✨फ़ासले, फ़ोन कॉल्स और मोहब्बत का सब्र✨
("कभी-कभी मोहब्बत का सबसे सच्चा रूप वो होता है, जब लोग दूर रहकर भी रोज़
एक-दूसरे में जिए।")
PG बदला, मगर दिल नहीं
कुछ दिनों बाद आरजू ने अपना PG शिफ्ट कर दिया। अब वो पहले वाली बिल्डिंग से करीब 2 किमी दूर थी - कोई और रूममेट मिल गई थी, जगह थोड़ी सस्ती थी और सुकूनदायक भी।
दानिश ने सुना तो कुछ पल चुप रहा, फिर मुस्कुराकर बोलाः
"अच्छा किया... अब किसी और को जलाने का मौका मिलेगा, जो तुम्हारे नए PG में आएगा।"
आरजू हँस दी लेकिन उसकी आँखों में हल्की सी नमी थी। उसे पता था, अब वो रात की सीढ़ियों पर मिलने वाले लम्हे, वो सीढ़ियों पर बैठे-बैठे बिस्कुट बांटने वाले किस्से, अब सिर्फ याद बनेंगे।
हालाँकि PG बदल गया था, मगर आरजू ने लाइब्रेरी नहीं बदली।
आरजू - "तुम्हें छोडकर किसी और लाइब्रेरी का माहौल नहीं जंचेगा।" दानिश - "और तुम्हें देखकर मेरी पढ़ाई का फोकस उड़ जाता है।"
आरजू - "तो मत देखो... पढ़ लो।"
दानिश - "नज़रें रोक सकता हूँ, पर दिल नहीं"
आरजू - "मुस्कुराते हुए बोली ज्यादा मस्का मत लगाओ।"
अब वो रोज़ सुबह थोड़ी देर चलकर लाइब्रेरी आती। और दानिश, हर बार उसके लिए पानी की बोतल और उसका पसंदीदा सीट रिजर्व करके रखता।
PG की दूरी ने एक नई नज़दीकी दी और वो थी रात की कॉल्स।
हर रात, 10:45 बजे के बाद आरजू और दानिश, एक-दूसरे के दिन के बारे में बात करते।
दानिश - "आज मेने GS2 पढ़ा..."
आरजू - "मुझे पॉलिटी में कन्फ्यूजन है... थोड़ा explain करोगे कल?"
दानिश - "हां, लेकिन तुम जवाब खुद सोचो पहले।"
आरजू - "तुमसे बात करके ही तो clarity आती है...
धीरे-धीरे अब उनके कॉल्स सिर्फ़ पढ़ाई नहीं, सुकून बन चुके थे। कभी दोनों फोन पर एक-दूसरे की चुप्पियों को भी सुनते। कभी सिर्फ इतना कहतेः
"कुछ मत बोलो... बस मुझे सुनो।"
एक रात दानिश का UPSC मॉक इंटरव्यू खराब गया। आत्मविश्वास हिल चुका था। उसने आरज़ू को कॉल किया, आवाज भारी थीः
दानिश - "आज बहुत बुरा लगा यार... ऐसा लग रहा जैसे मैं कभी नहीं कर पाऊँगा।"
आरजू - "तुम्हें पता है, सबसे बड़ी बात क्या है?"
दानिश - "क्या?"
आरजू - "तुम कभी हार नहीं मानते... और जब तुम थकते हो, तो मैं तुम्हारे लिए लड़ती हूं।"
दानिश - "तुम मेरे लिए क्यों लड़ती हो?"
आरजू - "क्योंकि तुम्हें खुद पर भरोसा जब नहीं होता, तब मैं तुम्हारे हिस्से का भरोसा रखती हूँ।"
दानिश चुप हो गया। फिर धीरे से बोलाः
दानिश - "काश... इस वक्त तुम पास होती।"
आरजू - "पास तो हूँ... फोन की इस तरफ, तुम्हारे दिल के उतने ही पास।"
अगले दिन सुबह 7 बजे। दानिश अपनी PG के बाहर चाय के लिए निकला। वहाँ अचानक एक रिक्शा रुका। जिसमें से आरजू उत्तरी हाथ में पराठे और चाय का थर्मस लिए।
आरजू - "आज तुम्हारी हिम्मत मैं बनूंगी। खाना खाओ, फिर पढ़ाई करो।"
दानिश की आँखों में नमी थी।
दानिश - "तुम... इतनी सुबह?"
आरजू - "जिसकी परवाह हो, उसके टूटने से पहले पहुंचना जरूरी होता है।"
उस दिन दानिश की डायरी की आखिरी लाइन थीः
"अब मोहब्बत मिलकर रहने से नहीं, फ़ासले में साथ निभाने से साबित होती है।
और वो निभा रही है... हर रोज़।"
(अब उनका रिश्ता फ़िज़िकल दूरी से ऊपर उठ चुका है। अब वो दो जिस्म नहीं, एक रूह के दो हिस्से हो चुके हैं- जो रोज़, एक-दूसरे की आवाज में जिया करते हैं। अब आगे हम देखेंगे जब वो दोनों एक साथ एक राज्य की PCS परीक्षा देने जाते हैं, और वहीं, पहली बार दोनों अपने रिश्ते को एक नाम देते हैं- प्रेम।)
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