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🌧️ एपिसोड 2— तकरार की बूँदें
थीम: जब दिल बोलना चाहता है, लेकिन शब्द रास्ता खो देते हैं
🪷 भाग : उम्मीद और उलझन
सिया की मौजूदगी ने प्राची के मन में जहर घोल दिया है। वो बेंच अब वैसी नहीं रही जहाँ आरव और वो चुपचाप मुस्कुराते थे। अब वहाँ तकरार की छाया है।
आरव उससे मिलना चाहता है, सफाई देना चाहता है… पर क्या शब्द सच्चाई को बदल सकते हैं?
इस भाग में दोनों के बीच पहली असल टकराहट होती है — बिना चीख के, बस खामोशी की चोट से।
☕ भाग : कॉफी शॉप की साजिश
एक पुरानी कॉफी शॉप में मिलते हैं आरव और प्राची — कोशिशें होती हैं मन की गांठ खोलने की। लेकिन हर कोशिश में एक नया सवाल जन्मता है।
सिया का नाम, उसके इरादे, आरव की चुप्पियाँ और प्राची की सुरक्षा-दीवारें — सब कुछ एक साज़िश लगने लगता है।
🎨 भाग : तस्वीरें और सच्चाई
प्राची एक नई स्केच बनाती है — जिसमें आरव होता है, लेकिन उसका चेहरा अधूरा है।
कला अब भावनाओं की डायरी बन चुकी है।
उधर आरव अपनी पुरानी फोटोज़ खंगालता है, एक ऐसी तस्वीर मिलती है जिसमें सिया अकेले रो रही है — क्या सबकुछ वैसा है जैसा दिखता है?
💔 भाग : टकराव का मोड़
एक बेंच पर दो लोग बैठे हैं — लेकिन उनके बीच की दूरी अब शब्दों से नहीं पटी जा सकती।
प्राची कहती है, “तुमने मेरी तन्हाई को रंग दिया, लेकिन क्या वो रंग तुम्हारा था?”
आरव जवाब देना चाहता है… लेकिन कभी-कभी ख़ामोशी से ज़्यादा तेज़ चीखती कोई बात नहीं होती।
🌑 भाग : अधूरा समापन
बारिश फिर शुरू होती है।
प्राची स्टेशन की पुरानी दीवार पर एक नया स्केच बनाती है — दो छायाएँ, एक जा रही है, दूसरी ठहरी है।
शब्द नहीं हैं… लेकिन यह भाग बताता है कि भावनाएँ हमेशा फैसले की मोहताज़ नहीं होती।
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थीम: जब कला भी दिल की उलझनों को सुलझा नहीं पाती
📖 भाग : पुरानी डायरी
प्राची को अपने पिता की डायरी मिलती है — जिसमें उनके और माँ के रिश्तों की टूटन दर्ज है।
उससे उसे समझ आता है — कि मोहब्बत कभी पूरी नहीं होती, बस स्वीकार करनी पड़ती है अधूरी रेखाएँ।
📷 भाग : आरव का सच
आरव सिया से मिलता है — साफ़-साफ़ कहता है कि अब उसके दिल में कोई और है।
सिया टूटती है… लेकिन कहती है — "मैंने तुम्हें खोया नहीं, तुम बस कहीं और खुद को ढूंढने लगे हो।"
🌌 भाग : वो दीवार
प्राची स्टेशन पर फिर एक दीवार के सामने बैठती है — और पहली बार खुद का चेहरा स्केच करती है।
वो कहती है — "शायद मैं अब खुद को देखना चाहती हूँ, दूसरों को नहीं।"
✉️ भाग : एक चिट्ठी
आरव प्राची को एक चिट्ठी लिखता है — कोई मेल नहीं, कोई नोट नहीं, सिर्फ एक पेंसिल से लिखा खत।
> “अगर कभी तुम्हारी स्केचबुक में मेरी तस्वीर जगह पाए, तो मुझे लगा लेना कि मैं फिर से जी गया।”
🌤️ भाग : नई छाया
बारिश थमती है — लेकिन कहानी नहीं।
प्राची दीवार पर एक नई रेखा बनाती है — एक लड़की चल रही है, उसके पीछे कोई नहीं… लेकिन उसके पाँवों के निशान में कोई कदम साथ-साथ बनते हैं।
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📸 भाग : खिड़की के पार
प्राची अब स्टेशन की पुरानी खिड़की के पास जाती है — जहाँ एक पुराना फोटो फ्रेम टूटा पड़ा था।
वो उसमें एक पुरानी तस्वीर देखती है — आरव, सिया और एक अनजाना चेहरा।
उस तीसरे शख्स को देखकर उसकी साँसें थम जाती हैं… वो चेहरा उसे बहुत जाना-पहचाना लगता है।
🕰️ भाग : अतीत की परतें
प्राची शहर की पुरानी आर्ट गैलरी में जाती है — एक कोना है जहाँ कुछ छिपा रखा है।
वहाँ उसे एक स्केचबुक मिलती है, जिस पर लिखा है: “दिल वो है, जो टूटकर भी रंग देता है।”
वो स्केचबुक आरव की माँ की है — और उसमें ऐसे राज़ दर्ज हैं, जिनसे कहानी की दिशा बदल सकती है।
🎭 भाग : सिया की परछाई
सिया अब खुद को बदलने की कोशिश करती है — वो प्राची से मिलने आती है।
पहली बार बिना ज़हर, बस अपनी कहानी लेकर।
वो कहती है, "मैंने आरव से प्यार किया, लेकिन खुद से कभी किया ही नहीं — शायद इसीलिए हार गई।"
