(कुमुद को मृणालिनी की शादी की सूचना मिलती है और वह रिया के साथ जाने का वादा करती है। खन्ना हाउस में हल्दी की रस्मों की तैयारियाँ जोरों पर हैं। प्रिया, मृणालिनी के साथ रहती है और रिया की पढ़ाई को लेकर मज़ाक करती है। कुमुद और वैभव की प्यारी नोकझोंक शादी के माहौल को खुशनुमा बनाती है। रिया पढ़ाई में उलझी होती है, लेकिन कुमुद की डांट पर तैयार होती है और शर्त के पंद्रह हजार कुमुद जीत जाती है। शादी में रिया की पहली मुलाकात आदित्य से होती है, वहीं आदित्य की माँ ललिता राठौड़ रिया में गहरी रुचि दिखाती हैं। अब आगे)
रिया के लिए रिश्ता
ललिता राठौड़ के दिल-दिमाग पर अब बस एक ही नाम छाया था — रिया।
हर बार आंखें बंद करती, वही चेहरा सामने आ जाता।
उसने मोबाइल उठाया, नंबर घुमाया और मुस्कराते हुए कहा –"आदित्य के लिए लड़की मिल गई है... एकदम परफेक्ट।"
फोन रखते हुए वह कमरे की ओर बढ़ी, होंठों पर विजयी मुस्कान और मन में गुनगुनाहट।
उसी समय, दूसरी ओर आदित्य अपनी स्टडी में बैठा रिया की पेंटिंग में डूबा था।
उसके ब्रश की हर चाल मानो रिया की आंखें, मुस्कान और खामोशी को कैद कर रही थी।
तभी कुणाल वहां आया।0"भैया ये कौन?"
पीछे से आती आवाज़ ने उसका सवाल दबा दिया "इस घर की बहू है ये,"
ललिता ने आत्मविश्वास से कहा, जैसे फ़ैसला पहले ही हो चुका हो।"हमने इस घर की बड़ी बहू चुन ली है।"
कुणाल कुछ बोलना चाहता था, लेकिन ललिता ने उसकी तरफ देखा तक नहीं। वह सिर्फ आदित्य से बोली –"तैयार हो जा, चलना है।" और बिना पलटे बाहर निकल गई।
कुणाल वहीं खड़ा रह गया — आंखों में दर्द, पर चेहरे पर बनावटी मुस्कान। "बड़ी बहू… मतलब मेरी भाभी।"
उसने पेंटिंग को देखा और हल्की मुस्कान के साथ आंखों की नमी छुपा ली।
कुछ देर बाद आदित्य बाथरूम से निकला, बाल संवारते हुए –"तो कैसी लगी तेरी भाभी?" कुणाल ने खुद को संभालते हुए पूछा –"आप उसे… सच में पसंद करते हैं?"
आदित्य की आंखों में गहराई उतर आई –"पसंद से भी बढ़कर। रिया को देखकर लगता है जैसे… मैं उसे पहले से जानता हूं। वो बाकियों से अलग है कुणाल, बहुत अलग।"
कुणाल ने जबरन हंसी लाई –"तो फिर मम्मी की तो निकल पड़ी… बड़ी बहू मिल गई!" लेकिन उसके अंदर कुछ दरक रहा था। "मुझे बताना भी ज़रूरी नहीं समझा…"
सोचते हुए वो चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया।
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सीन: डोगरा हाउस – चुप्पी और चौंकाहट
शाम के वक्त रिया खिड़की से बाहर देख रही थी। आंखों में सोच, चेहरा शांत, पर मन बेचैन। कुमुद कमरे में आई – "रिया बेटा, तू आजकल बहुत गुमसुम रहती है। सब ठीक है ना?"
रिया चौंकी, फिर मुस्कराई –"कुछ नहीं चाची, बस… थोड़ा सा उलझन है।"
कुमुद पास आकर बैठ गई –"उलझन को बढने मत दे । जो मन में है, मुझे बता सकती है।"
रिया कुछ कहने ही वाली थी कि बाहर से गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया। कुमुद खिड़की की ओर दौड़ी –
"कोई आया है… शायद कोई मेहमान।"
दोनों बाहर आईं।
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सीन: रिश्ते की दस्तक
दरवाज़े पर ललिता राठौड़ खड़ी थीं — हाथ में गिफ्ट बॉक्स और शगुन की थाली। कुमुद चौंक गई – "अरे आप? आइए…"
ललिता मुस्कराई –"रिया से मिलने आई हूं, रिश्ता लेकर।"
अंदर खड़ी रिया के पैरों तले जैसे ज़मीन खिसक गई। चेहरे पर घबराहट, आंखों में सवाल।
कुमुद धीरे से बोली –"किसके लिए?"
