनिरुद्ध के हाथ काँपे लेकिन उसने अपना पैर आगे बढ़ा दिया।
क्योंकि अब वह सिर्फ उत्तर नहीं चाहता था वह जानना चाहता था कि कौन उसे पुकार रहा है। क्यों उसके सपनों में वही स्त्री बार-बार आती है। और क्यों उसके खून में वो शक्ति उबाल मार रही है जो कभी किसी को नहीं मिली।
वह द्वार पार कर गया।
अगला दृश्य
वह अब एक घने रहस्यमय जंगल में था। हर पेड़ की छाल पर कुछ लिखा था। जैसे हर पत्ता, हर झाड़ी कुछ कह रही थी। और तभी हवा में एक सुरीला लेकिन डरावना स्वर गूंजा
अनिरुद्ध क्या तुम तैयार हो अपने सच्चे रूप से मिलने के लिए?
Hook
द्वार पार हो चुका है लेकिन रहस्य अब गहराने वाला है।
जहाँ विचार बनेंगे हथियार, और अतीत देगा ज़ख़्मों की सौगात।
क्या अनिरुद्ध खुद से लड़ पाएगा या संज्ञा वन उसे निगल जाएगा
और वह रहस्यमयी स्त्री आखिर है कौन
शुरू होने वाला है आत्मा और शक्ति का असली युद्ध!