भाग 7: विरासत का दंश
📖 पिछले भाग में हमने देखा की....
रागिनी ने 'छाया पाशाय नमः' मंत्र का इस्तेमाल कर भैरव नाथ की आत्मा को तो जकड़ लिया, लेकिन अब उसकी परछाई, रंजना, उसके भीतर पूरी तरह से जाग चुकी है। रागिनी को एहसास हो रहा है कि वह अब सिर्फ अपनी नहीं, बल्कि दो अलग-अलग चेतनाओं की मालिक है। भैरव नाथ को बाँधने के बाद, हवेली के रहस्य और भी गहरे हो गए हैं।
अब आगे.....
वर्तमान में – हवेली का गर्भगृह, पूर्णिमा की सुबह
आधी रात की लड़ाई के बाद, हवेली में एक अजीब-सा सन्नाटा छा गया था। दीवारों पर अब काली परछाइयाँ नहीं नाच रही थीं, और हवा में गूँजती हुई चीखें भी थम चुकी थीं। रागिनी थकी हुई फर्श पर बैठी थी, उसके शरीर में एक अजीब-सी सिहरन थी। भैरव नाथ की आत्मा को बाँधने के बाद, उसने सोचा था कि सब खत्म हो गया है, लेकिन अब उसे एक नई लड़ाई लड़नी पड़ रही थी – अपने ही भीतर।
उसकी आँखों के सामने अभी भी रंजना का चेहरा घूम रहा था, वो चेहरा जो दर्द और शक्ति का मिला-जुला रूप था। रागिनी ने खुद को देखने की कोशिश की। शीशे में उसे अपनी आँखों में एक अलग चमक दिखाई दी – वह चमक उसकी नहीं थी। यह रंजना की थी।
“अब मैं तेरी सिर्फ परछाई नहीं हूँ, रागिनी,” एक धीमी, ठंडी आवाज़ उसके भीतर गूँजी। यह रंजना की आवाज़ थी। “मैं अब तेरे भीतर हूँ। तूने भैरव को बांधा है, पर तूने उसकी शक्ति को भी अपने भीतर कैद कर लिया है। अब तू एक शरीर में दो नहीं, बल्कि तीन आत्माएँ हैं।”
रागिनी ने अपने सिर को झटका। वह इस बात को नकारना चाहती थी। “नहीं! मैं रागिनी हूँ! मैं खुद को नहीं खोऊँगी!” वह चिल्लाई, लेकिन उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास की कमी थी।
तभी, उसकी कलाई पर बँधा हुआ तावीज़ चमकने लगा। यह वही तावीज़ था जो उसकी दादी दिव्या ने उसे दिया था। तावीज़ से एक हल्का धुँआ उठा और एक दिव्य आकृति प्रकट हुई। यह दिव्या की आत्मा थी।
“शांति रखो, मेरी बच्ची,” दिव्या की आवाज़ में ममता और दृढ़ता थी। “तुम्हारे भीतर जो कुछ भी हो रहा है, वह एक भयानक विरासत का हिस्सा है।”
“कैसी विरासत, दादी? यह क्या है?” रागिनी ने पूछा।
“यह हवेली सिर्फ एक घर नहीं है, रागिनी,” दिव्या की आत्मा ने कहा। “यह एक रक्तशृंखला की अंतिम कड़ी है। यह एक ऐसी श्रृंखला है जो सदियों से चलती आ रही है। एक ऐसी श्रृंखला जिसके रक्त में तंत्र और शक्ति दोनों दौड़ते हैं।”
रागिनी की आँखें फैल गईं। “रक्तशृंखला?”
“हाँ,” दिव्या ने बताया। “लगभग एक हज़ार साल पहले, इस जगह पर एक ताकतवर तांत्रिक वंश रहता था, जिसे ‘छाया वंश’ कहा जाता था। वे लोग आत्माओं को बाँधने और मुक्त करने की कला में माहिर थे। वे भैरव नाथ जैसे दुष्ट आत्माओं को भी नियंत्रित कर सकते थे। लेकिन एक दिन, उनके वंश का सबसे ताकतवर तांत्रिक, जिसके पास 'रक्त की किताब' थी, उसने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया। उसने अपनी आत्मा को अमर करने की कोशिश की और खुद भैरव नाथ की शक्ति का स्रोत बन गया।”
रागिनी को कहानी सुनकर एक झटके का एहसास हुआ। “तो… वह तांत्रिक भैरव नाथ था?”
