Pahli Nazar ki Khamoshi - 1 in Hindi Anything by Mehul Pasaya books and stories PDF | पहली नज़र की खामोशी - 1

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पहली नज़र की खामोशी - 1

एपिसोड 1: पहली नज़र की खामोशी

अहमदाबाद की चहल-पहल भरी ज़िंदगी से दूर, एक शांत कोने में बसी थी एक पुरानी, टूटी-फूटी हवेली — जिसके हर कोने में सन्नाटा बोलता था, और हर दीवार पर वक्त की धूल जमी थी। इसी हवेली को नया जीवन देने का जिम्मा लिया था आरव सिंह ने। 34 वर्षीय यह आर्किटेक्ट अपने शांत और गहरे स्वभाव के लिए जाना जाता था। तेज दिमाग, मद्धम बोलचाल, और एक अजीब सी गहराई उसकी आंखों में थी — जैसे ज़िंदगी ने बहुत कुछ दिखा दिया हो और अब वो सिर्फ सुकून ढूंढ रहा हो।

शहर से दूर यह प्रोजेक्ट उसकी ज़रूरत बन चुका था — न शोर, न भीड़, बस एक पुरानी इमारत और ढेर सारे राज़। लेकिन इन राज़ों को खोलने के लिए उसे ज़रूरत थी पुराने नक्शों, रेकॉर्ड्स और हवेली के इतिहास की। उसके लिए उसे जाना था शहर की सबसे पुरानी लाइब्रेरी में — जहां दस्तावेज़ ही नहीं, शायद किस्मत भी उसका इंतज़ार कर रही थी।

लाइब्रेरी बहुत ही शांत जगह थी — पुराने लकड़ी के फर्नीचर, दीवारों पर पीले पड़ चुके पेंट, और कोनों में खड़े किताबों के ढेर... हर चीज़ में एक पुरानी आत्मा बसती थी। और इन्हीं आत्माओं के बीच बैठी थी नैना राठौड़।

31 वर्ष की, हल्की गुलाबी साड़ी में, आँखों पर हल्का चश्मा, और बाल जूड़े में बंधे हुए — जैसे समय ने उसे छुआ ही नहीं। वो लकड़ी की पुरानी टेबल पर बैठी कुछ पढ़ रही थी, लेकिन उसकी आँखें किसी और ही ख्याल में खोई थीं।

आरव ने दरवाज़ा खोला, और चुपचाप अंदर आ गया। उसके कदमों की धीमी आहट पर नैना ने नज़र उठाई, और वो पहली नज़र... जैसे किसी पुराने गीत की धुन कानों में उतर आई हो। उनकी आँखें मिलीं — न कोई मुस्कान, न कोई शब्द — बस एक शांत टकराव, जो दिल की गहराई तक उतर गया।

"माफ़ कीजिए... मुझे पुराने आर्काइव्स की जरूरत है," आरव ने नर्म लहजे में कहा।

नैना ने बिना चौंके, बड़ी स्थिरता से जवाब दिया, "नीचे बेसमेंट में हैं। चलिए, दिखाती हूँ।"

उसकी आवाज़ में सादगी थी, लेकिन अजीब सी मिठास भी। वो उठी और आगे बढ़ गई। आरव की नज़र कुछ पल उसके चलने के अंदाज़ पर ठहर गई — साड़ी की सरसराहट, उसकी चाल की नमी, और कमरे में फैलती हल्की सी खुशबू — जैसे कोई कविता चल रही हो।

बेसमेंट में पहुंचकर नैना ने पुराने रैक्स में से धूल से सने कागज़ खींचने शुरू किए। लकड़ी की पुरानी सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त उसकी साड़ी का पल्लू हल्का सरक गया और आरव की नज़र अनायास ही उसके खुले कंधे पर जा ठहरी।

वो एक पल था — ना चाहा गया, ना रोका गया। पर उसकी गहराई में कुछ था... कुछ ऐसा जो आरव ने बहुत वक़्त बाद महसूस किया। उसने तुरंत नज़रें हटा लीं, लेकिन दिल की धड़कनें थमने को तैयार नहीं थीं।

"आप आर्किटेक्ट हैं?" नैना ने बात शुरू की।

"हां," आरव ने जवाब दिया, "पुरानी इमारतों को नई ज़िंदगी देता हूँ।"

"अच्छा है... कुछ लोग किताबों को बचाते हैं, कुछ इमारतों को।"

"आप क्या बचा रही हैं?" आरव ने पूछा, नज़रों को हल्का सा उसकी आँखों से टकराते हुए।

"मैं शायद... खुद को," उसने मुस्कुरा कर कहा। उसकी मुस्कान में एक सच्चाई छुपी थी — वो मुस्कान जो दिल की थकान को महसूस करती है।

उस दिन की मुलाकात छोटी थी, लेकिन असर बहुत गहरा।

जब आरव बाहर जाने लगा, तो उसने दरवाज़े पर रुककर कहा, "शायद मुझे कल फिर आना पड़ेगा।"

नैना की आँखों में हल्की सी चमक उभरी। "मैं यहीं रहूंगी।"

आरव ने पलट कर उसकी ओर देखा — वो अब फिर से किताबों में खोई थी, लेकिन उसकी आँखें... अब पहले जैसी नहीं थीं। उसमें अब कोई हलचल थी।


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रात को आरव अपने कमरे में बैठा था। उसके सामने खुली थी हवेली की फाइलें, लेकिन ज़हन में घूम रही थी नैना की आवाज़, उसकी चाल, और वो साड़ी की सरसराहट।

वो किसी और को नहीं देख रहा था — सिर्फ़ उसे महसूस कर रहा था। कमरे की खिड़की से आती ठंडी हवा उसकी गर्म साँसों से टकरा रही थी। उसने खुद से कहा —

"कल जाऊँगा... सिर्फ़ दस्तावेज़ों के लिए नहीं।"


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