Gadbad - 2 in Hindi Fiction Stories by Maya Hanchate books and stories PDF | गड़बड़ - चैप्टर 2

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गड़बड़ - चैप्टर 2

chapter 2 





वेलकम बैक चैप्टर 2 रीकैप 
पिछले चैप्टर में हम पढ़ते हैं कि पल्लवी एक अनजान शख्स को चूम लेती है। और उसे आदमी को अपने किए पर माफी मांग कर वहां से चली जाती है। वह आदमी भी कुछ बड़बड़ कर वहां से चला जाता है और एक आदमी को जान से मार देता है और अपने असिस्टेंट को पल्लवी के बारे में जानने के लिए बोल देता है। यहां पल्लवी अपने दोस्तों पर खिला रही थी क्योंकि यह किस वाला घटिया प्लान उसके दोस्तों का ही था। उसके बाद वह अपने दोस्तों के साथ घर के लिए निकल जाती है 

अब आगे।
समीक्षा और पल्लवी जैसे ही अपने घर आते हैं तो समीक्षा पल्लवी को बाय बोलकर अपने घर के अंदर चली जाती है तो पल्लवी भी अपने घर के अंदर वह दोनों का घर बाजू बाजू में था जिसकी वजह से वह एक दूसरे को बाय बोलकर चले जाते हैं। 


पल्लवी घर के अंदर आती है पल्लवी का घर बहुत ही छोटा था जिसमें एक कमरा एक किचन और एक छोटा हल था।

पर बहुत ही सुंदर था जगह-जगह पर पल्लवी ने क्राफ्टिंग कर कर घर को सजाया हुआ था।
पल्लवी अपने कमरे में जाती है तो देखती है कि एक इंसान पलंग पर सोया हुआ है तो वह धीरे से पलंग के पास जाती है उसे इंसान पर चादर सही से कर कर उसके माथे पर चुनकर वहां से जाने लगती है ।पर वह इंसान उठकर पल्लवी का हाथ पकड़ लेता है।
जिसकी वजह से पल्लवी अपने सीने पर हाथ रखकर बोली क्या नानी आपने, कितना डरा दिया मुझे।

उसकी बात सुनकर उसकी नानी यानी शकुंतला देवी मुस्कुरा देती है और बोली माफ करना बच्चा मुझे नहीं लगता कि इतना तू डर जाएगी।
जिस पर पल्लवी अपनी नानी के पास बैठकर उनका हाथ पकड़ कर प्यार से पूछती है आप अब तक नहीं सोई।
उसकी बात सुनकर शकुंतला जी ने जवाब दिया तुझे लगता है कि तेरे बिना सो जाऊंगी जब तक तुझे ना देख लूं चैन नहीं मिलता मुझे।

जिस पर पल्लवी बोली आई एम सॉरी नानी मेरी वजह से आपको इतनी देर तक जागना पड़ा। आई प्रॉमिस आइंदा से ,मैं लेट नहीं आऊंगी। 
शकुंतला जी मुस्कराकर बोली तुझे माफी मांगने की जरूरत नहीं है तू तो मेरी अच्छी बच्ची है और कभी-कभी लेते आना चलता है इतना बोलकर वह उसे खाने के लिए पूछती है।
जिस पर पल्लवी ने कहा कि नहीं नानी,मैं बाहर खा लिया है । क्या आपने खाना खा लिया। 
जिस पर शकुंतला देवी अपना सर हमें हिलाती है और उसे फ्रेश होकर सोने के लिए बोलती है।

समीक्षा का घर 

समीक्षा भी अपने घर के अंदर जाती है तो वह देखतीं है कि उसके घर वाले उसका हॉल में ही इंतजार कर रहे हैं। जिसे देखकर समीक्षा के चेहरे पर कोई भाव नहीं आता है और वह बिना कुछ कहे अपने कमरे की तरफ जाने लगती है। 
तो एक आवाज उसे सुनाई देती है "वहीं रुक जाओ" जिसे सुनकर समीक्षा रुक जाती है पर पीछे पलटने की कोशिश नहीं करती है।
जिसने समीक्षा को रोका था वह है समीक्षा की बूआ राधिका जी है।
इस वक्त हाल में समीक्षा की बूआ आ राधिका उनकी दो बेटी रीना और रिया फूफा जी मुकेश दादी सावित्री की खड़ी थी।
इस वक्त सबके चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था। 
समीक्षा को पलटते ना देखकर राधिका की समीक्षा के करीब आती है उसे गोल अपनी तरफ घूम कर बोली यह वक्त है घर आने का कहां मटक रही थी तुम घर के काम वाम रहते हैं। यहां मुफ्त की  रोटी तोड़ना नहीं है, काम भी करना पड़ता है ‌।
जिसका साथ देते हुए सावित्री की बोली सही बोल रही है मेरी बेटी सुबह से कहां थी तुम, और इतनी देर तक कहां घूम रही थी जवाब दो। 
जिस पर रिंकी बोली नानी आपकी पोती क्लब में मटक रही थी। वह भी उस पल्लवी और उसकी तीन तितलियों के साथ।


