Andheri Kothari ka Rahashy - 6 in Hindi Horror Stories by Pawan books and stories PDF | अंधेरी कोठरी का रहस्य - भाग 6

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अंधेरी कोठरी का रहस्य - भाग 6

अब तक.....

रागिनी ने अपनी दादी दिव्या की अधूरी तांत्रिक साधना की सच्चाई जानी। उसे बताया गया कि अगर वो सत्य का मार्ग चुनती है, तो उसे हवेली के सबसे भीतर बने प्राचीन मंदिर तक पहुँचना होगा और भैरव नाथ की मूर्ति को तोड़ना होगा। लेकिन अब हवेली उसके नियंत्रण में नहीं है, क्योंकि भैरव नाथ जाग चुका है…
 
 
आगे....
वर्तमान – रात 3:03 AM, हवेली का तहखाना
 
रागिनी घुटनों के बल बैठी थी। उसके हाथ में वही पुरानी लाल किताब थी – रक्त की किताब।
 
किताब के कवर पर अजीब भाषा में कुछ लिखा था — वो भाषा जिसे रागिनी समझ नहीं पाती थी, लेकिन हर बार जब वो उसे देखती, कुछ चित्र उसके दिमाग में तैरने लगते थे।
 
छाया की आवाज़ फिर गूंजी –
“यह केवल शब्द नहीं हैं, रागिनी। यह तेरी आत्मा से जुड़ते हैं। पढ़, लेकिन अपनी चेतना खो मत बैठ।”
 
रागिनी ने पहला पन्ना पलटा।
 
 
 
📜 अध्याय 1 – आत्मा को बुलाने की विधि
 
> "वह जिसे बुलाना है, पहले उसे पहचानना ज़रूरी है। उसकी पीड़ा को जानना ज़रूरी है, क्योंकि आत्मा वही करती है जो मृत्यु में अधूरी रह गई थी..."
 
रागिनी की उंगलियाँ काँप गईं।
अचानक एक दृश्य उसकी आँखों के सामने कौंधा।
 
 
 
स्मृति ( भुतकाल मे देखते हुए) – भैरव नाथ की मृत्यु :
 
एक पहाड़ी स्थान, ज़मीन पर खून से लथपथ एक तांत्रिक। उसके चारों ओर सात मोमबत्तियाँ, एक काले चाकू से खुद को घायल करता हुआ।
 
भैरव नाथ चिल्ला रहा था –
"ये शरीर मेरा नहीं, ये साधना मेरी है... और अगर मैं अधूरा मरूँगा, तो किसी की रगों में घुस जाऊँगा... किसी के वंशज में..."
 
और फिर... एक चीख... और मृत्यु।
 
 
वर्तमान मे :
 
रागिनी ने आंखें खोलीं। उसने महसूस किया कि उसके हाथों की नसें गर्म हो गई हैं। किताब अब उसका खून पी रही थी।
 
छाया बोली —
“यह रक्त की किताब है, रागिनी। इसका हर मंत्र तुम्हारे रक्त से लिखा गया है। यह तुम्हारे भीतर के अंधकार से जुड़ी है। अब यह तुम्हारी परीक्षा लेगी।”
 
 
किताब के अगले पृष्ठ पर एक वाक्य लिखा था:
> "जिस आत्मा को बंधन में लाना हो, पहले उसे देखने की हिम्मत रखनी चाहिए।"
 
जैसे ही रागिनी ने यह पंक्ति पढ़ी, हवेली के एक कोने से एक कराहने की आवाज़ आई। वह उठा और किताब लेकर बाहर निकली।
 
उसने देखा — हवेली की पुरानी लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुला है।
 
वहाँ, एक महिला आत्मा हवा में झूल रही थी। उसकी आँखें खाली थीं, लेकिन होठ फुसफुसा रहे थे —
"तुम दिव्या की पोती हो... मैंने देखा है तुम्हारी माँ को, तुम्हारी नानी को... अब तुम..."
 
रागिनी ने काँपती आवाज़ में कहा —
"तुम कौन हो?"
 
