Khoon ki Tika - 4 in Hindi Crime Stories by Priyanka Singh books and stories PDF | खून का टीका - भाग 4

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खून का टीका - भाग 4

कमरा अचानक अंधेरे में डूब गया। दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया और बाहर से ताले की आवाज़ आई। अनन्या ने घबराकर विक्रम का हाथ पकड़ा।

"ये क्या हो रहा है विक्रम? कोई हमें यहाँ बंद कर रहा है!"

विक्रम ने दीवार पर हाथ फेरते हुए कहा –
"यह हवेली सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं है अनन्या… यह जिंदा है। यहाँ हर कोना, हर दीवार हमें देख रही है।"

अनन्या काँप गई। तभी कमरे के कोने में रखा पुराना आईना चमकने लगा। आईने में धुंधली-सी परछाई उभर आई – सरोज की।

"माँ…!" अनन्या चीख पड़ी।


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सरोज की चेतावनी

आईने के भीतर से धीमी, दर्दभरी आवाज़ आई –
"अनन्या… भागो यहाँ से। यह खून का टीका सिर्फ मेरी मौत का नहीं, बल्कि हमारे पूरे खानदान के पाप का गवाह है। जिस सच्चाई की तुम तलाश कर रही हो… वो इतनी भयानक है कि तुम्हारी दुनिया हिल जाएगी।"

अनन्या रोते हुए बोली –
"माँ, मुझे सच बताओ! पापा ने आपको क्यों मारा? और ये खून का टीका आखिर है क्या?"

सरोज की परछाई कांपते हुए बोली –
"तुम्हारे पापा अकेले नहीं थे… इस खेल में कोई और भी है। जिस पर तुम सबसे ज्यादा भरोसा करती हो… वही तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन है।"

इतना कहकर परछाई गायब हो गई। आईना चटक गया और कमरे में गूंज उठी तेज़ हवा की आवाज़।


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विक्रम का रहस्यमय चेहरा

अनन्या ने डरते हुए विक्रम की तरफ देखा –
"विक्रम… क्या तुम्हें कुछ पता है? माँ किसकी बात कर रही थीं?"

विक्रम चुप रहा। उसकी आंखें आईने के टुकड़ों पर जमी थीं। फिर धीरे से बोला –
"अनन्या… कुछ बातें मैं अब तक तुमसे छुपा रहा था। सच ये है कि… तुम्हारी माँ की मौत वाली रात मैं भी हवेली में था।"

अनन्या का दिल जैसे रुक गया।
"तुम… वहाँ थे?"

विक्रम ने हां में सिर हिलाया।
"हाँ। मैंने उस रात बहुत कुछ देखा… पर सच बताने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाया।"


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रहस्यमय आवाज़ और पुराना कमरा

तभी कमरे की दीवार से एक धीमी आवाज़ आई – जैसे कोई फुसफुसा रहा हो – “अनन्या… सच्चाई तहखाने में छिपी है…”

विक्रम ने दीवार पर हाथ रखा। वहाँ एक गुप्त दरवाज़ा था। दरवाज़ा खोलते ही सीढ़ियाँ नीचे अंधेरे में उतर रही थीं।

अनन्या और विक्रम धीरे-धीरे नीचे उतरे। हर कदम पर हवा ठंडी होती जा रही थी और सन्नाटा गहरा।

नीचे पहुँचते ही उन्हें एक पुराना कमरा मिला। कमरे में जंग लगे हथियार, खून के दाग और एक बड़ा-सा लोहे का संदूक पड़ा था। संदूक पर वही खून का टीका बना हुआ था।


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संदूक का राज़

अनन्या ने कांपते हाथों से संदूक खोला। अंदर पुराने दस्तावेज़, कुछ फोटो और एक लाल चुनरी रखी थी – जिस पर खून के निशान थे।

फोटो में सरोज और राघव के साथ एक और शख्स था – वही आदमी जो हवेली की पुरानी तस्वीर में भी था। लेकिन इस बार फोटो के पीछे नाम लिखा था – विक्रम के पिता – बलराज।

अनन्या ने डरकर विक्रम की ओर देखा –
"ये… तुम्हारे पिता हैं?"

विक्रम की आंखों में अजीब-सी चमक आ गई।
"हाँ, और सच यही है अनन्या… मेरी माँ की मौत के पीछे तुम्हारे पिता थे, और तुम्हारी माँ की मौत के पीछे मेरे पिता। ये खून का टीका… दोनों परिवारों के पाप का सबूत है।"


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सस्पेंस का अगला मोड़

अनन्या पीछे हट गई।
"मतलब… ये बदले की कहानी है?"

विक्रम ने ठंडी हँसी के साथ कहा –
"बदला… जो पीढ़ियों से चल रहा है। और अब इसे खत्म करने का एक ही तरीका है – या तो हम दोनों साथ मिलें… या एक-दूसरे को खत्म करें।"

तभी ऊपर से ज़ोरदार धमाका हुआ। हवेली का दरवाज़ा अपने आप खुल गया और पुलिस की सायरन की आवाज़ आने लगी।

अनन्या ने हैरान होकर पूछा –
"पुलिस… यहाँ कैसे?"

विक्रम मुस्कुराया –
"क्योंकि मैंने बुलाया है… लेकिन इस बार सच बताने के लिए नहीं, तुम्हें गिरफ्तार कराने के लिए!"


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(अगले भाग में – क्या सच में विक्रम ही असली गद्दार है? या कोई तीसरा खेल खेल रहा है? हवेली का राज़ अब पूरी तरह खुलने वाला है!)