Khoon ki Tika - 7 in Hindi Crime Stories by Priyanka Singh books and stories PDF | खून का टीका - भाग 7

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खून का टीका - भाग 7

पार्ट 7 – चौथा साया

(“तुम… तुम तो पापा के…!”)

अवनि की चीख पूरे कमरे में गूंज गई। सामने खड़ा आदमी अब पूरी रोशनी में था — चुभती आँखें, झुका हुआ चेहरा और माथे पर हल्का सा टीके का निशान।

अवनि के मुँह से धीरे से निकला —
"ये… ये तो पापा के जुड़वा भाई हैं!"

माँ काँप उठीं। "नहीं... नहीं अवनि… इसे मत पहचानो। ये वही है जो तुम्हारे पापा के पीछे पूरी ज़िंदगी पड़ा रहा।"

आदमी धीरे-धीरे आगे बढ़ा और खंजर को ज़मीन पर रख दिया। उसकी आवाज़ एकदम शांत, लेकिन अंदर से ज़हर भरी थी –
“इतने सालों बाद आज फिर वही हवेली… वही बदबू… और वही खेल।”

अवनि हिम्मत जुटाकर बोली –
“अगर आप पापा के भाई हैं, तो आपने सब कुछ क्यों छिपाया? आप इतने साल कहाँ थे?”

वो हँसा – एक लंबी, डरावनी हँसी।
“मैं छिपा नहीं था अवनि… मैं सज़ा काट रहा था… उस गुनाह की जो मैंने नहीं किया।”

माँ गुस्से में चिल्लाईं –
“गुनाह? तुम्हारा गुनाह तो उस दिन शुरू हुआ जब तुमने हवेली की पूजा में पहली बार इंसान का खून बहाया था!”

वो आदमी एकदम गंभीर हो गया।
“मैंने खून बहाया था… पर मजबूरी में। और उस दिन की असली शुरुआत… तुम्हारे पति ने की थी – तुम्हारे पापा ने।”

कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया।

अवनि की सांसें तेज़ हो गईं – “पापा… ने?”

वो आदमी आगे बढ़ा और पुरानी दीवार पर हाथ मारा। दीवार का एक हिस्सा टूट गया और उसमें से एक पुरानी किताब बाहर निकली।

“ये देखो,” उसने कहा, “ये है वो पोथी जिसमें दर्ज है हवेली की परंपरा… बलि की परंपरा।”

माँ ने अवनि को अपने पीछे कर लिया –
“इस हवेली की परंपरा को हमने बहुत पहले खत्म कर दिया था। लेकिन तुम्हारे पापा… वो लालच में आ गए थे। ज़मीन, शक्ति, और हवेली की सत्ता – सब पाने के लिए उन्होंने खुद अपनी बेटी की बलि तय की थी।”

अवनि काँपते हुए बोली –
“माँ… क्या ये सच है?”

माँ की आँखें नम थीं –
“हाँ, और मैं जान गई थी कि अब मुझे ही ये सब रोकना होगा। इसलिए मैंने वो किया जो कोई माँ नहीं करना चाहती।”

उस आदमी ने धीरे से फुसफुसाया –
“लेकिन उस रात… बलि पूरी नहीं हो पाई। क्योंकि कोई चौथा भी वहाँ था… एक छोटा बच्चा… जो सब देख रहा था।”

अवनि चौंकी – “बच्चा?”

वो आदमी झुका और धीरे से बोला –
“वो बच्चा… मैं नहीं था, अवनि। वो था… कोई और। और वही आज भी हवेली में है।”

तभी हवेली के नीचे से वही भारी आवाज़ आई –
ठक… ठक… ठक…

दीवारें काँपने लगीं। कमरे की लाइट बंद हो गई। हर दिशा से बच्चों की हँसी की आवाज़ें आने लगीं –
“आओ… खेलें… छुपन-छुपाई…”

माँ ने चीखते हुए कहा –
“वो जाग गया है! तहखाना फिर खुल रहा है!”

अवनि के हाथ से टॉर्च गिर गई। रोशनी इधर-उधर भागने लगी। फर्श फटने लगा।

अचानक सामने की दीवार पर खून से लिखा एक वाक्य उभर आया –
“बलि अधूरी है… अगली बारी… अवनि की है।”

अवनि की आँखें फैल गईं। “नहीं!!”

माँ ने उसे कसकर पकड़ लिया –
“मैं तुझे कुछ नहीं होने दूँगी… चाहे इसकी कीमत मेरी जान ही क्यों न हो!”


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[जारी रहेगा… पार्ट 8 में: तहखाने का खुलना, आत्मा का आना और अवनि की अगली परीक्षा]