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🌧️ भाग 1: स्टेशन की हलचल
मुंबई का स्टेशन आज कुछ ज़्यादा ही भीगा हुआ था।
प्राची अपनी स्केचबुक लेकर आई थी — एक नई दीवार पर कुछ नया रचने के लिए।
वो सोच रही थी — क्या आरव आएगा? या वो खत जो मैंने उसे दिया था, अब तक अनपढ़ा ही है?
तभी एक अफरा-तफरी मचती है — एक लड़का गिर पड़ा है, लोग इकट्ठा हो रहे हैं।
वो लड़का आरव है।
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🚑 भाग 2: अस्पताल की खामोशी
आरव को अस्पताल ले जाया जाता है — सिर पर चोट, लेकिन होश में है।
प्राची वहीं है — उसकी आँखों में डर है, लेकिन हाथों में हिम्मत।
वो आरव का हाथ पकड़ती है —
> “तुम्हें क्या लगा था? कि मैं तुम्हें फिर खोने दूँगी?”
आरव मुस्कराता है —
> “शायद ये शाम मुझे तुम्हारे पास लाने के लिए आई थी।”
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💌 भाग 3: वो खत जो अब पढ़ा गया
अस्पताल के कमरे में प्राची वो खत निकालती है — जो उसने कभी आरव को दिया था।
वो उसे पढ़ता है — हर शब्द जैसे दिल की दीवारों पर दस्तक देता है।
> *“अगर तुम ये पढ़ रहे हो, तो जान लो — मैं डरती हूँ।
> लेकिन तुम्हारे साथ डरना भी अच्छा लगता है।
> क्योंकि तुम वो शाम हो… जो हर बार लौटती है।”*
आरव की आँखें भर आती हैं —
> “मैंने ये खत पहले नहीं पढ़ा… क्योंकि मुझे लगा था कि तुम मुझे छोड़ चुकी हो।”
प्राची कहती है —
> “मैंने तुम्हें छोड़ा नहीं… बस खुद को ढूँढ रही थी।”
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🎨 भाग 4: दीवार पर नई शुरुआत
अस्पताल से निकलने के बाद दोनों स्टेशन की उसी दीवार पर जाते हैं — जहाँ पहली बार प्राची ने आरव का चेहरा अधूरा बनाया था।
वो अब उस स्केच को पूरा करती है — लेकिन इस बार उसमें सिर्फ चेहरा नहीं, एक मुस्कान भी है।
आरव तस्वीर लेता है — और कहता है:
> “अब ये तस्वीर सिर्फ दीवार की नहीं… ये हमारी है।”
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🌌 भाग 5: शाम का नया रंग
वो दोनों स्टेशन की बेंच पर बैठते हैं — बारिश अब थम चुकी है।
प्राची कहती है:
> “तुम्हें क्या लगता है — ये सब इत्तेफाक़ था?”
आरव जवाब देता है:
> “नहीं… ये वो शाम थी जो सब बदलने आई थी।”
वो दोनों चुप हो जाते हैं — लेकिन उस चुप्पी में अब कोई डर नहीं, सिर्फ भरोसा है।
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🖋️ भाग 6: एक पुरानी एग्ज़िबिशन
आरव प्राची को एक पुरानी आर्ट गैलरी में ले जाता है — जहाँ उसकी तस्वीरों की पहली एग्ज़िबिशन लगी थी।
दीवारों पर सैकड़ों तस्वीरें थीं — लेकिन एक कोने में एक तस्वीर थी जो ढकी हुई थी।
प्राची पूछती है:
> “ये तस्वीर क्यों नहीं दिखाई गई?”
आरव जवाब देता है:
> “क्योंकि ये मेरी सबसे निजी कहानी है… और शायद सबसे दर्दनाक भी।”
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📷 भाग 7 : तस्वीर का सच
आरव तस्वीर का पर्दा हटाता है — उसमें एक लड़की है, बारिश में भीगती हुई, आँखों में आँसू और हाथ में एक स्केचबुक।
प्राची चौंक जाती है —
> “ये… मैं हूँ?”
आरव कहता है:
> “नहीं… ये मेरी बहन थी। वो तुम्हारी तरह स्केच बनाती थी। लेकिन एक शाम… वो चली गई।”
प्राची की आँखें भर आती हैं —
> “तुमने कभी बताया नहीं…”
आरव कहता है:
> “मैं डरता था… कि अगर तुम ये जानोगी, तो मेरी तस्वीरों से डरने लगोगी।”
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🌧️ भाग 8: दिल की दरार
प्राची चुप हो जाती है — वो सोच रही है कि क्या आरव ने उसे सिर्फ उसकी बहन की याद में पसंद किया?
वो कहती है:
> “क्या मैं तुम्हारे लिए सिर्फ एक परछाई हूँ?”
आरव जवाब देता है:
> “नहीं… तुम वो रंग हो जो मेरी तस्वीरों में कभी थे ही नहीं।”
वो दोनों गैलरी से बाहर निकलते हैं — बारिश फिर शुरू हो जाती है।
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🎨 भाग 9: एक नई तस्वीर
प्राची स्टेशन की दीवार पर जाती है — और एक नई स्केच बनाती है।
इस बार वो एक लड़की नहीं, एक तस्वीर बनाती है — जिसमें एक चेहरा है, लेकिन आँखें बंद हैं।
वो लिखती है:
> “कुछ कहानियाँ आँखों से नहीं, दिल से देखी जाती हैं।”
आरव वहाँ आता है — और तस्वीर की फोटो लेता है।
> “अब मेरी तस्वीरें अधूरी नहीं रहेंगी… क्योंकि तुमने उन्हें पूरा कर दिया।”
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🌌 भाग 19 : शाम का फैसला
वो दोनों स्टेशन की बेंच पर बैठते हैं — प्राची कहती है:
> “मैं तुम्हारी बहन नहीं हूँ… लेकिन अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हारी कहानी बन सकती हूँ।”
आरव मुस्कराता है —
> “तुम मेरी कहानी नहीं… मेरी शुरुआत हो।”
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✨ एपिसोड का समापन
- एक तस्वीर ने एक पुराना राज़ खोल दिया
- एक लड़की ने एक नई कहानी लिख दी
- और एक शाम ने फिर से दो दिलों को जोड़ दिया — इस बार सच्चाई के साथ
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Writer: Rekha Rani