रूहाना उस दरार को देख रही थी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, पर उसकी साँसें अब एक लय में नहीं थीं।
पलकों के नीचे डर छुपा था, पर होठों पर वही धीमी मुस्कान अब भी खेल रही थी। धीरे-धीरे वह दरार और खुलने लगी।
मिट्टी झड़ रही थी… और दीवार के पीछे कोई कुछ खरोंच रहा था।
तभी “ठक… ठक… ठक…” दीवार के भीतर से लगातार तीन दस्तकों की आवाज़ आई। रूहाना एकदम चुप।
उसने सिर झुका लिया। और फिर जैसे अचानक किसी ने उसकी गर्दन झटका — उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, साँस तेज़, और होंठों से एक फुसफुसाहट निकली ,“मैं शिवाया नहीं हूँ…”
पर कोई सुन नहीं रहा था। उस कमरे में सिर्फ सन्नाटा था
और दीवार के पीछे दबा **कोई सच** जो साँस ले रहा था।
गांव में अगली सुबह और भी डरावनी थी। भोला और करन अब भी नहीं लौटे थे। गांव के छोटे बच्चे अब रात में पेशाब करने के लिए भी माँ-बाप का हाथ पकड़ने लगे थे।
लोगों ने हवेली के सामने दीया जलाना शुरू कर दिया था —
कुछ डर के मारे, कुछ बचने की उम्मीद में।
पंचायत में आज फैसला होना था "अब उस औरत को बंद किया जाए या जलाया जाए?"
अदित्य वहीं था, लेकिन अब उसकी आँखों में पहले वाली बेचैनी नहीं थी। वो सबके चेहरे देख रहा था डरे हुए, थके हुए, लेकिन गुस्से से भरे हुए। पुजारी ने फिर वही दोहराया
“हर रात एक शादी, हर सुबह एक लाश। अब और नहीं!”
ठाकुर ने कहा, “अगर अगली बार भी कुछ हुआ… तो सीधा आग लगेगी उस हवेली में।"
रात…अदित्य हवेली के पास पहुँचा। पर इस बार वो अकेला नहीं था —उसके पीछे एक और चेहरा था, परछाईं की तरह — **शिवानी**, जो पहले कभी गांव में नहीं देखी गई थी।
“तुम कौन हो?” अदित्य ने पूछा। “जो उसे जानती है,” उसने कहा। “किसे?”
“जिसे तुम रूहाना कहते हो… पर वो कुछ और थी कभी।”
“क्या तुम जानती हो वो कौन है?”
“नहीं,” उसने धीमे से कहा, “पर मैंने उसके साथ खून में भीगे सपने देखे हैं… और मैं उसी सपने में से आई हूँ।”
अदित्य हतप्रभ था। हवेली के अंदर…
रूहाना फिर अकेली थी।
कमरे में हल्की रोशनी थी, दीवारों पर फिर वही आवाजें चल रही थीं। “शिवाया… ओ शिवाया…” उसने कान बंद कर लिए।
“नहीं! मैं वो नहीं हूँ! नहीं!!”
लेकिन तभी —उसके ठीक पीछे वो बुढ़िया खड़ी थी —
वही जो दिनभर हवेली के बाहर बैठी रहती थी।
“याद आ रहा है ना… धीरे-धीरे सब लौट रहा है…” बुढ़िया ने कहा।
रूहाना ने आँखें खोलीं, चौंकी “तुम… तुम अंदर कैसे आईं?”
बुढ़िया मुस्काई —
“मैं कभी बाहर थी ही नहीं…”
और फिर वो गायब हो गई।
रूहाना ज़मीन पर गिर पड़ी।
उसकी उंगलियाँ थरथरा रही थीं, और होंठ बुदबुदा रहे थे —
“शिवाया… कौन है ये शिवाया…”
उसी वक्त…
गांव के मंदिर की घंटियाँ अपने आप बजने लगीं।
बिना किसी के छुए।
और उसी समय हवेली के ऊपर से एक भयानक **चीख** गूंजी —
**रूहाना की चीख।**
पर वो किसी इंसान की नहीं लग रही थी —
वो चीख… जैसे किसी पुरानी आत्मा के फटते सीने से निकली हो।
गांव के बच्चे रोने लगे।
औरतें घरों के दरवाज़े बंद करने लगीं।
कुत्ते भौंकने लगे।
और आसमान में एक बगुला उलटी दिशा में उड़ता दिखाई दिया।
रूहाना को आईने में खुद की परछाईं नहीं दिखाई देती।
बल्कि दिखाई देती है — **एक औरत, जो ज़ंजीरों में बंधी है… और उसकी आँखें रूहाना जैसी ही हैं।**
*****वेरी इंपॉर्टेंट नोट******
मेरी audio book 🎧
ये कहानी है सब इंस्पेक्टर तनुश्री ग्रेवाल की, जिसने अभी-अभी पुलिस फोर्स जॉइन की है। ईमानदार, बेख़ौफ़ और निडर—तनुश्री का सपना है Criminals को सज़ा दिलाना, चाहे सामने कितनी भी बड़ी ताक़त क्यों न हो।
लेकिन किस्मत उसके रास्ते में ला खड़ा करती है डीसीपी अग्निवीर राठौड़ को—एक ऐसा अफ़सर, जिसकी आँखों में रहस्य और चेहरे पर शिकार की मुस्कान है। अग्निवीर के दिल में तनुश्री के लिए नफ़रत की आग है, और उसी आग को बुझाने के लिए वो उसे अपने रिश्तों की जंजीरों में बाँधना चाहता है। शादी उसके लिए प्यार नहीं, बल्कि बदला है।
इसी बीच, शहर में डर और खून से भरी घटनाएँ होने लगती हैं। एक केस तनुश्री को एक पुराने गाँव तक ले जाता है, जहाँ उसकी मुलाक़ात होती है उस प्राचीन डायन से, जिसे सदियों पहले एक पेड़ में कैद किया गया था। तनुश्री गलती से उसे आज़ाद कर देती है—और अब तनुश्री को मिलने वाले हर केस में, वो डायन गुनहगारों को ऐसे दर्दनाक तरीक़े से सज़ा देती है, जिन्हें देखकर रूह काँप जाए।
अब तनुश्री दोहरी जंग लड़ रही है—एक तरफ़ अग्निवीर का खतरनाक खेल, और दूसरी तरफ़ वो अलौकिक ताक़त, जिससे उसने खुद अपने हाथों किस्मत को बांध दिया है।
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