चैप्टर 4
मुंबई सपनों का शहर, रात में भी उजाले से चमकने वाला शहर। यह शहर सबसे ज्यादा जाना जाता है बॉलीवुड और दूसरा अंडरवर्ल्ड।
यह शहर बेरोजगार को रोजगार देता है तो क्राइम का दूसरा नाम ही मुंबई है।
ठक्कर विला
एक बड़ा सा महल जिसके चारों ओर सिर्फ जंगल ही जंगल है वह महल सुनहरे मार्बल से बना हुआ था जो मॉडर्न एंड ट्रेडीशनल दोनों व्हाइट दे रहा था।
इसी घर के आंगन में एक औरत तुलसी के पौधे में जल चढ़ाते हुए बोली है तुलसी माता मुझे ना एक अच्छी सी सीधी साधी बहु देना जिसे मैं अपनी बेटी बना कर रखूंगी, आपको पता है वह मेरा नालायक बेटा यूं तो पुरी देश पर राज करता है लेकिन आज तक उसे एक गर्लफ्रेंड बनाया नहीं गया जिस उम्र में दूसरी औरतों दादी बनने के सपने देखती है उसे उम्र में मैं यह आशा लगाकर बैठी होगी मेरा बेटा गर्लफ्रेंड बना ले।
हे तुलसी माता कृपया करके अपनी दृष्टि मेरे बेटे पर रखना, वह औरत मैं अपने गीले बालों पर तोलिया बंद कर रखा था माथे पर बिंदिया हाथों में लाल चूड़ियां, मांग में सिंदूर,पीले रंग की साड़ी। पैरों में मोटी मोटी पायल पहनी हुई थी।
वह औरत तुलसी का दूसरा फेर लेती है फिर रुक कर बोली और मां मेरे दूसरे बेटे की जिंदगी भी सवार देना उसकी जिंदगी में भी खुशियां लाना ।
तीसरा फेर लेती है फिर बोलती है हे तुलसी माता मेरी बेटी को सही सलामत रखना उसकी मासूमियत को कभी खोने मत देना वह हमेशा हस्ती खुश रहे।
इतना बोलकर वह औरत तुलसी माता के सामने अपनी हाथ जोड़ती है।
तभी पीछे से एक आदमी की आवाज आती है वसुधा जी आज फिर से अपने तुलसी माता को परेशान कर दिया ,अपने तीनों नालायकों के लिए प्रार्थना किया।
उस आदमी की बात सुनकर वह औरत यानी वसुधा जी अपनी आंखों को बाडा करते हुए बोली सूरज जी आप इस बात से परेशान हो कि मैं तुलसी माता के सामने अपने बच्चों के लिए प्रार्थना कर रही हूं या इसलिए कि मैं आपके लिए प्रार्थना नहीं किया है। 56 साल के हो गए हो आप अभी भी अपने बच्चों से जलते हो इतना बोलकर वह तांबे की कलश को लेकर घर के अंदर चली जाती है।
इस वक्त सूरज जी अपने विला के पार्क में जोगिंग करने गए थे ।
वसुधा जी को अंदर जाते देखकर वह भी अंदर जाते हैं तो देखते हैं कि एक बड़े से आलीशान सोफे पर दो लोग बैठे थे जिसमें एक उनकी मां सीता जी थी ,तो दूसरे अखबार पढ़ते हुए उनके पिता चंद्रशेखर जी थे। वह अपने माता-पिता के पास जाकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं और खुद भी सोफे पर बैठ जाते हैं।
वसुधा जी किचन से तीनों के लिए एक कप कॉफी, एक कप चाय और एक प्रोटीन शेक लाती है।।
चलिए अब हम जानते हैं ठक्कर फैमिली के बारे में।
ठक्कर फैमिली बिजनेस में नंबर वन आता है । इस फैमिली के अपने कहीं सारे राज है।
ठक्कर फैमिली की मुखिया चंद्रशेखर ठक्कर और सीता ठक्कर।
उम्र चंद्रशेखर 80 और सीता जी 77 इन दोनों की लव मैरिज है जिसे देखकर आज का हर युवा अपने लिए भी ऐसा पार्टनर मांगता है।
ठक्कर खानदान का पहले बेटा निलेश ठक्कर उम्र 59, उनकी बीबी आयीशा ठक्कर उम्र 55।
ठक्कर खानदान का दूसरा बेटा सूरज ठक्कर उम्र 56 ,उनकी बीवी वसुधा ठक्कर उम्र 54।(जिस तरह से हर परिवार परफेक्ट नहीं होता है इस तरह से टक्कर परिवार में भी बहुत सी राज है )
कहानी के अंदर
वसुधा जीव उन तीनों को चाय कॉफी और प्रोटीन शेक देकर खुद अपनी चाय लेकर अपने सास यानी सीता जी के बाजू बैठ जाती है और दोनों सास बहू मिलकर बातें करना शुरू कर देती है तो दूसरी तरफ चंद्रशेखर जी अपने बेटे से बिजनेस के बारे में पूछते हैं तो सूरज उनके जवाब देता है।
कुछ देर बाद ,सीडीओ से एक औरत अपनी ऊंची हील पहनते हुए नेट एंब्रायडरी साड़ी पहन कर नीचे आ रही थी उसे औरत की हिल्स की आवाज सुनकर चंद्रशेखर जी सीता जी वसुधा जी सूरज जी का ध्यान उनके ऊपर जाता है।
