🍼 एपिसोड 13 – जब सपनों ने झूला माँगा
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1. नैना की डायरी – अब सिर्फ उसकी नहीं रही
आज की तारीख: 12 अगस्त
स्थान: नैना की खिड़की के पास वाली कुर्सी
मूड: बेचैनी भरी उम्मीद
नैना अपनी डायरी खोलती है।
उसके पन्ने अब सिर्फ कविताओं से नहीं भरे होते,
बल्कि हर पन्ना अब उसके आने वाले बच्चे से एक चुपचाप संवाद होता।
> "आज पहली बार मैंने तुझे हल्के से महसूस किया।
तुम मुझे भीतर से कुछ कह रहे थे…
जैसे पूछ रहे हो – ‘माँ, क्या मैं तुम्हारे सपनों में हूँ?’
और मैंने मुस्कुरा कर कहा – ‘बिलकुल। तू ही तो मेरा सबसे प्यारा सपना है।’"
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2. आरव की सुबह – लकड़ी की दुकान और बचपन की याद
आरव आज पहली बार लाइब्रेरी नहीं गया।
वो सुभाष नाम के एक पुराने बढ़ई से मिलने चला गया।
"मुझे एक झूला बनवाना है..."
उसने धीरे से कहा।
बूढ़े कारीगर ने मुस्कुराकर पूछा:
"ख़ुद के लिए?"
आरव ने धीमे से जवाब दिया:
"नहीं… मेरे आने वाले बच्चे के लिए।
लेकिन बनवाना नहीं है…
मैं… ख़ुद बनाना चाहता हूँ।"
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3. नैना और उसकी माँ – एक पुराना रिश्ता, एक नई सीख
शाम को नैना की माँ का फ़ोन आया।
"कैसी है मेरी बिटिया?"
नैना की आवाज़ भीग गई।
"माँ… डर लगता है कभी-कभी।
सब कुछ नया है — शरीर भी, एहसास भी, जिम्मेदारियाँ भी…"
माँ ने कहा:
"तू जब पैदा हुई थी, तब भी मुझे सब कुछ नया लगा था।
लेकिन उस एक पल ने सब आसान कर दिया —
जब तू पहली बार मेरी उँगली थामी थी।
बस वही सोच… तू अब किसी की माँ बनेगी।"
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4. आरव की पहली चोट – लकड़ी का टुकड़ा और उसका समर्पण
झूला बनाते समय आरव का हाथ कट गया।
नैना घबरा गई — दौड़कर पट्टी लाई।
"क्या ज़रूरत थी ये सब करने की?"
आरव ने धीमे से कहा:
"मैं चाहता हूँ कि हमारा बच्चा किसी ऐसी चीज़ में सोए,
जिसमें सिर्फ आराम नहीं,
बल्कि उसका पिता का प्यार भी बसा हो।"
नैना की आँखों से आँसू निकल पड़े।
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5. बेबी डायरी – और झूले का नामकरण
नैना ने डायरी में लिखा:
> "आज तुम्हारे पापा ने तुम्हारे लिए पहला झूला बनाया…
खून, पसीने और बहुत सारे प्यार से।
मैंने उसका नाम रखा है – 'सपनों का पालना'
क्योंकि जब तुम उसमें सोओगे,
तो सिर्फ नींद नहीं आएगी…
तुम सपनों की गोद में जाओगे।"
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6. एक छोटी-सी चिंता – डॉक्टर की कॉल
अचानक नैना का मोबाइल बजा।
डॉक्टर का नंबर।
"हेलो नैना, हमें तुम्हारी कुछ रिपोर्ट्स मिली हैं…
थोड़ी अनियमितता दिख रही है —
हम चाहते हैं कि तुम कल ही आ जाओ।"
नैना का चेहरा उतर गया।
आरव ने फौरन फोन हाथ में लिया।
"क्या दिक्कत है?"
"कुछ नहीं… रूटीन चेकअप है, लेकिन थोड़ी प्रिकॉशन ज़रूरी है।"
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7. रात की बेचैनी – और हाथों में हाथ
नैना चुप थी।
आरव उसके बगल में बैठा।
"अगर कुछ हो गया तो…?"
नैना की आवाज़ काँप रही थी।
आरव ने उसका चेहरा थामा।
"तुम दोनों मेरी दुनिया हो।
और इस दुनिया को मैं टूटने नहीं दूँगा।
हम कल जाएंगे… साथ में।
और हर बात को साथ में सहेंगे।"
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8. सुबह की यात्रा – और रास्तों की चुप बातें
अगली सुबह वे क्लिनिक जा रहे थे।
मौसम थोड़ा भारी था — जैसे बादलों को भी चिंता थी।
आरव ने रेडियो चलाया,
और वहाँ से एक हल्की सी धुन निकली:
> "तेरा होना, मेरा होना… अब सब कुछ तुझमें ही समाना…"
नैना की आँखें भर आईं।
"आरव, मैं चाहती हूँ कि… अगर कुछ भी हो जाए… तो तुम्हें मेरी कविताएँ मिलती रहें।"
आरव ने धीमे से कहा:
"अब से… मैं हर कविता को तुम्हारी धड़कन समझूँगा।"
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9. डॉक्टर की मुस्कुराहट – और राहत की सांस
डॉक्टर ने चेकअप किया, कुछ टेस्ट दोबारा देखे।
फिर मुस्कुरा कर कहा:
"घबराने की कोई ज़रूरत नहीं।
थोड़ा आराम चाहिए नैना को…
बस। बाकी सब बिलकुल ठीक है।"
आरव की साँस वापस लौटी।
नैना ने उसकी ओर देखा:
"हमारा सपना बच गया?"
"नहीं नैना,
वो सपना अब और भी ज़्यादा ज़िंदा हो गया है।"
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🔚 एपिसोड 13 समाप्त – जब सपनों ने झूला माँगा