जिस पर सावित्री जी समीक्षा को बहुत कुछ उल्टा सीधा सुनाती है जिसकी वजह से उनकी सांस भारी होने लगती है तो राधिका जी अपनी मां के पास आकर उन्हें पानी देते हुए बोली कहा था ना मां , मैंने आपसे कि इस लड़की को छोड़ दो वरना यह भी लड़की अपनी मां की तरह ही हमारा नाक कटवाएंगी पर आपको तो इस लड़की पर तरस आ रहा था देखा अपक तरस खाने का नतीजा। जिस पर सावित्री जी ख़ामोश हो जाती है। 

जो समीक्षा अब तक चुप थी वह बोली कोई यहां मुझ पर तरस नहीं खा रहा है ।ना ही मैं किसी के अहसानो के तले दबी हूं। यह घर इसमें आप रह रहे हैं ना यह मेरे बाबा ने कमाया है यह जो हर महीने आप अपने सहेलियों के सामने अपने जेवर और कपड़ों का शो ऑफ करती है ना इसके पैसे मेरे बाबा देते हैं। और रही बात मेरी कि इन्होंने मुझ पर तरस खाया है नहीं इन्होंने मुझ पर तरस नहीं खाया है बल्कि इन्होंने अपना फायदा देखा है अगर मैं यहां नहीं रहूंगी तो मेरे बाबा भी यह नहीं रहेंगे अगर मेरे पापा यहां नहीं रहेंगे तो यह जो आप आपका पति और आपके दोनों बच्चे यह जो मुफ्त की रोटी तोड़ रहे हैं ना वह तोड़ना नसीब नहीं होता।
जिस पर राधिका जी मगरमच्छ के आंसू निकलते हुए बोली यही दिन देखने के लिए मां आपने मुझे यहां रोका है यह लड़की कितनी बदतमीज है। इसे अपने बड़ों से बात करने का लहजा तक नहीं आता है और मां यह लड़की आपकी बेटी के साथ-साथ आपके दामाद और नथनीयों की भी बेइज्जती कर रही है और आप सुन रही हो इतना बोलकर वह रोते हुए वहां से चली जाती है।
उनके पीछे उनकी बेटियां भी चली जाती है। 
मुकेश सावित्री  जी के सामने आकर अपने हाथ जोड़ते हुए बोला शुक्रिया मां जी आपने मुझे मेरी औकात दिखा दी वरना आज तक में आपको सास नहीं अपनी मां मन रहा था। पर मुझे नहीं पता था की समीक्षा के दिल में मेरे और मेरे परिवार के लिए इतना कड़वाहट है।इतना बोलकर मुकेश भी वहां से चला जाता है।

अपनी बेटी और दामाद को ऐसे जाते देखकर सावित्री जी को बहुत गुस्सा आता है ।तो वह एक लकड़ी लेकर समीक्षा को मरने लगती है पर समीक्षा भी डिट कम नहीं थी ।वह भी बिना खुद को बचाया  ।चुपचाप मार खा रही थी और घूर कर सावित्री जी को देख रही थी ,जिसे देखकर सावित्री जी को और भी गुस्सा आता है और वह तब तक मरती है जब तक लकड़ी न टूट जाए।
लकड़ी टूट जाता है पर समीक्षा के चेहरे पर कोई भी भाव नहीं आते हैं ।बस उसकी आंखें लाल हो चुकी थी जिसे देखकर सावित्री जी डरती है पर उसे कुछ बोले बिना अपने दामाद और बेटी के कमरे की तरफ बढ़ जाती है।
उन सबके जाते ही समीक्षा भी अपने कमरे की तरफ चली जाती है और फ्रेश होकर, अपना टी-शर्ट निकाल कर शीशे में खुद को देखती हैं तो उसके शरीर पर बहुत सारे घाव थे जिसमें कुछ पुराने लग रहे थे तो कुछ अभी के जिसे देखकर समीक्षा एक ही पीसी मुस्कान देकर अपने पलंग पर सो जाती है।
कुछ देर बाद समीक्षा के कमरे में एक आदमी आता है उसे आदमी की चाल धीमी रहती है पर वह आदमी बार-बार लड़खड़ा रहा था। उसे आदमी की चाल देखकर आसानी से कोई भी समझ सकता था कि वह इस वक्त कितने नशे में है। 