आत्मा बोली —
"मैं वो हूँ जिसे साधना अधूरी छोड़ गई... मुझे किताब में नाम नहीं मिला... इसलिए मैं यहाँ फँसी रही..."
और फिर गायब हो गई।
 
अध्याय 2 – नामहीन आत्माओं का शाप
    "अगर आत्मा का नाम किताब में न हो, तो वह विकृत हो जाती है। वह अपनी चेतना खोकर हर नए आगंतुक को शिकार समझती है।"
 
रागिनी समझ चुकी थी – हवेली में हर आत्मा शुद्ध नहीं है। कुछ आत्माएँ सिर्फ़ गवाह थीं, लेकिन कुछ पीड़ित और विकृत होकर भटकती हुई शक्तियाँ बन गई थीं।
 
उसे किताब में आत्माओं के नाम ढूँढने होंगे... और उन्हें मुक्त करने का तरीका भी।
 
 
हवेली की दीवारें अब बदलने लगी थीं। वो जैसे उसे एक विशेष दिशा में धकेल रही थीं।
 
रागिनी को अचानक महसूस हुआ कि वह एक सुरंग में है – चारों तरफ दर्पण। हर दर्पण में उसका ही अक्स था – लेकिन अलग-अलग रूप में।
 
एक में वो सफ़ेद लिबास में, एक में काली आँखों वाली, एक में तांत्रिक जैसी दिख रही थी।
 
"ये मैं नहीं हूँ..." रागिनी ने कहा।
 
लेकिन एक आवाज़ आई —
"ये सब तुम हो... ये वो हैं जो तुम बन सकती हो अगर किताब का इस्तेमाल गलत तरीके से करोगी।"
 
छाया की आवाज़ फिर गूंजी –
"रागिनी, याद रखो – रक्त की किताब केवल शक्ति नहीं देती, यह जिम्मेदारी भी देती है। तुम जिसे चुनोगी, वही तुम्हारा भविष्य होगा।"
 
किताब के अंतिम पृष्ठों में एक चेतावनी थी:
  "पूर्णिमा की रात, जब सातवाँ दीपक जलाया जाएगा, तब आत्मा अपनी पूर्ण शक्ति में होगी। यदि तब तक उसे नहीं रोका गया, तो वह मुक्त हो जाएगी – और किसी भी शरीर में प्रवेश कर सकती है।"
 
 
 
रागिनी ने घड़ी देखी –
कल पूर्णिमा थी।
उसके पास सिर्फ एक रात बची थी।
 
 
 हवेली में फिर से गूंजे मंत्र
 
रात और गहरा चुकी थी।
 
रागिनी अब हवेली के उस हिस्से में पहुँची थी जहाँ उसकी दादी ने पहली बार साधना रोकी थी — तहखाने की गर्भगृह।
 
वहाँ किताब को रखकर उसने एक मंत्र पढ़ा — “रक्ते रक्षसि नामः स्वाहा…”
 
फर्श हिलने लगा।
 
दीवारें फटने लगीं।
 
और फिर...
 
भैरव नाथ की आत्मा ने पहली बार अपना चेहरा दिखाया।
 
काली जटाएँ, लाल आँखें, और एक गूँजती हुई आवाज़ —
"मुझे कोई किताब नहीं बाँध सकती। मैं तेरे भीतर ही हूँ, रागिनी। तुझसे ही मुक्त होऊँगा, तुझसे ही फैलूँगा…"
 
 
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अंत 
रागिनी अब दोहरे संकट में है -
1. किताब अब उसकी रक्षा नहीं कर रही, बल्कि उसकी परीक्षा ले रही है।
 
2. भैरव नाथ अब सिर्फ हवेली में नहीं, उसके मन के भीतर भी प्रवेश कर चुका है।
अब उसका अगला कदम ही तय करेगा कि वह शक्ति बनेगी या भस्म...
 
👉 अगले भाग में :
जहाँ रागिनी को पता चलेगा कि भैरव नाथ की आत्मा से उसका रक्त कैसे जुड़ा है…