पिछले भाग में:
रागिनी ने रक्त द्वार पार किया और एक दूसरी ही दुनिया में पहुँची — एक रहस्यमयी, स्याह जगह, जहाँ उसकी दादी की आत्मा जैसी एक छाया उसे मिली। वहाँ उसे बताया गया कि उसकी दादी ने एक अधूरी तांत्रिक साधना को रोकने की कोशिश की थी, लेकिन अब वह आत्मा फिर से जाग गई है। अब निर्णय रागिनी के हाथ में है — सत्य को उजागर करे या तंत्र को पूरा करे…
आगे....
चारों ओर धुंध थी। किताब अब भी वेदी पर खुली रखी थी, और उसके सामने वह परछाई — जो ना स्पष्ट दिख रही थी, ना पूरी तरह अदृश्य — बस गूँजती हुई।
"तुम्हें लगता है तुम्हारे पास समय है?" वह छाया बोली। "तुम्हारी दादी के पास भी नहीं था।"
रागिनी ने धीमे स्वर में कहा, "मैं जानना चाहती हूँ कि उन्होंने क्या रोका था। क्या था वो अधूरा तंत्र?"
छाया चुप रही, फिर कुछ देर बाद बोली — "तुम्हारे सवालों के जवाब इस किताब में हैं... लेकिन कीमत चुकानी पड़ेगी। हर उत्तर एक स्मृति की तरह जीना होगा, हर दृश्य तुम्हें महसूस कराना होगा कि क्या हुआ था इस हवेली में। और फिर तुम तय करोगी – सत्य उजागर करोगी या साधना पूरी करोगी।"
रागिनी ने किताब के पन्ने पलटना शुरू किया। पहला पृष्ठ जैसे जल उठा — और उसकी आँखों के सामने धुंध छटने लगी।
– वर्ष 1962
दिव्या चौधरी, यानी रागिनी की दादी, तब एक युवती थीं — पढ़ी-लिखी, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़ी हुई। हवेली में तब उनके पिता रहते थे — ठाकुर वीरेंद्र चौधरी। उन्होंने गाँव के लिए बहुत कुछ किया था, लेकिन हवेली में एक रहस्यमय पूजा-पाठ चलता था, जिससे दिव्या को डर लगता था।
एक रात दिव्या ने देखा कि हवेली के नीचे के तहखाने में कुछ लोग एक तांत्रिक के साथ एक विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं। बीच में बैठे थे भैरव नाथ — वही तांत्रिक जिसकी चर्चा किताब में थी।
वह एक “आत्मा को बाँधने और फिर शक्ति में बदलने” का तंत्र कर रहा था।
लेकिन तंत्र अधूरा रह गया — क्योंकि दिव्या ने वहीँ पहुँचकर मंत्रों को तोड़ दिया। उस रात हवेली की दीवारें काँप उठी थीं, और भैरव नाथ की आत्मा वहीं बंद हो गई थी। दिव्या को चेतावनी मिली थी — “अगर ये तंत्र पूरा नहीं हुआ, तो एक दिन कोई रक्त-संतान इसे पूर्ण करेगी।”
– वर्ष 1978
दिव्या अब प्रौढ़ हो चुकी थीं। हवेली वीरान हो चुकी थी। उन्होंने तहखाने को बंद कर दिया था और गाँव वालों से कह रखा था कि वह स्थान शापित है।
लेकिन उन्होंने सब कुछ अपनी पोती रागिनी के लिए सँभाल कर रखा — किताब, नक्शा, संकेत — ताकि अगर कभी वह पुकार फिर से उठे, तो कोई तैयार हो।
और अब... वही समय आ चुका था।
वर्तमान में लौटते हुए...
रागिनी के आँखों से आँसू बह रहे थे। वह सब देख चुकी थी — न केवल अपनी दादी की हिम्मत, बल्कि उस आत्मा की क्रूरता भी जो अब उस पर नज़र रखे हुए थी।
उस छाया ने कहा, "अब वक्त है निर्णय का, रागिनी।
तुम या तो इस आत्मा को हमेशा के लिए मुक्त कर सकती हो — जिसका अर्थ है कि इसकी शक्ति इस धरती पर फिर से फैलेगी।
या फिर तुम इस साधना को समाप्त कर सकती हो — लेकिन तुम्हें उसकी जगह लेनी होगी।"
रागिनी स्तब्ध रह गई।
"तुम क्या चाहती हो?" वह फुसफुसाई।
छाया बोली, "मैं एक माँ हूँ… जो अपनी पोती को बचाना चाहती है। लेकिन मैं एक रक्षक भी हूँ — जिसने इस हवेली को अब तक रोके रखा है। अगर तुम तय कर लो, तो मैं तुम्हें अंतिम मार्ग दिखा सकती हूँ।"
रागिनी ने पूछा, "मुझे क्या करना होगा अगर मैं सत्य का मार्ग चुनूँ?"
छाया बोली, "तुम्हें उस मंदिर की दीवारों तक पहुँचना होगा जो हवेली के भीतर सबसे भीतर है। वहाँ वो मूर्ति है जहाँ भैरव नाथ की आत्मा को बाँध कर रखा गया था। तुम उसे तोड़ दो — तंत्र समाप्त हो जाएगा, लेकिन हवेली के सभी बंधन भी टूट जाएँगे। कई आत्माएँ जो दशकों से यहाँ बंद हैं, वो सब बाहर आ जाएँगी। कुछ निर्दोष थीं, कुछ नहीं..."
रागिनी ने पूछा, "और अगर मैं साधना पूरी करूँ?"
छाया मुस्कराई — "तो भैरव नाथ की शक्ति तुम्हारे भीतर आएगी। तुम उस ज्ञान की उत्तराधिकारी बनोगी — लेकिन एक कीमत पर। जो तुम आज हो, वह फिर कभी नहीं रहोगी।"
अचानक वेदी के पास बसी लौ बुझ गई।
और एक दूसरी आवाज़ गूँजी — भारी, क्रोधित और गूँजती हुई...
"मैं जाग चुका हूँ। अब निर्णय तेरा नहीं, मेरा होगा।"
अंधेरा और गहरा हो गया।
छाया पीछे हट गई।
"रागिनी!" — वह चिल्लाई — "अब तू सिर्फ समय के साथ नहीं, आत्मा के विरुद्ध भी खड़ी है। जो निर्णय लेगी, वही तेरी नियति बनेगा।"
रागिनी ने दौड़ लगा दी — वेदी की किताब, स्केच, सब समेटते हुए वह तहखाने से बाहर की ओर भागी। लेकिन रास्ते अब बदल चुके थे।
हवेली अब पहले जैसी नहीं रही।
दरवाज़े बदल गए थे, सीढ़ियाँ उलझ गई थीं, और दीवारें अपने आप घूम रही थीं।
जैसे भैरव नाथ अब हवेली को खुद चला रहा था।
उसने देखा — एक कमरे में दीवार पर लिखा था:
"जिसने सत्य को छुआ, वह अब भ्रम में जलेगा।"
रागिनी समझ गई — उसकी परीक्षा शुरू हो चुकी है।
– निर्णय की घड़ी
अब रागिनी के सामने दो रास्ते हैं:
सत्य: तंत्र को समाप्त करना, आत्माओं को मुक्त करना, लेकिन खुद को खतरे में डालना
साधना: शक्ति को प्राप्त करना, आत्मा को शांत करना, लेकिन अपनी पहचान खो देना
और आत्मा अब शांत नहीं है…