“नहीं। वह भैरव नाथ से भी ज़्यादा ताकतवर था। भैरव नाथ तो बस उसकी ही एक छाया था, एक औजार था,” दिव्या ने कहा। “उस तांत्रिक की मृत्यु के बाद, उसकी शक्ति और भैरव नाथ की आत्मा, दोनों इस हवेली में कैद हो गए। और 'रक्त की किताब' उसी तांत्रिक के रक्त से बनी है, ताकि वह अपने वंशजों को पहचान सके।”
रागिनी ने 'रक्त की किताब' को देखा। वह अब भी उसकी कलाई पर बँधी हुई थी, और अब खून नहीं पी रही थी, बल्कि चमक रही थी।
“लेकिन ये सब मुझसे कैसे जुड़ा हुआ है?” रागिनी ने सवाल किया।
“तुम उसी वंश की अंतिम उत्तराधिकारी हो,” दिव्या की आत्मा ने जवाब दिया। “तुम्हारी परदादी, और फिर मैं, और अब तुम… हम सब उसी रक्तशृंखला की अगली कड़ी हैं। भैरव नाथ को पता था कि सिर्फ इसी वंश का खून उसे बाँध सकता है, इसलिए उसने तुम्हारी जुड़वाँ परछाई, रंजना को पहले ही अपने काबू में कर लिया था। वह जानता था कि एक दिन तुम उसे बाँधने की कोशिश करोगी, और तब वह तुम्हारी ही चेतना को अपने अंदर ले लेगा।”
रंजना की आवाज़ फिर उसके भीतर से गूँजी, “और वह सफल हो रहा था! जब तक कि तूने उसे बांधा नहीं। लेकिन अब तू एक ऐसी शक्ति को संभाल रही है, जिसे संभालना बहुत मुश्किल है। भैरव नाथ भले ही शांत है, लेकिन उसकी ताकत अभी भी तेरे भीतर मौजूद है। मैं और तू, दोनों को मिलकर इस शक्ति को नियंत्रित करना होगा।”
रागिनी ने पूछा, “तो मुझे क्या करना होगा?”
“तुम्हें उस तांत्रिक की असली कहानी जाननी होगी, जिसने इस वंश को शाप दिया,” दिव्या ने कहा। “उसकी एक डायरी, 'छाया संहिता' के नाम से, इस हवेली की सबसे पुरानी नींव में छिपी हुई है। वह डायरी तुम्हें बताएगी कि इस शक्ति को हमेशा के लिए कैसे खत्म किया जा सकता है। यह हवेली सिर्फ तांत्रिकों की नहीं, बल्कि एक हजार साल पुरानी रक्तशृंखला की अंतिम कड़ी है... और वह कड़ी अब टूटने ही वाली है।”
रागिनी ने चारों तरफ देखा। उसे लगा कि उसकी सारी दुनिया ही बदल गई है। वह अब एक साधारण लड़की नहीं थी, बल्कि एक हजार साल पुरानी विरासत की अंतिम कड़ी थी। और उसे यह भी पता चला कि इस कहानी का अंत तभी होगा जब वह इस शक्ति को हमेशा के लिए खत्म कर देगी।
दिव्या की आत्मा धीरे-धीरे धुँए में घुलने लगी। जाते-जाते उन्होंने कहा, “याद रखना, इस शक्ति को खत्म करने के लिए, तुम्हें खुद को खत्म करने की जरूरत नहीं है। तुम्हें सिर्फ एक विकल्प चुनना है – अपनी चेतना को बचाना या रंजना की तरह छाया बन जाना।”
रागिनी अब अकेली थी। एक तरफ उसके भीतर भैरव नाथ की बंधी हुई शक्ति थी, और दूसरी तरफ रंजना की जागृत चेतना। उसके सामने 'छाया संहिता' को ढूँढने की चुनौती थी। और सबसे बड़ी चुनौती थी – खुद को इस विरासत के दंश से बचाना।
क्या रागिनी को 'छाया संहिता' मिलेगी? क्या वह खुद की चेतना को बचा पाएगी? या वह सच में रंजना की तरह इस शक्ति की सिर्फ परछाई बन कर रह जाएगी?