अब तक जो घर में खुशी का माहौल था उनके आने से शांत पड़ गया था यह है आयशा ठक्कर ठक्कर खानदान की बड़ी बहू। इनकी उम्र तो 55 की है पर इन्होंने अपने आप को ऐसा मेंटेन किया है कि, कोई इन्हे देखा है तो उन्हें लगेगा कि यह अभी 30 साल की ही होगी। उनके चेहरे पर एटीट्यूड साफ झलकता है।
वह उन चारों के पास आती है और सोफे पर बैठकर एक नौकर को अपनी कॉफी लाने का ऑर्डर देता है उनका ऑर्डर सुनकर वह नौकर जल्दी से काफी लाने जाता है वह चारों आयशा जी को इग्नोर कर कर वापस अपनी बातों में लग जाते हैं
इस बात से आयशा जी को भी कोई फर्क नहीं पड़ता है वह अपना फोन स्क्रोल करते हुए बैठी थी।
कुछ देर बाद वह नौकर कॉफी लेकर आता है और आयशा जी के हाथ में देता है आयशा जी जैसे ही काफी का पहला सीप पीती है, तो वह जल्दी से अपने मुंह से वह काफी फेंक देती है।
उनके ऐसे करने से सभी नौकर डर जाते हैं क्योंकि उन्हें समझ आ गया था कि अब उसे नौकर की खैर नहीं है।
आयशा जी काफी थूकने के बाद अपने कप में का काफी उसे नौकर पर फेंक देती है।
और चिल्लाते हुए बोली कितनी चीनी डाली है तुमने इस कॉपी में, तुम्हारा इरादा मुझे मरने का तो नहीं है..........
वह नौकर पहले से ही गरम कॉफी अपने ऊपर गिरने की वजह से दर्द में था लेकिन वह जैसे ही आयशा जी की बात सुनता है तो वह घबरा कर बोला नहीं मेंस साहब लगता है गलती से चीनी ज्यादा पड़ गया हम आपसे माफी मांगते हैं....... हमने यह जानबूझकर नहीं किया है इस वक्त वह नौकर बहुत ही ज्यादा घबराया हुआ था।
उसे नौकर की हालत देखकर वसुधा जी बीच में आते हुए बोली दीदी जाने दीजिए ना बस चीनी तो ज्यादा हो गई थी कॉफी में इसमें इस बेचारे के ऊपर ग्राम कॉफी फेंकने का क्या मतलब है।
वसुधा जी को नौकर के साथ देते हुए देखकर आयशा की बोली "ओ " आ गई इन लोगों की मसीहा इन्हें बचाने के लिए, उपस इन्हें बचाई भी क्यों ना पहले तो वह भी इनके साथ रहती थी आयशा जी के चेहरे पर एक गींन भारी स्माइल रहती है।
उनकी बात सुनकर वसुधा जी अपनी नज़रें नीचे झुकती है अपनी बीवी कैसी बेइज्जती होते देखकर सूरज जी बीच में आते हुए बोले भाभी वसुधा जी ने कुछ गलत नहीं कहा है और यह बार-बार पुरानी बातें दोहराना बंद कर दीजिए वरना मेरे पास भी पुरानी बातें खुरदने के लिए बहुत सारे हैं।
सूरज जी की बातों पर आयशा कुछ बोल पाती उससे पहले ही एक आवाज सुनाई देती है लगता है आजकल तुम अपनी तमीज भूल गए हो सूरज भाभी है वह तुम्हारी तुम्हें शर्म नहीं आती है अपनी ही भाभी से इतनी ऊंची आवाज में बात करते हुए........ (यह आवाज निलेश ठक्कर की थी यह अपनी बीवी से अंधों की तरह प्यार करते हैं। अगर आयशा जी दिन कहे तो वह भी दिन कहेंगे रात रहेगी तो वह भी रात कहेंगे इतनी पागलपन से वह आयशा जी से प्यार करते हैं जिसका फायदा आयशा जी हमेशा ही उठाती है।)
अपने बड़े भाई की आवाज सुनकर सूरज जी खामोश होते हैं क्योंकि वह अपने बड़े भाई से बहुत ही ज्यादा प्यार करते हैं उनकी हर सही गलत बात पर उनके साथ देते हैं, सूरज जी ने आज तक अपने बड़े भाई को उल्टा जवाब तक नहीं दिया था। वह हमेशा निलेश जी के लिए आदर्श लक्ष्मण बन कर रहे पर निलेश जी कभी अपने भाई के लिए राम नहीं बन पाए।
अपने घर में इतना सुबह-सुबह तमाशा देकर चंद्रशेखर जी बोले बस करो तुम सब लोग हर दिन का हो गया है और बड़ी बहू तुम्हें नहीं लगता कि तुमने इस बेचारे पर काफी फेक कर गलती की है।
पर निलेश तुम अपनी बीवी को यह बात क्यों नहीं समझते हो कि हर बार वसुधा को नीचा दिखाना जरूरी नहीं होता है।
इतना बोलकर अपनी बीवी सीता जी को वहां से ले जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ जाते हैं और एक रोबदार आवाज में बोले अब तुम लोगों को इनविटेशन देना होगा ब्रेकफास्ट करने के लिए या अपने आप आओगे.......
