Eclipsed Love - 10 in Hindi Fiction Stories by Day Dreamer books and stories PDF | Eclipsed Love - 10

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Eclipsed Love - 10

 आशीर्वाद अनाथालय। पूरा आशीर्वाद अनाथालय अचानक जैसे शोक में डूब सा गया था। अब न यहां से कोई हंसी की आवाज गूँजती थी न किसी बच्चे के चहकने की। सबकुछ जैसे  शांति जी अपने साथ ही लेकर चली गई थी।। उनको गुजरे हुए अभी दो दिन पूरे हो चुके थे। अनाथालय में उनके आत्मा-शांति के लिए लोग आते-जाते रहते थे और असेम्बली हॉल में उनकी प्रतिमा के सामने धूप बत्ती जलाकर लोग रमा जी को सांत्वना देते और चले जाते थे।

  लेकिन पावनी ने तब से अपना दरवाजा नहीं खोला था। वह शांति जी के कमरे में खुद को  बंद  करके उनकी यादों में डूबी हुई थी।उसी रात यहां  कमरे के एक कोने में, पावनी चुपचाप बैठी हुई थी। उसकी आँखों में वह हलकी सी बुझी हुई लकीर, उसकी दिल की गहरी उदासी और अपनो के खो जाने की गहरी भावना थी। कमरे में केवल एक हल्की सी चांदनी की रेखा आ रही थी, बाकी सब कुछ अंधेरे में डूबा हुआ था। पावनी ने खुद को इस कमरे में शांति जी के यादों के बीच जैसे कैद कर लिया था। वह खाना-पीना छोड़ चुकी थी। उसकी हर सांस में एक खामोशी थी, जैसे वह अपनी जीवन की रफ्तार को रोक चुकी हो। आजकल हर पल उसे शांति जी की याद आ रही थी। जैसे कोई सूनी सी ध्वनि उसके कानों में गूंज रही हो। वह अपनी आँखों से आंसू नहीं गिरने दे रही थी, मानो वो अपनी दुखों को बिना व्यक्त किए अंदर ही अंदर समेटने की कोशिश कर रही हो। उसकी यादों में शांति जी का चेहरा था, जो हमेशा उसकी तरफ मुस्कुराती हुई देखती थी। लेकिन अब वह मुस्कान कहीं खो चुकी थी। पावनी की आँखों में एक खौफ था, एक शून्यता थी। उसे कभी कभी लगता जैसे कोई आकर  उसे कंसोल करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन जब वो खुली आँखों से देखने की कोशिश करती तो खुद को बेइंतहा तन्हा पाती। वह मन ही मन सोचने लगी, " माँ के बिना अब मेरी जिंदगी का कोई मूल्य नहीं है वो अब उसे तन्हा जीने के लिए छोड़कर चली गईं थी। “ 

 “लेकिन इतनी अटैचमेंट क्यों हो जाती है किसी से जब एक न एक दिन सभी को इस तरह से इस दुनिया से अपनो को छोड़कर जाना ही होता है।" उसने शांति जी की तस्वीर को अपने हाथों में कसकर पकड़ रखा था, मानो उस तस्वीर में ही उसकी पूरी दुनिया बस गई हो। वह उसे बार-बार देखती, उसे छूने की कोशिश करती, जैसे उसकी आत्मा को महसूस कर पा रही हो। लेकिन आंसू नहीं गिर रहे थे। 

 उसकी आँखों में अब शांति जी के जाने का दुख नहीं, बल्कि एक भयानक डर नजर आने लगा था। वह इतनी दुखी थी । कि उसने कई बार इस बन्द कमरे में खुद की जान लेने के बारे में सोचा था लेकिन हर बार वो फिर रूक जाती थी।  

 उसे अभी भी विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अब उसके पास माँ शब्द तो है लेकिन माँ कहने के लिए कोई नहीं था। "क्या यह सच है?" वह सोचती , "क्या मैं फिर कभी माँ के जैसा सच्चा प्यार और अपनापन पा सकती हूँ? माँ आप मुझे साथ लेकर क्यों नहीं गई क्यों?" वहीं  यहां नीचे असेंबली हॉल में  रमा जी इसवक्त शांति जी के प्रतिमा के सामने नीचे फर्श पर घुटनों के बल बैठी हुई थी और निशान भी उनके साथ वहीं पर बैठा हुआ था।  रमा जी ने मन मन ही भारी शब्दों में कहा-” तुम कितनी बड़ी जिमेदारी मेरे कन्धे पर डालकर चली गई  शांति ,अब तुम ही बताओ मैं कैसे संभालू इन सब को? पावनी, वो तो पूरी तरह से टूट गई है।”

