Pahli Raat ki Suhaagraat - 7 in Hindi Love Stories by Sujata Sood books and stories PDF | पहली रात की सुहागरात - भाग 7

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पहली रात की सुहागरात - भाग 7

कमरा अब भी सुलग रहा था।अगरबत्तियों की खुशबू अब धुएँ में बदल चुकी थी, और पलंग के सिरहाने लगी दीवार पर वो खून से लिखा वाक्य… अब भी चमक रहा था:**“अब तुमने देख लिया… अगली बार समझ भी जाओगे…”**अदित्य वहीं खड़ा था, उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं, और माथे पर पसीने की लकीरें दौड़ रही थीं।उसने फौरन आशुतोष की नब्ज़ देखी —धड़कन धीमी थी, मगर थी।उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, होंठ सूख चुके थे… जैसे कोई गहरी नींद में गिरा हो या फिर किसी डर के हाथों बंधक बना होसारे गांव में अगले ही घंटे खलबली मच गई।“वो बच गया?”“कैसे ज़िंदा है ये?”“क्या सच में रूहाना उसे… मारने वाली थी?”पंचायत की बैठक फिर बुलाई गई।इस बार माहौल और भी सख्त था।गांव के पुजारी, जो अब तक खामोश थे, उठ खड़े हुए —“ये कोई आम औरत नहीं… ये तो *तांत्रिक छाया* है। इसका हर कदम एक विधि है… और हर शादी एक यज्ञ!”ठाकुर ने आंखें तरेरकर देखा, “तुम किस आधार पर बोल रहे हो?”“जो लड़की हर रात किसी नए आदमी से शादी करे, वो इंसान नहीं हो सकती,” पुजारी गरजे, “और अब हमारे पास पहला गवाह भी है।”अदित्य को सबकी नजरें घूर रहीं थीं।“बोलो बेटा,” पुजारी ने कहा, “क्या देखा तुमने?”अदित्य चुप रहा।बहुत देर तक।फिर बोला — “मैंने सिर्फ इतना देखा… कि उस रात सब कुछ वैसा नहीं था, जैसा दिखता है।”“मतलब?” ठाकुर ने पूछा।“मतलब ये कि हम सभी अपनी आंखों से सिर्फ शक देखते हैं… सच नहीं।”गाँववालों में खुसुर-पुसुर शुरू हो गई।“बचाव कर रहा है…”“शायद वो भी फँस गया है उसकी जाल में…”“या फिर डर गया…”अदित्य ने कुछ नहीं कहा।उधर… हवेली के भीतररूहाना फिर अकेली थी।वो आईने के सामने बैठी, अपने बाल सुलझा रही थी।आईना फिर धुंधला हुआ…और उसमें कोई परछाईं उभरी — **एक बच्ची की।**उसकी आँखों में आंसू थे।वो किसी को पुकार रही थी… “अम्मा… अम्मा…”रूहाना ने आँखें झपकाईं।अक्स गायब हो गया।“फिर वही सपना…”उसने बुदबुदाकर अपनी आँखें बंद कीं।लेकिन तभी कमरे के कोने में रखा दिया अपने आप बुझ गया।और एक धीमी आवाज़ आई —**“तू भूली नहीं… बस छुपा रही है।”**रूहाना चौंकी, मुड़ी — मगर कोई नहीं था।रात को…गाँव के दो लड़के, भोला और करन, छिपकर हवेली के पास गए।“देखते हैं अंदर क्या करती है ये डायन… अब हम ही सच निकालेंगे।”वे हवेली के पीछे बने टूटे हुए दरवाज़े से अंदर घुसे।कमरे में घुप्प अंधेरा था।लेकिन अंदर कुछ था… **जो सांस ले रहा था।**हवा में गीली मिट्टी और गुलाब की खुशबू मिली हुई थी।“करन… उधर देख!”भूलकर दोनों अंदर बढ़ गए।तभी…दरवाज़ा **खड़ाक!** से बंद हो गया।और ऊपर बालकनी से किसी ने धीमे से फुसफुसाया —“जो भीतर आता है… वो लौटता नहीं…”अगली सुबह गांव फिर जागा —लेकिन इस बार एक और ख़ाली चप्पल हवेली के बाहर पड़ी थी।और दीवार पर खून से लिखा था:**“अब बारी उनकी है… जो छिपकर देखते हैं।”**पंचायत अब उबल चुकी थी।“या तो इस रूहानी डायन को जलाओ… या फिर खुद जलने को तैयार रहो!”अदित्य फिर चुप था।लेकिन उसकी आंखों में अब सिर्फ डर नहीं था…**बल्कि एक फ़ैसला था।**रात को वो फिर हवेली गया।लेकिन इस बार अकेला नहीं — **उसके पीछे पुजारी भी छिपा था**, कुछ तावीज़ और राख लेकर।अदित्य ने रूहाना को आवाज़ दी,“तुम मुझसे बात करोगी या फिर अगले को मारोगी?”रूहाना बालकनी पर आई —उसकी आँखों में थकावट थी… और होंठों पर वही मीठी मुस्कान।“तुम तो अब बहुत सवाल पूछने लगे हो…”“क्योंकि अब जवाब देने का वक़्त आ गया है।”“अभी नहीं,” उसने कहा, “सिर्फ एक आखिरी शादी और…”“फिर क्या?”“फिर… सब याद आ जाएगा।”“किसे?”रूहाना ने कुछ नहीं कहा।बस अपनी आँखें बंद कीं।और एक आँसू उसकी पलकों से गिरकर हवेली की सीढ़ियों पर गिरा।आँसू का रंग... लाल था।

अगर आप को मेरी कहानी पसंद आई हैं, तो आप पत्रलिपि पर मौजूद मेरी नोवेल पढ़ सकते हो 

1- इंतकाम -ए- मोहब्बत 

2- My cruel heart lover

3- The CEO Secret Lust 

4- Contracted Desires 

ये सब नोवेल पैशनेट लव पर हैं