Old Man of The Temple in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | Old Man of The Temple

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Old Man of The Temple

पुराने मंदिर के पिछले हिस्से में एक सुनसान इलाका था, जहाँ हर शाम सूरज ढलते ही सन्नाटा पसर जाता था। वहाँ एक टूटा-फूटा मंदिर खड़ा था, जिसे लोग “काल भैरव मंदिर” कहते थे।

वर्षों से वीरान पड़ा वो मंदिर अब केवल चीलों और चमगादड़ों की पनाहगाह बन चुका था। लोग कहते थे कि मंदिर में कोई आत्मा बसी है एक बूढ़ा आदमी, जो रात को जागता है और अजनबियों से मंदिर की रक्षा करता है। पर किसी ने उसे देखा नहीं था… बस उसकी कहानियाँ हवा में तैरती थीं, और डर हर दिल में बसा था।

गाँव से कुछ दूरी पर रहने वाला अर्जुन एक पढ़ा-लिखा नौजवान था, जिसे भूत-प्रेत की कहानियाँ बचपन से ही बेमानी और धोखाधड़ी लगती थीं। उसने ठान लिया कि वह इस मंदिर में एक रात बिताकर साबित करेगा कि ये सब अंधविश्वास है।

एक अमावस्या की रात, जब गाँव में घना अंधेरा छाया हुआ था, अर्जुन एक दीपक और एक गाड़ी और उसके ड्राइवर कृष्णा को लेकर मंदिर की ओर निकल पड़ा। हालांकि अर्जुन इस योजना के विषय मैं कृष्णा को कुछ नहीं बताया था, उसने कहां बस मंदिर तक चक्कर लगा के वापस आ जाएंगे।

रास्ते में पीपल का पेड़ था, जिसकी शाखाएँ ऐसे झूल रही थीं मानो किसी अनदेखी शक्ति की उंगलियाँ उसे बुला रही हों। मंदिर की टूटी सीढ़ियाँ चाँदनी में अजीब सी चमक रही थीं।

अंधेरा हो चुका था। रास्ता सुनसान था और तभी उनकी कार एक पुराने मंदिर के पास से बंध पड़ गई, जो वीरान था और बहुत समय से बंद पड़ा था। मंदिर की हालत जर्जर थी और लगता था जैसे सालों से किसी ने वहाँ पूजा भी नहीं की।

अर्जुन ने मज़ाक में कहा —
"अरे, लगता है वो बूढ़ा साधु इस मंदिर की रखवाली करने निकला होगा इसलिए गाड़ी बंध पड़ गई है!"

उनके साथ बैठा ड्राइवर कृष्णा अचानक चुप हो गया…
"इसे मजाक मत करो साहब, अदृश्य शक्तियां उन्हे बर्दाश्त नहीं करी"

"अरे कुछ नहीं है यह, जाव मंदिर के अंदर एक छोटा सा तालाब है वहां से पानी ले आव "

" क्या साहब मैं जाव वो भी मंदिर के अंदर!" कृष्णा डर गया।

"क्यों, डर लगता है, कुछ नहीं है अंदर, जाव और जल्दी आव"

अर्जुन की बात मानकर कृष्णा अंदर चला गया।

तरीबन 15 मिनिट बीत गए पर कृष्णा बाहर नहीं आया तो अर्जुन उसे ढूंढने मंदिर के अंदर चला गया.....

अर्जुन ने देखा तो कृष्णा मंदिर की चौखट पर बैठा था उसकी आँखें बदल गईं… चेहरा सख्त हो गया… और उसने एक भारी आवाज़ में बोलना शुरू किया, जो उसकी अपनी नहीं लग रही थी,

अर्जुन बोला," अरे कृष्णा क्या तुम हो, वहां क्यों बैठे हो?"

"मैं ही हूँ इस मंदिर का पुजारी… किसकी मजाल कि मेरे मंदिर का अपमान करे?"

अर्जुन चौंक गया। अर्जुन ने सोचा शायद कृष्णा मज़ाक कर रहा है, लेकिन जब उसकी आवाज़ गूंजने लगी, और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे… तब सब समझ गए कि मामला गंभीर है।

वो पल डरावना था।

ड्राइवर अब कृष्णा नहीं था…
वो बन चुका था एक भूत मंदिर का बूढ़ा पुजारी, जो वर्षों पहले इस मंदिर में रहा करता था।

वो आत्मा बोलने लगी, "मैं यहीं रहता हूँ… मैंने इस मंदिर की सेवा की… लेकिन लोग मुझे भूल गए… अब मैं भी उन्हें नहीं भूलने दूँगा…"

अर्जुन एक कदम पीछे हटा, लेकिन उसका दिल अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहा था।
"तुम कौन हो? और क्यों कृष्णा के शरीर में घुसे हो?"