इस घर में चंद्रशेखर जी के अलावा किसी की नहीं चलती थी तू तू -मैं मैं सब करते थे पर आखिरी फैसला चंद्रशेखर जी का ही रहता था।
सूरज जी शेखर जी और आयशा डाइनिंग टेबल पर बैठ जाते हैं, पर वसुधा जी एक नौकर को बुलाकर उसे नौकर को फर्स्ट एड करने के लिए बोल देती है तो वह दूसरा नौकर पहले नौकर को फर्स्ट एड करने के लिए सर्वेंट क्वार्टर में ले जाता है उसके बाद वसुधा जी भी अपने चेयर पर बैठ जाती है।
सर्वेंट जाकर सबको खाना परोसने लगता है जिसमें सूरज वसुधा सीता और शेखर जी इंडियन ब्रेकफास्ट करते हैं तो वही आयशा जी अमेरिकन ब्रेकफास्ट करती है। निलेश जी ब्रेकफास्ट में सिर्फ सलाद खाते हैं।
सब लोग का ही रहे थे कि चंद्रशेखर जी पूछते हैं तुम दोनों के नालायक कहां है एक मुझे कुछ दिन से नहीं दिखाई दे रहा है तो दूसरा का मुझे कल रात से पता नहीं है।
चंद्रशेखर जी की बात सुनकर आयशा और नीलेश का चेहरा ठंडा पड़ जाता है क्योंकि उन्हें तो अपने बेटों के बारे में पता ही नहीं था कि वह कहां है उनके एक्सप्रेशंस देखकर सीता जी और चंद्रशेखर जी समझ जाते हैं और अपना सर नाम हिलते हैं तभी सूरज जी बोले पापा ईशान अर्जेंट मीटिंग के लिए u.s गया है कल रात , और विहान पिछले कुछ हफ्तों से अपनी नई ब्रांच खोल ने के लिए शहर से बाहर गया है।
उनकी बात सुनकर चंद्रशेखर अपना सर हिला देते हैं, और आयशा जी अपने कांटे वाले चम्मच को जोर से पकड़ कर मन में सोचती है कि सूरज और वसुधा कुछ ना कुछ ऐसा करते हैं जिसकी वजह से उन्हें हमेशा अपने सास और ससुर के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है।
हैदराबाद
पल्लवी का घर
इस वक्त पल्लवी हर दिन की तरह अपने कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी। वह पहले तो पूजा करती है फिर अपने मां और नाना जी के फोटो के सामने दिया जलाती है उसके बाद नाश्ता करने बैठ जाती है तब तक समीक्षा भी आ जाती है।
नानी कल से पल्लवी के चेहरे पर परेशानी देख रही थी पर उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह परेशान क्यों है उन्होंने कोशिश की थी पल्लवी से उसके परेशानी पूछने की पर वह जवाब ही नहीं देती थी।
नाश्ते के समय भी पल्लवी को ऐसे परेशान देखकर नानी ने समीक्षा से पूछती है कि क्या हुआ है यह ऐसे क्यों परेशान है?
नानी का सवाल सुनकर समीक्षा जो कल हुआ था वह सब बता देती है।
जिसे सुनकर नानी पल्लवी को समझाती है कि उसके परेशान होने से कोई हल नहीं मिलेगा।
अगर उसकी किस्मत में जॉब होगा तो मिल जाएगा नहीं होगा तो बोलो कुछ ना कुछ कर कर एडजस्ट करेंगे।
नानी आगे बोलती है.... देख पल्लवी कान्हा जी पर भरोसा रख वह कोई ना कोई हल निकाल देंगे।
उनकी बात सुनकर पल्लवी मुस्कुराने की कोशिश करती है पर वह मुस्कुरा नहीं पाती है क्योंकि वह जानती थी कि उसकी दादी बस उसे स्वातना दे रही है।
तभी पल्लवी का फोन बज उठता है जिसे सुनकर वह अपना फोन उठाती है तो वह देखती है कि उसके फोन में रेस्टोरेंट के तरफ से एक मैसेज आए जिसे खोलकर वह देखी है तो बस देखती रह जाती है उसके आगे बड़ी-बड़ी हो जाती है और मुंह खुला का खुला रह जाता है।
ऐसा क्या मैसेज आया है पल्लवी को जिसे देखकर वह हैरान रह गई।
क्या है ठक्कर फैमिली की राज , आखिर क्यों आयशा जी चढ़ती है वसुधा जी से।
जाने के लिए पढ़िए अगला चैप्टर।।
यार प्लीज कमेंट और रिव्यू दे देना भूलना मत आपको कहानी पसंद आई है नहीं आई है बताइए प्लीज प्लीज प्लीज।