पिछले भाग में:
रागिनी को अपनी दादी दिव्या चौधरी की रहस्यमयी डायरी मिली। हवेली के एक गुप्त कमरे में उसे एक स्केच मिला — “तहखाना – रक्त द्वार”। वह यह समझ चुकी थी कि इस हवेली में कुछ ऐसा है जो अधूरा है, जाग रहा है, और शायद अब उसकी राह देख रहा है...
आगे....
रात के दो बज रहे थे। पूरा गाँव नींद में डूबा था, लेकिन रागिनी की आँखों में नींद नहीं, जिज्ञासा थी। दादी की डायरी में लिखा हर शब्द उसके मन में गूंज रहा था।
उसने धीरे से बैग तैयार किया — टॉर्च, पानी की बोतल, किताब, मोबाइल, और एक तावीज़ जिसे उसकी माँ की निशानी माना जाता था। यह तावीज़ उसके पास हमेशा रहता था, लेकिन आज उसने पहली बार उसे कसकर पकड़ रखा था।
कदम धीरे-धीरे हवेली की ओर बढ़े। रास्ता सुनसान था। चाँदनी धुंध में छिपी थी और चारों ओर सन्नाटा। दूर कहीं उल्लू की आवाज़ गूंज रही थी।
जब वह हवेली पहुँची, तो गेट खुद-ब-खुद चर्ररर... की आवाज़ के साथ खुल गया — जैसे उसे आने की इजाज़त मिल रही हो।
रागिनी ने उस स्केच को फिर से देखा। उसमें हवेली के पुराने नक्शे में एक तहखाने की सीढ़ियाँ दिखाई गई थीं — जो किसी समय गायब कर दी गई थीं।
उसने हवेली के मुख्य कक्ष की ज़मीन पर ध्यान से नज़र दौड़ाई। कई बार अपनी टॉर्च की रोशनी ज़मीन पर डाली, लेकिन कुछ नज़र नहीं आया। तभी एक पत्थर पर उसका पैर लगा — वह हिला। नीचे झाँकने पर देखा, वहाँ एक छेद था।
उसने पत्थर हटाया। नीचे लकड़ी की सीढ़ियाँ थीं, जो ज़मीन से लगभग छुपाई गई थीं। धूल, जाले, और गंध से भरा यह रास्ता शायद दशकों से नहीं खुला था।
रागिनी ने गहरी साँस ली, और पहली सीढ़ी पर पैर रखा।
🔸 रक्त द्वार
तहखाने का माहौल अलग था। नीचे जाते ही जैसे हवा बदल गई। दीवारों पर तेल के पुराने दीये जले हुए थे — लेकिन यहाँ कोई नहीं था।
उसके हाथ में टॉर्च थी, फिर भी दीयों का जलना एक अजीब संकेत था।
कुछ ही दूर उसे वह दरवाज़ा दिखा — "रक्त द्वार"।
यह दरवाज़ा साधारण नहीं था। यह किसी प्राचीन तांत्रिक चक्र से घिरा हुआ था। उस पर गाढ़े लाल रंग से बने चिन्ह थे, और बीच में एक जगह पर हाथ रखने जैसा निशान।
दादी की डायरी में लिखा था:
“रक्त द्वार किसी का इंतज़ार नहीं करता। जिसे बुलाया गया हो, वही दरवाज़ा पार कर सकता है। और कीमत...? वह ख़ुद तय करता है।”
रागिनी ने अपनी हथेली उस चिह्न पर रखी।
कुछ नहीं हुआ।
उसने दोबारा कोशिश की।
इस बार दरवाज़े से एक भयानक झोंका निकला — और उसके हाथ पर एक कट बन गया। खून की कुछ बूंदें उस दरवाज़े पर गिरीं।
और जैसे ही खून उस लाल चिह्न से मिला — दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा।
🔸 दरवाज़े के उस पार...
जैसे ही रागिनी ने दरवाज़े के पार कदम रखा, सब कुछ बदल गया।
यह एक और ही दुनिया थी — स्याह, कोहरे से भरी। सामने मंदिर जैसी संरचना थी, लेकिन मूर्तियाँ टूटी हुईं थीं, और वातावरण में कुछ बोझिल था।
चारों ओर टिमटिमाती हुई नीली लौ, ज़मीन पर काली राख, और बीचों-बीच एक पत्थर की वेदी थी — जिस पर एक पुरानी किताब खुली रखी थी। किताब के चारों ओर सात दीपक जल रहे थे, और एक छायामान आकृति वेदी के पास बैठी थी।
रागिनी धीरे से पास गई।
जैसे ही वो पहुँची, वो आकृति उठी — उसका चेहरा नहीं दिखा, लेकिन उसकी आँखें गहरी, काली और बिना पलक झपकाए थीं।
उसने धीमे स्वर में कहा:
“दिव्या की वारिस आ गई…”
रागिनी काँप गई। आवाज़ उसकी दादी जैसी थी, लेकिन यह कोई आत्मा थी।
“तुम्हें मालूम है कि ये स्थान क्यों खुला?”
रागिनी ने हिम्मत कर के कहा, “मैं सच जानने आई हूँ।”
वो आकृति हँसी — एक ठंडी, सन्न कर देने वाली हँसी।
“सच...?” उसने कहा, “सच एक बोझ होता है, रागिनी। जो उसे उठाता है, वो कभी पहले जैसा नहीं रह पाता।”
उसने किताब की ओर इशारा किया।
“यहाँ उस आत्मा की कथा है, जिसे अधूरा तंत्र छोड़ गया था। तुम्हारी दादी ने उसे रोकने की कोशिश की थी। अब वह पूरी तरह जाग चुका है। और अगर तुम आई हो, तो इसका अर्थ है — या तो उसे खत्म करने आई हो... या पूरी करने।”
रागिनी ने पूछा, “मैं कैसे जानूँ, मैं क्या करने आई हूँ?”
उसने उत्तर नहीं दिया। बस एक पतली सी चिट्ठी उसकी ओर बढ़ाई, जिस पर लिखा था:
कहानी जारी रहेगी....ep 4 में
कुछ प्रश्न।
– रहस्य अब जीवन की कीमत माँगता है
रागिनी अब “सत्य” और “साधना” के बीच खड़ी है।
आगे क्या होगा?
क्या वह उस आत्मा का सामना कर पाएगी?
क्या दादी की अधूरी लड़ाई अब उसके कंधों पर है?
या यह सब एक प्राचीन तांत्रिक योजना है?