✨ "पहली नज़र की खामोशी – एपिसोड 3: साड़ी की सिलवटें"
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1. एक कप कॉफी और पुरानी सोचें
सुबह-सुबह नैना अपनी बालकनी में बैठी थी, हाथ में कॉफी का कप और मन में उलझे सवाल।
बीते दो दिन, दो मुलाकातें और उस अजनबी की आँखों में अजीब सी अपनापन…
उसने खुद से पूछा,
“क्या वो महज़ संयोग था या कोई शुरूआत?”
उसकी निगाहें उसी लाल साड़ी पर टिक गईं जो धुलकर अब छत की तार पर सूख रही थी।
उस साड़ी की सिलवटों में जैसे अभी भी वो पल दबे हुए थे —
कैफ़े की कॉफी, बारिश की बूँदें और आरव की जैकेट।
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2. आरव का स्केच – जो शब्दों से आगे कहता था
दूसरी तरफ, आरव अपने ड्रॉइंग बोर्ड पर झुका था।
उसने एक नई डिज़ाइन पूरी की थी —
एक साड़ी, जिसमें सफेद पृष्ठभूमि पर बेहद महीन लाल रेखाएँ थीं —
जैसे किसी ने चुपचाप किसी को छूने की कोशिश की हो।
नीचे उसने लिखा:
“साड़ी की सिलवटें भी कुछ कहती हैं… जब कोई उन्हें ध्यान से देखे।”
आरव जानता था — वो डिज़ाइन नैना के लिए है।
पर उसने अब तक कुछ नहीं कहा।
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3. लाइब्रेरी में खामोश मुलाक़ात
नैना उस दिन लाइब्रेरी में थी जब सामने आरव फिर से आ खड़ा हुआ।
उसने किताब माँगी – लेकिन उसकी नज़रें किताबों पर नहीं, नैना के चेहरे पर थीं।
“मैंने आपके लिए कुछ डिज़ाइन किया है…”
उसने धीमे से कहा।
नैना ने मुस्कुरा कर पूछा,
“मेरे लिए? किस हैसियत से?”
आरव झिझका नहीं –
“एक ऐसे शख्स की हैसियत से, जिसने आपकी साड़ी की हर सिलवट को पढ़ा है।”
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4. साड़ी का उपहार – नज़रों में बसा स्पर्श
आरव ने जो साड़ी डिज़ाइन की थी, वो नैना को भेंट की।
साड़ी खोलते वक्त नैना की उंगलियाँ काँप रही थीं।
उसे याद था — किसी ने पहली बार उसे देखकर उसके लिए कुछ बनाया है।
वो साड़ी हल्की थी, लेकिन उसमें एक भावनात्मक वज़न था।
जब नैना ने उसे पहली बार ओढ़ा,
तो उसे लगा जैसे किसी ने बिना छुए उसे समेट लिया हो।
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5. साड़ी पहनकर आई पहली हल्की सिहरन
उस शाम नैना उसी साड़ी में लाइब्रेरी से निकलकर बाहर खड़ी थी, जब अचानक तेज़ हवा चली।
साड़ी का आँचल उड़कर उसके चेहरे पर आया — और तभी आरव सामने से आता दिखा।
वो ठिठक गया।
"आपने पहन ली..." – उसकी आवाज़ में खुशी नहीं, संतोष था।
नैना ने कोई जवाब नहीं दिया।
बस आँचल को ठीक किया और कहा,
"इसमें आपके हाथों का एहसास है।
सिर्फ धागा नहीं, दिल भी बुना है इसमें।"
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6. पहली बार – सेंसुअल टच की झलक (भावनात्मक और सौम्य)
वो दोनों एक बेंच पर बैठे थे — सामने झील थी और हवा में सर्दी की हल्की सरसराहट।
आरव ने धीरे से नैना की हथेली थामी —
बिना हड़बड़ी, बिना शब्द…
बस जैसे कोई संगीत धीरे-धीरे शुरू हो।
नैना ने हाथ नहीं हटाया।
वो स्पर्श कोई वासना नहीं था,
वो विश्वास का पहला इशारा था।
आरव ने उसकी हथेली की लकीरों को देखा और कहा,
“इन रेखाओं में कहीं मैं भी हूँ?”
नैना ने हल्का सा सिर झुका दिया —
और पहली बार उसके गालों पर रंग आया, जो किसी ने कभी देखा नहीं था।
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7. बंद किताब और खुला एहसास
रात को नैना ने एक पुरानी डायरी निकाली।
उसे सालों से नहीं खोला था।
उसने एक नया पन्ना खोला और लिखा:
> "आज किसी ने मुझे मेरी साड़ी से नहीं, मेरी खामोशी से पहचान लिया।
और उस स्पर्श में कोई जल्दबाज़ी नहीं थी…
सिर्फ एक यकीन था,
कि मैं जो हूँ, वैसी ही ठीक हूँ।"
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एपिसोड समाप्त: पहली नज़र की खामोशी – एपिसोड 3: साड़ी की सिलवटें