निशान ने पावनी की बात सुनकर उसे देखते हुए कहा-” लेकिन पानु तुम नर्क में नहीं जा सकती।”
पावनी दोनों हाथों को आपस में तेज तेज रगड़ते हुए बोली- “और क्यों नहीं जा सकती मैं जरूर जाऊंगी देखना तुम।” ये कहते हुए वो उसे देख रही थी।
निशान उसे समझाते हुए बोला-”ओफ्फो पानु जहां तक मुझे याद है ना वहां सिर्फ बुरे लोग ही जा सकते हैं और तुमने तो आजतक एक चींटी को भी नुकसान नहीं पहुचाया फिर कैसे जाओगी तुम नर्क में बताओ मुझे?”
जिसपर पावनी सीरियस चेहरा बनाकर बोली-” तो पहले मैं एक पिचासनी बनकर तुम्हारा खून पी जाऊंगी फिर तो जाऊंगी ना मैं नर्क में। देखो निशान मैं अपनी माँ से बिल्कुल दूर नहीं रहने वाली सुना तुमने?”
इतने में वहांपर रमा जी आ गई, दददू ने अनाथालय जाकर रमा जी को यहांपर भेज दिया था।
खैर रमा जी आते ही उनसे बोली-” पानु , निशान क्या तुम दोनों ठीक हो? शांति जीजी ठीक तो है ना?”
इतने में पावनी एकदम से रोते हुए भागकर आई और तुंरन्त वो रमा जी के गले से लग गई और फूटफूटकर रोने लगी।
“ देखो न काकी ये जिराफ़ मुझे कितनी देर से परेशान कर रहा है।” रमा जी ने उसके कंधे को प्यार से सहलाते हुए निशान को बुरी तरह से घूरकर देखा तो इतने में निशान भी तेजी से आया और वो रमा जी को साइड से हग करके रो पड़ा।
इसवक्त वो दोनों ही किसी मासूम बच्चे की तरह रमा जी को हग करके रोए जा रहे थे। उन्हें इस तरह से रोते देखकर रमा जी को भी रोना आ रहा था। लेकिन उन्होंने खुद को मजबूत करते हुए उन्हें धीरे धीरे कंसोल किया।
थोड़ी देर बाद जब डॉक्टर परिवेश ने आकर उन्हें बताया कि फिलहाल शांति जी की कंडीशन थोड़ी स्टेबल हो रही है और उंन्होने रमा जी को मिलने बुलाया था तो रमा जी पावनी और निशान को इशारे से समझाकर खुद शांति जी से मिलने चली गई थी।
ऐसे ही कब दिन दल गई और अंधकार ने अपना डेढ़ा जमा लिया पता ही नहीं चला।
इसवक्त रमा जी निशान दोनों के लाख बार समझाने पर भी पावनी हॉस्पिटल में शांति जी के पास ही रुकी रही और उसने निशान को रमा जी को लेकर आश्रम भेज दिया था।
रमा जी ऐसे कंडीशन में पावनी और शांति जी को छोड़कर जाना तो नहीं चाहती थी । लेकिन फिर भी शांति जी के आग्रह करने पर और बच्चों का सोचकर, सुबह आने का कहकर लाचारी में चले गई। और इतनी रात में निशान उन्हें अकेले नहीं भेज सकता था तो वो भी पावनी को अपना ख्याल रखना बोलकर रमा जी के साथ निकल गया।
देखते ही रात की नर्म चादर ने हॉस्पिटल के गलियारे को अपने आगोश में ले लिया था। हल्की ठंडी हवा सरसराती हुई दीवारों से टकरा रही थी। नीली रोशनी में भीगा माहौल, सन्नाटे में गूंजती घड़ी की टिक-टिक की आवाज।
वहीं रूम नम्बर 55 के बाहर सबसे कोने में पावनी एक बेंच पर सिर घुटनों पर टिकाए बैठी थी, उसकी साँसें हल्की और मद्धम थीं। आँखों में थकान की परछाईयाँ थीं, और होंठों पर एक अनकहा दर्द।
रमा जी और निशान के चले जाने के बाद वो काफी देर तक अपनी माँ के पास बैठी रही लेकिन फिर जब शांति की आंख लग गई तो उसे उस जगह पर घुटन महसूस होने लगी थी। इसीलिए वो थोड़ी देर खुली हवा में सांस लेने के लिए बाहर आ गई। क्योंकि वो शांति जी को ऐसे देखकर अब बेकाबू हो रही थी।
काफी देर तक बाहर कॉरिडोर में टहलने के बाद वो वहीं पड़े एक बेंच पर बैठ गई थी। वो पूरा कॉरिडोर काफी शांत था। हॉस्पिटल के और हिस्से जितनी शोर नहीं थी यहांपर । और उसे इसवक्त इसी चीज की जरूरत थी, शांति की। दिनभर की बेचैनी ने उसकी पलकों को भारी कर दिया था, और धीरे-धीरे, अनजाने में, वो नींद की आगोश में कब समा गई उसे कुछ पता
इसीबीच अचानक… हवा का रुख बदला। और ऊपर टंगा बल्ब हल्का झपका। फिर रोशनी तेज़ हुई, धीमी हुई… और एकाएक कांप उठी।
"टिक... टिक... टिक..."