 “ ये तुमने बिल्कुल अच्छा नहीं किया हमारे साथ भगवान जी।”  ये कहते हुए उनकी आंखों में उमरते आंसू अचानक छलक उठे। किसी अपने के चले जाने का ख्याल भी उन्हें अंदर तक झकझोर रहा था।आज भी रमा जी को वो दिन याद था जब उन्हें उनके अपनों ने कैसे चंद पैसों के लिए एक रेड लाइट एरिया में बेच दिया था। लेकिन तब शांति जी   ही थी जो जिन्होंने उसे उस अंधकार से निकालकर फिर से रोशनी से रूबरू करवाया था।

  उन्हें जीने का एक नया मक़सद दिया था। वो दोनों हमेशा से सगी बहनों की तरह रही थी। और ऐसे ही उन्होंने एक दिन निशान को उसके लालची अंकल आँटी से अडॉप्ट कर लिया था। क्योंकि निशान की माँ एक दुर्घटना में  चल बसी थी और उसके पिता भी  कुछ समय बाद अपनी पत्नी के गम में उनके पास चले गए और पीछे मासूम निशान को छोड़ गए। जिसपर उसके अंकल आँटी ने खूब जुल्म किया था। रमा जी से तब रहा नहीं गया और उंन्होने उसे ऑफिसियली अडॉप्ट कर लिया। कहते हैं न जब कष्टदायक वक्त होता है तो ऐसे हजार दर्द और याद आने लगते हैं जिससे और दर्द का एहसास हो और इससे मन और भारी होने लगता है। रमा जी भी इसवक्त  उन्ही जज्बातों के दर्द के एहसास से तड़प उठी थी।तभी निशान ने मजबूती के साथ उनके कंधे पर हाथ रखकर उन्हें सहानुभूति दी। तो रमा जी ने बड़ी मुश्किल से अपनी उमड़ रहे उन भावनाओं को कंट्रोल किया और साड़ी के पल्लू से आंसुओ को साफ करके निशान के सिर पर प्यार से अपना हाथ फेरा। इसके कुछ देर बाद रमा जी और निशान दोनों उस जगह से बाहर आकर दूसरी तरफ वाले  हिस्से की तरफ बढ़ गए। दरसल में असेम्बली हॉल और बच्चों के रहने की जगह विपरीत दिशा में बनाई गई थी।खैर यहांपर आने के बाद निशान ने एक बार फिर से शांति जी के रूम का दरवाजा खटखटाया और बोला-” देख पानू प्लीज यार अब तो डोर ओपन कर दे, तू ये करके क्यों हम सभी को और परेशान कर रही है यार?”  लेकिन पावनी की तरफ से कोई भी रिस्पांस नहीं आया। उसने उसे मेसेज भी किया लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला।निशान बेहद निराश होकर रमा जी के पास आकर बैठ गया और निशान पावनी के बारे में चिंतित होकर रमा जी से बात करने लगा।  निशान चिंतित स्वर में बोला-” माँ मुझे डर लग रहा है, ये लड़की ऐसे बिना खाए पिये आंखिर कब तक खुद को यूं उस कमरे  में बन्द रखने वाली है? चाहती क्या है ये अब ?”  रमा जी गहरी सांस लेकर बोली-” कुछ दुख सहने योग्य नहीं होते बेटा,  ये दर्द सिर्फ खोने वाला ही समझ सकता है।” निशान की आंखे भर आईं और वो इमोशनल होकर मन ही मन बोला- “ मुझसे बेहतर इस दर्द को और कौन समझ सकेगा माँ।”  लेकिन फिर वो रमा जी से खुद को नॉर्मल करते हुए बोला-”मुझे डर है कि वह अपने साथ कुछ गलत न कर दे, हमें उसके इमोशन को उसके अंदर से बाहर निकालना ही होगा माँ। ये लड़की रोई नहीं है पता नहीं दर्द को कैसे बर्दास्त कर रही है वो।" रमा जी ने ध्यान से उसे देखा फिर बोली -"हां, मुझे भी चिंता हो रही है उसकी। लेकिन मुझे नहीं पता कि उसे क्या समझाऊँ। वह तो पूरी तरह से टूट चुकी है और कुछ सुने तो मैं कुछ समझाऊं भी लेकिन..।" निशान ने कहा- "लेकिन ऐसे तो वो पागल हो जाएगी ना माँ?" रमा जी बोली-"वो इसवक्त खुद को समझाने की कोशिश कर रही है,  लेकिन उसका दुख इतना गहरा है कि वह किसी से बात नहीं करना चाहती। शांति जी की यादें उसे तड़पा रही हैं। वो उनसे सबसे ज्यादा अटैच्ड थी बेटा।" निशान ने कुछ भी नहीं कहा। वो बस शांत था।