🩶 भाग : आरव की मुश्किल
आरव एक अस्पताल के कमरे में बैठा है — उस तीसरे चेहरे की सच्चाई जानने के बाद।
वो उसके पिता का फोटो था — जो कभी अपनी ही बेटी (सिया) से रुठकर सबकुछ छोड़ गया था।
अब सब उलझ गया है — दिल, रिश्ते, और पहचान।
🌈 भाग : नई तस्वीर
प्राची स्टेशन पर एक नई दीवार ढूँढती है — वहाँ अब रंग बाकी हैं।
वो एक तस्वीर बनाती है — तीन परछाइयाँ, लेकिन अब वो जुड़ी हुई हैं।
उसके नीचे लिखती है:
> “कुछ रिश्ते आँसू से नहीं, रंग से बनते हैं।”
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अब चलिए “तुम वो शाम हो” की कहानी को एक नए गहरे मोड़ पर लेकर चलते हैं ❤️
मैं प्रस्तुत करता हूँ:
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🪷 भाग : जब मिलना ख़ामोशी से हो
दो दिन हो चुके हैं। कोई कॉल नहीं, कोई मैसेज नहीं।
प्राची स्टेशन पर जाती है… लेकिन आज वहां कोई चेहरा नहीं है जिसे वो पहचाने।
वह एक बेंच पर बैठती है और अपने स्केचबुक को देखती है — पिछले पन्नों में सिर्फ धुंधली छायाएँ हैं।
उसने लिखा: “क्या मैं फिर से मिलने की उम्मीद कर रही हूँ? क्या मुझे फिर से हिम्मत जुटानी चाहिए?”
बगल में एक बूढ़ा आदमी आ बैठता है। वो कहता है:
> “जो लोग तुम्हें अधूरी तस्वीरों में समझते हैं, वे कभी पूरी तस्वीर के लायक नहीं होते।”
प्राची पहली बार मुस्कराती है — और वो एक नई स्केच शुरू करती है।
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🎞️ भाग : विराज का पुराना सपना
दूसरी ओर, आरव ने एक पुरानी फ़िल्म कैमरा खरीदी है — जिसे उसके पिता कभी इस्तेमाल करते थे।
उसके लेंस में वो तस्वीरें हैं जो कभी ली ही नहीं गईं — प्राची की मुस्कान, उसकी उदासी… और एक खिड़की जिसके पीछे वो बैठती थी।
आरव अपने पुराने अलमारी से एक किताब निकालता है — “Dreams people forget”
उसमें उसने एक नोट लिखा था:
> “अगर कभी फिर ख्वाब देखना चाहूं, तो वो सिर्फ उसकी आँखों से शुरू हो…”
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☕ भाग : फिर वही कॉफी
प्राची वापस “किरदार” कैफ़े जाती है। अब वो कोना उसका है — लेकिन आज वहाँ विराज पहले से मौजूद है।
वो चौंकती है। कुछ भी नहीं बोलती।
आरव कहता है:
> “मैं ख्वाबों को फिर से देखना चाहता हूँ… लेकिन अगर तुम चाहो तो।”
प्राची जवाब देती है:
> “अब ख्वाबों से डर लगता है, क्योंकि कभी नींद ही नहीं आती।”
वो दोनों कॉफी पीते हैं — एक कप की भाप में वो एहसास उभरते हैं जो शब्दों में नहीं थे।
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🖋️ भाग : सवाल और जवाब नहीं
विराज कहता है:
> “क्या तुम्हें लगता है कि हम फिर से शुरुआत कर सकते हैं?”
प्राची मुस्कराती:
> “शुरुआत शायद नहीं… लेकिन एक नया स्केच ज़रूर बन सकता है।”
वो अपनी स्केचबुक खोलती है और पहली बार आरव को अपने पुराने स्केच दिखाती है — वो जो कभी किसी को नहीं दिखाए थे।
आरव चुपचाप उन्हें देखता है। उसकी आँखें भर जाती हैं।
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🎨 भाग : पहली बार साथ में स्केच
वो दोनों स्टेशन की दीवार पर खड़े होते हैं — एक खाली जगह है।
प्राची कहती है:
> “अगर तू तस्वीरें ले सकता है, तो मैं रंग भर सकती हूँ… क्या आज दोनों साथ में कुछ बनाएँ?”
वो पहली बार साथ काम करते हैं — एक लड़की जो स्केच कर रही है, और एक लड़का जो उसी में तस्वीरें बुन रहा है।
दीवार पर बनती है एक शाम की छाया, जिसमें दो लोग हैं… पर चेहरा नहीं है।
क्योंकि कहानी अभी पूरी नहीं हुई।
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🌧️ एपिसोड का समापन
- दोनों ने फिर एक ख्वाब देखा — बिना वादे, बिना दबाव…
- दीवार पर बनी एक सच्चाई — जिसे कोई समझे तो ठीक, न समझे तो भी ठीक
- और स्टेशन की बेंच पर एक पोस्ट-इट चिपका रहता है, जिसमें लिखा है:
> “शामें वही खूबसूरत होती हैं… जहाँ बातें अधूरी हों, लेकिन खामोशी सच्ची”
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Writer: Rekha Rani