"जो प्यास कभी बुझती नहीं, वो सिर्फ पानी की नहीं होती…"
बारिश की रात थी। बादल गरज रहे थे जैसे आसमान भी किसी अज्ञात भय से काँप रहा हो। जंगल के किनारे बसे भैरवपुर गाँव में बिजली नहीं थी, और हर घर के दरवाज़े मजबूती से बंद थे। लोग कहते थे, जब-जब बारिश की बूंदें छत पर ज़ोर से गिरें और हवा की सरसराहट सीने में डर बनकर समा जाए, तब एक औरत की सिसकियाँ सुनाई देती हैं—धीरे-धीरे पास आती, जैसे कोई अपनी प्यास बुझाने चल रही हो...
भैरवपुर का वो पुराना कुआँ अब सूखा पड़ा था। गाँव के बच्चे भी उसके पास जाने से डरते थे। कहते हैं, कोई अंदर से "पानी... दो..." की कराह भरी आवाज़ में बड़बड़ाता है।
एक दिन, शहर से आए दो रिसर्च स्कॉलर—नील और श्रेया—गाँव के इस रहस्य पर डॉक्यूमेंट्री बनाने आए। गाँववालों ने उन्हें रोका, खासकर उस कुएँ की तरफ़ जाने से। लेकिन नील को रोमांच चाहिए था, और श्रेया को सच्चाई।
रात के दो बजे, दोनों कैमरा लेकर कुएं के पास पहुँचे। अजीब सी ठंड थी, हवा रुकी हुई थी, और आसपास की चुप्पी कान फाड़ देने वाली।
श्रेया ने जैसे ही कुएं में झाँका, अंदर से किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।
वो चीखी। लेकिन नील ने देखा—कुएं में कुछ नहीं था।
अगले दिन, गाँव के सबसे बूढ़े व्यक्ति कालीराम बाबा ने बताया—
"सौ साल पहले इस गाँव में एक औरत रहती थी—चंपा। रूप की रानी थी वो, लेकिन उसके पति ने उसे दहेज के लिए जला दिया। वो भागी, जलती हुई, और सीधे इसी कुएं में कूद गई। लेकिन मरने से पहले उसकी प्यास सिर्फ पानी की नहीं, बदले की भी थी।"
"कहते हैं, उसकी आत्मा अब भी इस कुएं में है। वो लड़की की तलाश में है—जो उसके जैसी दिखती हो, ताकि उसमें समा सके और फिर दुनिया से बदला ले सके…"
नील और श्रेया ने इसे लोककथा समझकर अनदेखा कर दिया।
लेकिन उस रात, श्रेया के बाल अपने आप खुले, उसके हाथ में छाले उभर आए, और आँखों से खून टपकने लगा।
वो बड़बड़ा रही थी—"पानी... दो... नहीं तो तुम सब जल जाओगे…
श्रेया धीरे-धीरे बदलने लगी। उसकी आवाज़ भारी और पुरुषों जैसी हो गई। रात को वो अकेले जंगल की तरफ जाती और सुबह लौटती—भीगी हुई, जैसे कहीं गहरे पानी में डूबी हो।
नील को शक हुआ, उसने कैमरा छुपाकर उसके कमरे में लगा दिया।
अगली सुबह, जब उसने फुटेज देखी—उसका खून जम गया।
वीडियो में आधी रात को, श्रेया का चेहरा अचानक बदल गया था—बिलकुल झुलसी हुई चमड़ी, लाल आँखें और एक लंबी जीभ जो ज़मीन तक लटक रही थी। वो बड़बड़ा रही थी—"मेरा बदला अभी अधूरा है... मैं प्यासी हूँ... मुझे और चाहिए..."
नील गाँव छोड़ने को तैयार हुआ, लेकिन श्रेया ने मना किया।
रात को वो गायब हो गई। अगले दिन, गाँव की तीन महिलाएं कुएं में मरी पाई गईं—सभी के गले सूखे, जैसे किसी ने अंदर का पानी चूस लिया हो।
गाँव में हाहाकार मच गया। कालीराम बाबा ने कहा, "अब उसकी प्यास बढ़ रही है... वो अब इंसान नहीं रही… वो अब अमरतृष्णा बन गई है—वो जिसे मरने के बाद भी प्यास है।"
नील ने आखिरी बार श्रेया को ढूंढने की ठानी। वो अकेले जंगल में गया।
नील ने श्रेया को उस रात उस सूखे कुएं के पास पाया। वो ज़मीन पर बैठी थी, लेकिन उसका चेहरा अब पूरी तरह चंपा का बन चुका था।
"तुम्हें क्या चाहिए?" नील ने काँपती आवाज़ में पूछा।
"तू... तू आखिरी है..." उसकी आवाज़ गूँजी, "अब मैं पूरी हो जाऊँगी..."
और तभी...
श्रृंखला की तरह ज़मीन काँपी, कुआं फटा और अंदर से पानी नहीं, खून उबाल की तरह फूट पड़ा।
एक भीषण चीख के साथ श्रेया की देह हवा में पिघलने लगी। नील ने देखा, उसकी आँखें अब भी रो रही थीं... लेकिन न आंसू गिर रहे थे, न पानी।
अगली सुबह...
श्रेया गायब थी।
नील पागल हो चुका था—वो अब हर लड़की को देखता और चिल्लाता, "वो उसमें है! मत भरोसा करो... उसकी प्यास अभी भी बाकी है!!"
भैरवपुर अब एक वीरान गाँव है।
पर हर साल, उसी तारीख़ को, बारिश की रात में... किसी लड़की की कराह सुनाई देती है:
"पानी दो... वरना तुम जल जाओगे..."
क्या तुमने आज रात पानी पिया...?
क्योंकि शायद वो तुम्हारे पास है... प्यासे चेहरे के साथ...
और अगली बारी... तुम्हारी हो सकती है...