Tere Mere Darmiyaan - 1 in Hindi Love Stories by Neetu Suthar books and stories PDF | तेरे मेरे दरमियाँ - 1

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तेरे मेरे दरमियाँ - 1


 एपिसोड 1 — तेरे मेरे दरमियाँ का
पहला अध्याय: “पहली टकराहट”


🌸 एपिसोड 1: पहली टकराहट

स्थान: उदयपुर, राजस्थान
समय: जुलाई की शुरुआत — हल्की बारिश का मौसम

सुबह के सात बजे थे। उदयपुर की संकरी गलियों में हल्की बारिश की बूंदें मिट्टी से मिलकर एक मोहक सी खुशबू फैला रही थीं। संजना शर्मा अपनी साइकिल पर कॉलेज की ओर जा रही थी। उसका दुपट्टा हवा में लहरा रहा था, और कानों में ईयरफोन — लता मंगेशकर की कोई पुरानी मोहब्बत भरी धुन चल रही थी।

“आज फिर लेट हो रही हूँ...” — उसने खुद से बड़बड़ाया।

वो एक गरीब परिवार की इकलौती बेटी थी, जिसने मेहनत से शहर के सबसे बड़े कॉलेज में दाख़िला लिया था — “राजमहल कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस”। वहाँ के स्टूडेंट्स के पास गाड़ियों की कमी नहीं थी, लेकिन संजना अब भी साइकिल से कॉलेज जाती थी, और इसे ही अपनी पहचान मानती थी।

कॉलेज का गेट
कॉलेज के गेट पर जैसे ही उसने साइकिल रोकी, तभी एक चमचमाती ब्लैक बीएमडब्ल्यू उसकी साइकिल के एकदम करीब आकर रुकी।

चटाक!
पानी से भरा गड्ढा छपका और उसके सफेद सलवार पर कीचड़ के छींटे पड़ गए।

"क्या बदतमीज़ी है ये!" — उसने गुस्से से कार की ओर देखा।

दरवाज़ा खुला। काला चश्मा, ब्रांडेड जैकेट और कॉन्फिडेंस से भरा चेहरा — आरव मल्होत्रा।

"ओह... आई एम सॉरी," उसने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन उसके लहजे में माफ़ी कम, मज़ाक ज़्यादा था।

"सॉरी? ये क्या तरीका है कार चलाने का?" — संजना का गुस्सा अब भी उतरा नहीं था।

आरव ने अपनी आँखों से उसे ऊपर से नीचे तक देखा, जैसे वो कोई मज़ेदार चीज़ हो।
"तुम्हें तो थैंक्स बोलना चाहिए — मैंने तुम्हारी साइकिल को छुआ भी नहीं।"

"अच्छा? और ये कपड़े? इन पर जो कीचड़ है, वो तुम्हारी बीएमडब्ल्यू से आया या बादलों से टपका?"

आरव हँस पड़ा — एक धीमा, मगर ताना मारने वाला हँसी।
"तुम बहुत बात करती हो, मिस...?"

"संजना शर्मा!" — उसने तेज़ी से जवाब दिया।

"ठीक है, संजना जी। अगली बार ध्यान रखूँगा। वैसे भी, यहाँ के लोग इतने सेंसिटिव हैं, पता नहीं कार चलानी है या डोंगी!"

और वो सीटी बजाते हुए अंदर चला गया।

संजना का मन कर रहा था कि उसकी बीएमडब्ल्यू के टायर पंचर कर दे। लेकिन उसने खुद को रोक लिया।

क्लासरूम में
कॉलेज का पहला दिन था। सभी नए स्टूडेंट्स की ऑरिएंटेशन हो रही थी। सामने स्टेज पर प्रिंसिपल, प्रोफेसर और कुछ खास स्टूडेंट्स बैठे थे।

“हमारे कॉलेज का सबसे होनहार स्टूडेंट, और इस साल का स्टूडेंट काउंसिल प्रेसिडेंट — आरव मल्होत्रा!”

हॉल तालियों से गूंज उठा। संजना के चेहरे पर तिरछी मुस्कान थी —
“तो ये है कॉलेज का शहज़ादा?”

आरव माइक पर आया —
“दोस्तों, यहाँ पढ़ने आया हूँ, और थोड़ा बहुत राज करने भी...” — फिर उसने हँसते हुए कहा,
“...क्योंकि मैं आरव हूँ!”

भीड़ में लड़कियाँ उसके लिए दीवानी थीं। लेकिन संजना के लिए वो सिर्फ एक घमंडी अमीरजादा था।

ब्रेक टाइम
संजना कैंटीन के कोने में बैठी थी। अचानक एक आवाज़ आई —
"तुम्हें अकेले बैठने की आदत है या तुम्हारे पास दोस्त नहीं?"

आरव सामने खड़ा था। आज उसकी आँखों में कुछ अलग था — न मज़ाक, न घमंड — सिर्फ जिज्ञासा।

"मुझे चुप रहना पसंद है। और वैसे भी, तुम जैसे लोगों से दोस्ती करने का टाइम नहीं है मेरे पास।"

"तुम्हें मुझसे प्रॉब्लम क्या है?" — आरव ने संजीदगी से पूछा।

"तुम्हारी हर बात एक दिखावा है। पैसे की ताकत से जो सब हासिल कर सकते हो, वो कभी मेहनत का स्वाद नहीं जान पाते।"

एक पल के लिए आरव चुप हो गया। पहली बार किसी ने उसके चेहरे के पीछे की असलियत पर सवाल उठाया था।

शाम को हॉस्टल में
संजना अपनी डायरी में लिख रही थी —
“आज आरव से भिड़ंत हुई। वो जितना बाहर से चमकदार है, शायद उतना ही अंदर से खाली। लेकिन उसकी आँखों में एक सवाल था — शायद कोई अधूरी कहानी।”

दूसरी तरफ, मल्होत्रा हवेली में
आरव अपने कमरे में बैठा था। पहली बार कोई लड़की उसके सामने इतने आत्मविश्वास से खड़ी हुई थी।
“संजना शर्मा... तुम्हें समझना पड़ेगा। तुम्हें बदलना नहीं, समझना है... और शायद... मैं खुद भी बदल जाऊँ।”


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🔸 एपिसोड 1 समाप्त

(अगला भाग: एपिसोड 2 — “करीबियां या टकराव?”)