वह आदमी धीरे-धीरे समीक्षा के पास आता है और उसके पलंग के दूसरी तरफ बैठ ता है और कुछ देर समीक्षा को देखा है और सोचने लगता है अब क्या सोच रहा था वही जाने। 

कुछ देर ऐसे ही बैठने के बाद वह उठकर वहां से जाने लगता है पर वह देखता है की समीक्षा ने खुद पर चादर नहीं लिया है तो वह समीक्षा पर चादर ओढ़ाता है।
चादर ओढनी की वजह से समीक्षा के गाव में दर्द होता है जिसकी वजह से वह नींद में ही सीसकती है।
उसकी शिसक ने की आवाज सुनकर वह शख्स चादर को उसे पर से निकाल कर उसके शर्ट को ऊपर कर कर देखता है तो उसके शरीर पर इतने जख्म देखकर वह शख्स खुद से बोला यह लड़की कब सुधरेगी जब देखो तब शरीर पर इतनी चोट लगव कर आती है। पता नहीं कहां खेलती कुदती है। कब बड़ी होगी मेरी छोटी सी समीक्षा। इतना नशे में बोलते हुए ही लडखाडह कर उठकर फर्स्ट एड बॉक्स लता है और समीक्षा के गावो पर दवाई लगता है और कुछ देर उसके बालों में हाथ फेर कर कर वहां से चला जाता है। यह समीक्षा के बाबा निखिल जी है। 
इनका एक छोटा सा बिजनेस है जिसमें इन्होंने अपनी जान लगा दी है, यूं तो यह समीक्षा से बात भी नहीं करते पर जब भी वह सोती है तो उसके कमरे में आकर बातें करते हैं क्योंकि समीक्षा का चेहरा उसकी मां की तरह है जिसकी वजह से वह समीक्षा को देखना पसंद नहीं करते हैं पर इसका मतलब यह नहीं है कि वह उसे नफरत करते हैं।

इस वक्त पल्लवी जगह पर थी जहां उसे अपने चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था पल्लवी के आंखों में आंसू और साफ देखा जा सकता था उसने सफेद रंग का सूट पहना हुआ था उसके बाल बिखरे हुए थे।
वह डरते हुए अपनी कपती  होठों से बस एक ही बात दोहरा रही थी नानी कहां हो आप नानी, नानी। 
जिसकी जवाब में शकुंतला जी की एक दर्द भरी आवाज आती है पल्लवी बच्ची में यहां हूं, यहां हूं, यह आवाज पल्लवी के कानों में चारों तरफ से आ रहा था बस पल्लवी भागते ही जा रही थी और अपनी नानी को पुकार रही थी जिसके जवाब में शकुंतला जी की दर्द भरी आवाज आ रही थी।

पल्लवी को एक जगह रोशनी दिखाई देती है तो वह उसे रोशनी की तरफ जाती है तो वह देखतीं है कि उसकी नानी खून से लटपट सड़क पर गिरी हुई है। 
जिसे देखकर पल्लवी के हाथ पैर फूलने लगते हैं। सांस भारी होने लगता हैं। आंखों से आंसू लगातार बहने लगते हैं पल्लवी भाग कर अपने नानी के पास जाती है और उन्हें अपने गोद में उनका कर रखती है। 
पल्लवी के ऐसे करते हैं शकुंतला जी उसके गालों पर हाथ रखकर बोली बेटा मुझे लगता है कि मेरा समय आ गया है (आवाज़ धीमी सास भारी थी) मुझे जाना होगा, तू अपना ख्याल रख। इतना बोल कर पल्लवी की तरफ देखती है उसे देखते देखते ही उन्होंने अपनी सांस छोड़ दी और पल्लवी के गालों से उनका हाथ फिसल जाता है।

तभी पल्लवी एक जोर से आवाज के साथ उठती है नानी...................... और जोर जोर से सांस लेने लगती है। 
उसकी ऐसी आवाज सुनकर शकुंत लीजिए भाग कर उसके पास आती है और उसे अपने गले से लगाते हुए पूछता है क्या हुआ बेटा, तू ऐसे क्यों चिल्लाई। 
पल्लवी को जब यह महसूस होता है कि शकुंतला जी उसके पास है तो वह अपनी आंखें शकुंतला जी के पास कर कर उन्हें गले लगाते हुए जोर-जोर से रोने लगती है। 
उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी उसे ऐसे देखकर शकुंतला जी से शांत थी पर करवाती है।


आखिर क्यों करते हैं समीक्षा के घर वाले समीक्षा और उसकी मां  से नफरत
क्या पल्लवी ने सिर्फ सपना देखा था या आने वाले कल की झलक। जानने के लिए पढ़िए  अगला चैप्टर।