अदित्य की उंगलियाँ अब भी उस दीवार पर थीं, जो जल रही थी… पर जलकर राख नहीं हो रही थी।
उसने जल्दी से हाथ खींच लिया।
“ये... क्या था?”
पीछे से अचानक किसी के पायल की आवाज़ आई।
"इतनी रात को अकेले क्या कर रहे हो?"
रूहाना की आवाज़ थी।
अदित्य ने पलटकर देखा—वो वहीं खड़ी थी, आंखों में हल्का काजल लगा था, बाल खुले, और उसकी साड़ी… उसी लाल रंग की जो दीवार पर लिखावट के पास झूल रही थी।
“तुम यहां क्या कर रही हो?” अदित्य ने पूछा।
“वही जो तुम कर रहे हो… तलाश।”
उसने मुस्कुरा कर आंखों में झांका।
“मैं जवाब ढूंढ रहा हूं।”
“और मैं सवाल।”
रूहाना उसके क़रीब आई, “तुम्हें क्या लगता है, तुम जो जानना चाहते हो... वो सच तुम्हारे काबू में रहेगा?”
“मेरे पास काबू करने का इरादा नहीं है। मुझे सिर्फ पता करना है, कि गांव के लड़के मर क्यों रहे हैं।”
रूहाना हल्के से हँसी।
“और अगर मैं कहूं, कि कुछ जवाब दिल के बजाय जिस्म से मिलते हैं... तो क्या करोगे?”
अदित्य थोड़ी देर चुप रहा।
फिर बोला, “फिर भी पहले मैं सवाल करूँगा।”
रूहाना की मुस्कान धीमी हुई।
“तो पूछो…”
“सोहन कहाँ है?”
उसके इस सवाल पर पहली बार रूहाना की आँखों में कोई कंपन सा आया। हल्का, मगर साफ़।
“तुम्हें लगता है, मैं जानती हूँ?”
“तुम्हें लगता है, मुझे नहीं पता कि तुम जानती हो?”
अब दोनों के बीच सिर्फ साँसों की आवाज़ थी।
रूहाना कुछ देर उसे देखती रही, फिर बोली —
“अगर मैं कहूँ, कि सोहन खुद मुझे ढूँढते हुए आया था?”
“क्यों?”
“क्योंकि कुछ लोग सिर्फ मोहब्बत नहीं करते… वो मोहब्बत के पीछे की सज़ा भी खुद चुनते हैं।”
अदित्य ने कदम पीछे खींच लिए।
"तुम बातों से खेलती हो।"
“और तुम दिल से डरते हो।”
वो फुसफुसाई — “जो दिल से देखेगा… वही जान पाएगा।”
वही लाइन।
जो दीवार पर लिखी थी।
अदित्य ने सिर उठाकर देखा, लेकिन अब दीवार पर कुछ नहीं था।
सब साफ़।
रूहाना गायब हो चुकी थी।
सुबह होते-होते गांव में खबर फैल चुकी थी —
**सोहन का शव पुराने पीपल के पेड़ के पास मिला है।**
सीने में फिर वही निशान — दिल गायब।
और एक लाल कंगन उसकी उंगली में अटका था।
भीड़ पगला गई थी अब।
“अब बहुत हुआ! ये लड़की भूतनी है!”
“या तो गांव छोड़ो, या हम खुद छोड़ देंगे!”
“और अगर ठाकुर ने उसे छुपाया, तो हवेली भी जला देंगे!”
पंचायत ने ऐलान किया —
**“आज रात तक फैसला होगा।”**
शाम को हवेली के अंदर का माहौल तनाव से भरा था।
ठाकुर, अदित्य और कुछ गांव वाले बैठक में थे।
“मैं अब चुप नहीं रह सकता,” ठाकुर ने कहा, “आज रात हम उससे पूछेंगे... सामने बैठाकर... सबके सामने।”
“क्या होगा अगर वो सच में...” कोई पीछे से बोला।
“शक की भी हद होती है,” अदित्य बोला, “मगर अगर ये सारे संयोग हैं, तो ये दुनिया सबसे ज्यादा खतरनाक इत्तेफाकों से भरी है।"
रात 11 बजे…
रूहाना हवेली के बीचोबीच बैठी थी।
चारों तरफ गांव वाले।
कुछ के हाथ में लकड़ियाँ, किसी के पास लोटे में गंगाजल।
“तुम्हारा नाम रूहाना है?” किसी ने पूछा।
उसने गर्दन हिलाई।
“क्या तुमने शादी की हर रात किसी मर्द को मारा है?”
“नहीं।”
“क्या तुम जानती हो, सोहन कहाँ था?”
“वो खुद आया था।”
“तुमने उसे मारा?”
“नहीं…”
“फिर उसके पास तुम्हारा कंगन क्यों था?”
रूहाना चुप रही।
अदित्य आगे आया, धीरे से बोला —
“सच या झूठ से ज़्यादा, यहां डर बैठा है… और वो डर धीरे-धीरे तुम्हें खा जाएगा रूहाना…”
रूहाना ने नज़रें ऊपर उठाईं।
“डर हमेशा बाहर से नहीं आता, कुछ डर हमारे अंदर ही पलता है। और जब कोई औरत... उस डर को पहचान लेती है... तो उसे डायन कह दिया जाता है।”
कुछ गांववालों ने एक-दूसरे की तरफ देखा।
“तो क्या अब भी तुम्हें खुद को साबित करना है?” अदित्य ने पूछा।
रूहाना ने धीमे से उत्तर दिया —
“जिस दिन मैं अपना सच खोलूंगी, उस दिन ये गांव जल जाएगा...”
एक पल को खामोशी छा गई।
रात ठंडी हो चुकी थी, मगर हवेली के बीचोबीच बैठे हर शख्स की पीठ पसीने से गीली थी।
अगले ही पल… हवेली की बत्तियाँ बुझ गईं।
चारों तरफ अंधेरा।
किसी के चीखने की आवाज़ आई —
“कोई पीछे से खींच रहा है!”
फिर कोई दरवाज़ा ज़ोर से खुला।
और एक पायल की टनटनाहट हवेली के गलियारे में गूंज उठी।
अदित्य दौड़कर बाहर आया।
दरवाज़े की देहलीज़ पर लिखा था —
“अब खेल शुरू होगा…”
कहानी में आगे क्या होगा जाने के लिए पढ़ते रहिए....
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