(छाया, एक चंचल कॉलेज छात्रा, वैलेंटाइन डे पर अपने प्यार विशाल को प्रपोज करती है, पर वह उसे ठुकरा देता है। छाया को मना करने के बावजूद वह उम्मीद नहीं छोड़ती। अगले दिन कॉलेज में किसी ने विशाल और छाया की फोटो के साथ "आई लव यू विशाल" बोर्ड लगा दिया, जिससे विशाल बुरी तरह गुस्सा हो जाता है और सबके सामने छाया को अपमानित करता है। छाया आहत होकर माफी मांगती है और वादा करती है कि अब ऐसा नहीं होगा। अब आगे).
छाया क्लास की ओर बढ़ी, लेकिन कदम भारी थे। रास्ते में वह वॉशरूम में घुस गई। काशी ने दरवाज़ा खटखटाया—"तू ठीक है? तूने कहा क्यों नहीं कि वो बोर्ड तेरा काम नहीं था, और मुझे भी कुछ कहने नहीं दिया। मैं जाकर बात करती हूँ—ऐसे कैसे कोई तुझसे यूँ बोल सकता है?"
अंदर से कोई जवाब नहीं आया। कुछ पल बाद दरवाज़ा खुला। छाया मुंह धोकर बाहर आई। उसकी आँखें लाल थीं, पर चेहरा शांत। बोली—"जो हुआ, अच्छा हुआ। चल, क्लास चलते हैं।"
काशी समझ गई थी कि छाया का दिल अंदर तक टूटा है, पर अब वो कुछ नहीं कहेगी। दोनों चुपचाप क्लास की ओर बढ़ गईं। उस दिन क्लास भी खामोश थी और दोस्ती भी।
वापसी में छाया ने कहा—"कल हम नित्या दीदी की शादी के लिए निकल रहे हैं, एक हफ्ते में लौट आऊंगी।"
काशी ने बस इतना कहा—"अपना ध्यान रखना।"
...
घर पहुंचते ही छाया सीधे अपने कमरे में गई। माँ की आवाज आई—"तेरी पैकिंग कर दी है, कुछ देखना हो तो देख ले।"
छाया ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा—"सब कुछ है मेरे पास।" और माँ के गले लग गई।
उस रात घर में सब सो गए, पर छाया की आँखों में नींद नहीं थी।
सुबह जल्दी ट्रेन थी। गांव पहुंचने में 45 घंटे लगे। नित्या दीदी की शादी थी—घर में चहल-पहल थी, पर छाया के भीतर अब भी सन्नाटा था।
...
गांव में स्वागत से लेकर मंडप तक सब कुछ शानदार था, भले ही ताऊजी ज़्यादा अमीर नहीं थे। नित्या की मुस्कान ने सबके मन जीत लिए। छाया ने शादी की सारी तैयारियों में खुद को झोंक दिया। वह अपने दर्द को हँसी की ओट में छुपा रही थी।
उधर, कॉलेज में काशी बार-बार छाया की याद में खो जाती। एक दिन उसने कॉल लगाया—
"तू ठीक है न? मुझे तेरी बहुत चिंता हो रही है..."
छाया ने बात काट दी—"मैं ठीक हूँ काशी। जो हुआ, उसे भूल जा।"
काशी ने हिम्मत करके पूछा—"अब भी तुझे विशाल से उम्मीद है?"
छाया हँसी—एक बनावटी हँसी—"उम्मीद से ही तो दुनिया कायम है!"
इतना कहकर फोन काट दिया। हँसी के पीछे छुपा दर्द सिर्फ वही जानती थी।
शादी का दिन
बारात देर से आई। मंगल गीतों के बीच नित्या अप्सरा सी लग रही थी।
पर तभी धनेश ने ताने मारने शुरू कर दिए—"रिश्तेदार आए हैं और यहां स्वागत का भी ढंग नहीं।"
फिर लेन-देन की बात छेड़ दी।
विपिन चौंक गया—"पर आपने कहा था कि आप दहेज के खिलाफ हैं।"
धनेश हँसा—"प्रदूषण के भी खिलाफ हैं, पर सांस तो लेते हैं!"
और फिर सब कुछ टूट गया।
पंडित से मंत्र रुकवाए गए, वर को मंडप से हटा दिया गया।
सारा माहौल, सारी खुशियाँ एक पल में बिखर गईं।
छाया रह नहीं सकी। वो दौड़कर प्रमोद के पास गई—
"जीजू! आप दीदी से प्यार करते हैं न? तो फिर पैसों के लिए कैसे...?"
सुरीली ने चीखते हुए कहा—"प्यार बराबर वालों में होता है। हम अपने बेटे की शादी अपनी औक़ात वालों में कराएंगे!"
छाया स्तब्ध रह गई।
प्रमोद कुछ नहीं बोला। वह चुपचाप खड़ा रहा।
और उसी पल छाया ने सीखा—प्यार अगर आवाज़ नहीं बन सका, तो उसकी कोई कीमत नहीं।
1. क्या एकतरफा प्यार इंसान को मजबूत बनाता है या पूरी तरह तोड़ देता है?
2. जब समाज प्यार को नहीं, हैसियत को तरजीह देता है—तो दिलों का क्या होता है?
3. क्या चुप रह जाना कमजोरी होती है, या सबसे बड़ी ताक़त?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की"