रमा जी आगे बोली-"मुझे लगता है, मुझे पावनी से खुद बात करनी होगी। उसे समझाना होगा कि वह अकेली नहीं है। हम सब उसके साथ हैं।" निशान कुछ कहता इतने में वहांपर रिहा भागते हुए आई और इनके सामने रुककर  हाफते हुए बोली-” " काकी , निशान भाई,  पानु डोर ओपन क्यों नहीं कर रही है? और माँ कब तक वापस आएंगी? बोलो न आप दोनों चुप क्यों हैं? “ कहते हुए वो अपनी मासूम नजरों से उन दोनों को देख रही थी। लेकिन उसके इन सवालों का न तो रमा जी के पास न ही निशान के पास कोई जवाब था। वो दोनों तो खुद परेशान हो रहे थे कि वो अब सभी बच्चों को कैसे इस परिस्थिति के बारे में समझाएंगे? क्योंकि उन्होंने अभी तक तो बड़ी मुश्किल से उन्हें ये दिलासा दिया था कि शांति जी जल्द ही हॉस्पिटल से लौटकर उनके पास आ जायेगी। तभी रिहा उन दोनों को यू चुपचाप खुद को देखते पाकर  हाथ बांधकर क्यूटली बोली-” अरे मुझे क्यों देख रहे हो अब आप दोनों मेरे सवालों का जवाब तो दो?”  जिसपर निशान ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा-”रिहा  चलो हम आइस क्रीम खाने चलते हैं,  पानु दीदी के मूड स्विंग हो रहे हैं आजकल बच्चा इसीलिए तो वो इस तरह से खुद को रूम में बन्द करके बैठी हुई है।”  ये सुनकर रिहा बोली-” ओके तो फिर चलो हम उनके लिए भी उनका फेवरेट आईसक्रीम बटरस्कॉच लेकर आयेंगे, बटर स्कोच देखते ही देखना उनका मूड एकदम फ्रेशी फ्रेशी  हो जाएगा।” जिसपर निशान ने इशारे में ही रमा जी से जाने की अनुमति मांगी और अनुमति मिलते ही वो रिहा को वहां से लेकर चला गया।  रिहा जाते हुए बोली-” निशान भाई आजकल हमारे घर पर इतने सारे  गेस्ट आते हैं लेकिन कोई चॉकलेट खाने को ही नहीं देता, इस दुनिया मे सब के साग कितने कंजूस लोग है  ?” जिसपर निशान सोच में पड़ गया कि अब वो उसे क्या जवाब दे। लेकिन फिर वो उसे समझाते हुए बोला-” रिहा गन्दी बात बच्चा ज्यादा चॉकलेट्स  खाने से सारे दांत खराब हो जाते हैं शायद इसीलिए, आजकल वो फ्रूट्स लेकर आते हैं।” जिसपर रिहा बोली-” ओह।” इसी तरह वो दोनों अब वहां से बाहर जा चुके थे। वहीं यहां रमा जी ने उनके जाने के बाद एक गहरी सांस ली फिर शांति जी के कमरे की तरफ बढ़ गई, और बाहर से डोर नॉक करते हुए बोली-” पानु बच्चा डोर ओपन करोगी, देखो बच्चा जल्दी डोर ओपन करो वरना देख लेना मैं भी …” अभी वो बोल ही  रही थी कि तभी एकदम से डोर ओपन हो गया।  रमा जी ने जैसे ही अंधेरे में पावनी का मुरझाया हुआ फूल सा चेहरा देखा तो एक बार के लिए तो उनका कलेजा भी उसकी इतनी दयनीय हालत देखकर फटने को हो आया था।  

पावनी ने एक नजर उन्हें देखा और चुपचाप अंदर चली गई। रमा जी भी उसके पीछे पीछे अंदर आ गई थी।