भारी साँसों के साथ आत्मा बोलने लगी। उसकी आवाज़ मंदिर की दीवारों से टकराकर लौट रही थी…

"मेरा नाम ‘भास्कर भट्ट’ था। ये काल भैरव मंदिर मेरी जान था। दिन-रात मैं इसकी देखभाल करता, मंत्र पढ़ता, भैरव की आराधना करता।"

उसकी आँखों से अब भी आँसू बह रहे थे, लेकिन वो आँसू इंसानी नहीं थे... अधूरी आत्मा के थे।

"एक रात, कुछ लुटेरे आए। उन्होंने मंदिर के गहने, चाँदी के दीपक और स्वर्ण कलश चुराने की कोशिश की। जब मैंने उन्हें रोका, उन्होंने मुझे पीट-पीटकर मार डाला। मैंने वहीं काल भैरव के चरणों में अपने प्राण त्यागे।"

मंदिर की हवा भारी होती जा रही थी।

"लेकिन मेरी आत्मा वहीं रह गई। मैं किसी को मंदिर लूटते नहीं देख सकता... किसी का अपमान सुन नहीं सकता... मेरी आत्मा तब तक बंधी रहेगी, जब तक कोई मेरी पीड़ा समझेगा…"

अर्जुन अब काँप रहा था, पर फिर भी उसने धीरे से कहा —
"तुम्हारी पीड़ा सच्ची है… लेकिन कृष्णा का क्या दोष है? वो सिर्फ एक इंसान है... उसे जाने दो..."

भास्कर भट्ट की आत्मा ने पहली बार अर्जुन की आँखों में देखा।
"तू… तू ठीक वैसा ही बोल रहा है, जैसे मेरी पत्नी बोला करती थी…"

वो फुसफुसाया… उसकी आवाज़ अब काँप रही थी…

"वो भी मुझे शांत करती थी… मुझे समझती थी… तू उसकी याद दिलाता है…"

कुछ पल के लिए मंदिर में एकदम शांति छा गई।

फिर भास्कर भट्ट की आत्मा धीरे-धीरे पीछे हटने लगी। कृष्णा की आँखें फिर सामान्य हो गईं… उसका शरीर ढीला पड़ गया… और वो वहीं मंदिर की ज़मीन पर धड़ाम से गिर गया।

अर्जुन दौड़कर उसके पास पहुँचा।

"कृष्णा! कृष्णा! होश में आओ!"

पर कृष्णा बेहोश था। उसकी साँसे चल रही थीं, लेकिन उसकी आँखें बंद थीं।

अर्जुन घबरा गया। आस-पास कोई नहीं था। न मंदिर में पानी था, न कोई मदद।

उसने कृष्णा को वहीं छोड़ा और भागता हुआ गाँव की तरफ दौड़ पड़ा। रास्ते में वो हर घर के दरवाज़े पर गया, "कोई है? पानी दो! मेरे दोस्त की जान जा रही है!"

कुछ लोगों ने डर के मारे दरवाज़ा नहीं खोला, लेकिन एक बूढ़ी औरत ने बाहर आकर कहा,

"मंदिर? तुम मंदिर गए थे?… रुको बेटा…"
वो कलश में ठंडा पानी लेकर आई और बोली,
"उस आत्मा ने तुम्हें नहीं मारा… क्योंकि तुमने उसका सम्मान किया…"

अर्जुन ने जल्दी से पानी लेकर मंदिर की ओर दौड़ लगाई।

जब वो लौटा, कृष्णा अब भी ज़मीन पर पड़ा था। लेकिन जैसे ही अर्जुन ने उसके मुँह पर पानी डाला, कृष्णा की उंगलियाँ हिलीं… और कुछ देर में उसकी आँखें खुलीं।

"साहब… क्या हुआ था? मुझे कुछ याद नहीं…"

अर्जुन ने कुछ नहीं कहा… बस आसमान की ओर देखा।

मंदिर के शिखर के पीछे से चाँद धीरे-धीरे निकल रहा था…
और ऐसा लगा जैसे किसी ने एक बूझी हुई आत्मा को अब शांति दे दी हो…

अब भी कोई उस मंदिर को कोई हाथ नहीं लगाता…
हर अमावस्या की रात, कोई एक दीपक अपने आप जलता है…
और हवा में एक धीमी सी फुसफुसाहट गूंजती है…

"अब मैं नहीं डराता… अब मैं केवल देखता हूँ… कौन मेरी सेवा करता है…"