घड़ी की टिक-टिक के साथ बल्ब की कंपन भी बढ़ती जा रही थी। हल्की-हल्की चिंगारियाँ उठने लगीं, जैसे कोई अदृश्य ताकत उसे फटने से रोक रही हो। लेकिन प्रकृति के नियम कहाँ किसी के बस में होते हैं?
"क्र्र्र...!"
लेकिन हमारी मासूम सी ,नाजुक सी पावनी , बेखबर सो रही थी। पर कोई था... जो बिल्कुल बेखबर नहीं था। इनफैक्ट अनाथालय से लेकर यहां आने तक उसके हर एक हरकत पर किसी की गहरी नजर थी। जो एक साये की तरह हरवक्त उसके पीछे था।
इतने में एक तेज़ चिंगारी निकली, और बल्ब दरकने लगा। काँच के टुकड़े सीधा पावनी की ओर गिर रहे थे!
लेकिन...कुछ ही पलों में, किसी ने बिजली की गति से आकर उसे अपनी छाया में जैसे छुपा लिया। काँच के टुकड़े उसे छूने भी नहीं पाए, और उस शख्स के पीठ से होकर बिखरते हुए सीधा फर्श पर गिर गए।
उस रहस्यमयी शख्स ने काले रंग का ओवरकोट और सेम कलर का फेसमास्क पहना हुआ था। लेकिन उसकी सिल्वर-ग्रे आँखे, ठंडी और स्थिर, पावनी के मासूम चेहरे पर आकर जैसे ठहर गई थीं।
पावनी का क्यूट सा चेहरा इस तरह से रोने से बिल्कुल कुमकुम की तरह ही लाली से भर गया था। वो इसवक्त बिल्कुल किसी भेड़ के क्यूट से बच्चे की तरह ही लग रही थी। हद से ज्यादा मासूम।
उसने धीरे से हाथ आगे बढ़ाया और पावनी के नर्म गालों को छूते हुए उसके आँसू पोंछ दिए।
पावनी बेशक सोई हुई थी, लेकिन उसके अवचेतन मन ने एक हल्की महक महसूस की—चंदन की, मिट्टी की… या शायद किसी की मौजूदगी की।
वहीं, वह अजनबी शख्स इसवक्त अपने अंदर एक अजीब गर्माहट महसूस कर रहा था। पावनी की स्थिर हार्टबीट उसे कुछ अलग ही अहसास दिला रही थी। पावनी में एक अनदेखी कशिश थी… जो उसे खींच रही थी।
लेकिन तभी पावनी की पलकें हल्की-हल्की फड़फड़ाईं। और अगले ही पल, उसकी आँखें खुल गईं।
उसकी साँसें ज़रा तेज़ हुईं। उसने धीरे से चारों ओर नजर दौड़ाई—उसके ठीक सामने ही कुछ क्लीनिंग वर्कर्स काँच के टुकड़े समेट रहे थे। ये देखकर उसने हड़बड़ाते हुए एक नजर खुद पर डाली लेकिन वो बिल्कुल सुरक्षित थी।
पावनी कुछ सोच पाती इतने में क्लीनिंग स्टाफ में से एक आदमी उसकी ओर देखकर बोला, "मैडम, आप ठीक हैं ना? अभी-अभी एक बल्ब टूटकर गिरा था, कहीं चोट तो नहीं आई?"