"आपकी बड़ी बेटी रिया के लिए।"
कुमुद का चेहरा गंभीर हो गया। "माफ कीजिए, रिया अभी शादी नहीं करना चाहती। उसकी पढ़ाई कर रही है… और उसकी मर्ज़ी के खिलाफ मैं कोई फ़ैसला नहीं ले सकती।"
रिया की आंखों में संतोष और कृतज्ञता की चमक आ गई।
ललिता के चेहरे से मुस्कान थोड़ी फीकी पड़ी, लेकिन उसने खुद को संयमित किया –"कोई बात नहीं।"
कुमुद ने झुककर क्षमा मांगी। ललिता बिना कुछ खाए या बोले वहां से निकल गई।
रिया कुमुद से लिपट गई –"आपने मेरी बात कह दी चाची… शुक्रिया।"
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सीन: राठौड़ मेंशन – चालें शुरू
कार में बैठते हुए ललिता के चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान थी। उसने बुदबुदाया – "रिया ही बनेगी मेरी बहू… चाहे जैसे भी।" उसने मोबाइल उठाया – "बिन्नी! अभी मिलो मुझसे।"
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सीन: राठौड़ हॉल – सौदा और साजिश
ललिता जैसे ही घर पहुंची, बिन्नी पहले से इंतज़ार कर रही थी। उसने रिया की तस्वीर उसकी ओर फेंकी – "जो भी करना पड़े, करो। मुझे आदित्य की शादी रिया से करवानी है।"
बिन्नी ने रुकते हुए कहा –"वो वैभव डोगरा की भतीजी है।"
ललिता ने झल्लाकर कहा –"पहचान बताने को नहीं कहा… रास्ता बताओ!"
बिन्नी ने धीरे से कहा –"डोगरा परिवार अपनी दूसरी बेटी प्रिया के लिए लड़का देख रहा है। अगर कुणाल बाबा से रिश्ता..."
"ठीक है," ललिता ने बीच में ही कहा।
बिन्नी ने जोड़ा – "एक बात है… प्रिया थोड़ी लंगड़ाकर चलती है।"
ललिता चौंकी –"रिया को मैंने कभी…"
बिन्नी जल्दी से बोली – "नहीं नहीं, रिया नहीं… प्रिया।"
ललिता ने राहत की सांस ली। "बाकी सब ठीक है न?"
"जी हां, बाकी सब एकदम परफेक्ट।"
"तो जाओ… बात आगे बढ़ाओ।"
बिन्नी मुस्कराते हुए पैसे समेटकर चली गई।
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सीन: मां और बेटा – दिखावे का ममत्व
ललिता चुपचाप कुणाल के कमरे में आई। कुणाल मां को देखकर हैरान हो गया –"अरे मां! आप?"
ललिता गंभीर होकर बोली – "तू आदित्य के लिए कुछ भी कर सकता है?"
"बिल्कुल मां।"
"तो उसकी ख़ुशी के लिए तू रिया की छोटी बहन प्रिया से शादी कर सकता है?"
कुणाल ने झट से हामी भर दी। उसे लगा शायद मां उसे गले लगाएंगी… पर ललिता सिर्फ बोली –"गुड।" और बिना मुस्कराए बाहर निकल गई।
कुणाल ने एक छोटी सी मुस्कान के साथ खुद को समझाया –"मां ने मेरे लिए लड़की चुनी है… इसका मतलब वो मुझे भी चाहती हैं।" लेकिन उसकी आंखों में कहीं सच्चाई की दरारें झलकने लगी थीं…
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1. क्या ललिता राठौड़ की यह ज़िद राठौड़ और डोगरा परिवारों के बीच किसी पुराने विवाद की आग को फिर से नहीं भड़का देगी?
2. क्या प्रिया को इस साज़िश की भनक लग जाएगी और वह अपनी बहन रिया को इस जबरदस्ती के रिश्ते से बचा पाएगी?
3. कुणाल, जो अपनी मां के स्नेह को तरस रहा है, क्या उसे सच्चाई का पता चलने पर अपने निर्णय पर पछतावा होगा या फिर वह भी इस खेल का मोहरा बन जाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफर''।