"कभी-कभी अंधेरे में वो नहीं छुपा होता जिससे हम डरते हैं, बल्कि वही होता है जिसे हम जानते थे... बस पहचान नहीं पाते।"
सुबह के तीन बज रहे थे। गाँव के हर कोने में सन्नाटा पसर चुका था, लेकिन बूढ़ी हवाओं में एक अजीब-सी फुसफुसाहट थी — जैसे कोई बहुत पुराना राज अब बाहर आने को छटपटा रहा हो। काली रात का वो हिस्सा था जब परछाइयाँ भी खुद से डरती थीं। और तभी, 'तलवारपुर' के पास वाले सुनसान कुएं से एक औरत की हँसी गूंजी — न तेज, न धीमी, बस इतनी कि रीढ़ की हड्डी में एक सिहरन दौड़ जाए।
तलवारपुर गाँव में एक प्राचीन हवेली थी — "कुमुद विला"। सौ साल पुरानी इस हवेली के बारे में कहा जाता था कि वहाँ कोई नहीं बसता, बस "कुछ" रहता है। गाँव वाले इसे नज़रअंदाज़ करते थे, लेकिन काली रात को, जब आसमान बादलों से ढँक जाए और कुत्ते बिना वजह भौंकें, तो लोग दरवाजे बंद कर लेते, माँएं बच्चों को गले लगाकर सुला देतीं।
आरव, एक यूट्यूब घोस्ट हंटर, अपने दोस्तों नेहा और विशाल के साथ तलवारपुर आया। उनका मकसद था "कुमुद विला" की सच्चाई सामने लाना वो वीडियो बनाना चाहते थे जिससे उन्हें वायरल फेम मिले। लेकिन फेम की तलाश कभी-कभी मौत के कुएं तक ले जाती है।
हवेली में घुसते ही कुछ अजीब सा लगा। पूरा वातावरण जैसे सांसें रोक कर उन्हें देख रहा था। दीवारों पर उकेरी गईं आकृतियाँ बदलती सी लग रही थीं। आरव ने कैमरा ऑन किया, लेकिन स्क्रीन पर सिर्फ "STATIC" दिखा। नेहा को अचानक ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी पीठ पर हाथ रखा हो, लेकिन पीछे कोई नहीं था।
अचानक एक दरवाजा अपने-आप खुला। उसके पार एक कमरा था, जहाँ एक शीशा रखा था — धूल से ढँका हुआ, लेकिन जैसे किसी ने अभी-अभी उसमें देखा हो। विशाल ने झाँका, और... उसके चेहरे की रंगत उड़ गई।
"उस शीशे में हम तीन नहीं... चार थे।"
कमरे के बीचों-बीच एक लकड़ी की पालकी रखी थी, जालीदार, सजी हुई — जैसे किसी नवविवाहिता की विदाई के लिए रखी गई हो। लेकिन उस पर खून के छींटे थे — सूखे हुए, फिर भी ताजे लगते। नेहा ने उसके पास कदम बढ़ाया ही था कि पालकी अपने आप थरथराने लगी।
दरवाजे बंद हो गए। हवा रुक गई। और फिर एक कर्कश आवाज़ गूंजी — "कुमुद वापस आ गई है..."
वे भागने लगे, लेकिन हवेली अब भूलभुलैया बन चुकी थी। हर दरवाज़ा उन्हें उसी कमरे में लौटाता जहाँ पालकी थी। और हर बार, पालकी के पास एक नई लाश रखी मिलती — अजनबियों की, जो सालों पहले लापता हुए थे।
और फिर, एक पुराना डायरी मिला — "कुमुद की डायरी"।
कुमुद तलवारपुर के जमींदार की बेटी थी, जिसकी शादी जबरन एक तांत्रिक से कर दी गई थी। शादी के बाद उसकी आत्मा को पालकी में बाँध दिया गया था, ताकि वो कभी भाग न सके।
डायरी की आखिरी पंक्ति थी:
"मैं लौटूंगी, हर सौवें साल... अपने दूल्हे को साथ ले जाने..."
साल था — 2025।
पिछली बार वह 1925 में आई थी।
विशाल, जो सबसे ज्यादा डरा हुआ था, गायब हो गया। खोजने पर वह पालकी के पास बैठा मिला — बिल्कुल शांत। लेकिन उसकी आँखें पूरी तरह काली हो चुकी थीं। वो धीरे-धीरे बोल रहा था —"अब वो मुझमें है... अब मैं कुमुद हूँ..."
नेहा चिल्लाई, आरव ने भागने की कोशिश की, लेकिन हवेली के दरवाज़े अब दीवार बन चुके थे। उन्होंने देखा कि कैमरे में सब रिकॉर्ड हो रहा है, लेकिन स्क्रीन पर कोई चेहरा नहीं था, सिर्फ आवाज़ें —
"काली रात कभी खत्म नहीं होती..."
दो दिन बाद, तलवारपुर के पास एक बंजर खेत में एक कैमरा मिला।
वीडियो में सिर्फ एक आखिरी क्लिप थी —
नेहा खून से लथपथ भाग रही थी, पीछे से वही हँसी आ रही थी जो उस कुएँ से शुरू हुई थी।
और आखिरी फ्रेम में एक टेक्स्ट उभरा —
"AGAIN… IN 2125..."
क्या वो वाकई मर गए?
या कुमुद अब किसी और रूप में हमारे बीच है?
काली रात फिर आएगी... और इस बार... शायद तुम्हारी बारी हो...