पावनी ने हल्का सिर हिलाया, "हाँ, मैं... ठीक हूँ।" ये कहते हुए उसने हल्के से नजर उठाकर ऊपर देखा , लाइट तो उसके ही ऊपर लगी हुई थी। फर कांच के टुकड़े उसके ऊपर क्यों नहीं गिरे? वो खुद हैरान थी ।
वहीं दूसरा स्टाफ मेंबर थोड़ा हैरानी से पावनी से बोला, "वैसे अजीब बात है, बल्ब सीधे यहाँ गिरा, लेकिन आपको खरोंच तक नहीं आई।"
पहला आदमी हँसते हुए बोला, "शायद किस्मत अच्छी थी।"
तीसरा कर्मचारी थोड़ा धीरे-से फुसफुसाया, "या फिर कोई था... जो इनकी रक्षा कर गया।"
दूसरे ने उसकी ओर घूरकर देखा, "अब भूत-प्रेत की कहानियाँ मत बनाने लग जाना! यह हॉस्पिटल है, कोई पुराना खंडहर नहीं!"
अपनी बातें खत्म करके वो लोग वहां से जा चुके थे। लेकिन पावनी के दिमाग में उनकी बातें सुनकर अजीब-सा खयाल आ चुका था।
कोई था...
जो आया था...
जो रुका था...
जो महसूस किया गया था, पर देखा नहीं गया।
उसने झट से आँखें बंद कर लीं। अपने बाहों को मजबूती से पकड़कर खुद को जोर से हग कर लिया।
उसकी नाजुक कलाई पर अभी भी हल्की गर्माहट थी, जैसे किसी ने उसे छूकर कुछ देर के लिए थाम लिया था।
कोई एहसास… बिना किसी स्पर्श के।
कोई लम्हा… बिना किसी आहट के।
वहीं, दूर, एक पिलर की आड़ में एक काली परछाई छुपी हुई थी।
उसने हल्के से साइड से झांककर अपनी सिल्वर कलर ही नजरों से पावनी को देखा, लेकिन तभी पावनी की पलकें फड़फड़ाईं। उसने आँखें खोलीं—पर आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था।
बस वही वीरान कॉरिडोर, ठंडी हवा… और टूटा हुआ बल्ब, जिसे अब क्लीनिंग स्टाफ समेटकर जा चुका था । वो मिस्टीरियस आदमी भी फिर से उस पिलर के पीछे छिप चुका था।
जैसे ही पावनी उठने लगी, उसकी नजर बेंच के पास रखे खाने के सामान पर गई। उसने हल्के से छूकर देखा—खाना अब भी गर्म था। उसके साथ रखा एक छोटा-सा नोट उसकी नज़र में आया: "खाना खा लेना, बेबी गर्ल।"
नोट पढ़कर उसने अजीब सा मुँह बनाया। खाना सूँघा, तो हल्की सुकून भरी महक आई।
"ये क्या है, निशान? अब ये 'बेबी गर्ल' कौन है ? ये उसने जरूर किसी को मेरे लिए रखने को कहा होगा! बिल्कुल पागल है वो।" उसने खुद से बुदबुदाया। और वो खाना लेकर शांति जी के पास जाने के लिए उठ गई।
लेकिन जैसे ही उसने एक कदम आगे बढ़ाया तभी—एक धीमी-सी हवा चली, और उसके बाल हल्के से उड़ गए। जैसे किसी ने उसे हल्के से दूर से छू दिया हो।
लेकिन पावनी ने मुड़कर देखने की कोशिश भी नहीं कि क्योंकि हवा तेज चल सकती थी और उसे लग रहा था जरूर वो ज्यादा टेंशन की वजह से या फिर नींद पूरी न हो पाने के कारण पागल हो रही है। उसने उस गर्मागर्म खाने को देखकर गहरी सांस ली फिर खुद के चेहरे पर जबर्दस्ती स्माइल लाकर आगे बढ़ गई।
कोई था…जो उसे छूकर भी ना छू सका जो रुककर भी ना दिख सका जो चाहा भी… और फिर भी दूर रहा।
पावनी उस अनकहे स्पर्श में उलझकर रहने वाली थी या फिर कुछ नया होने वाला था?