भगवद् गीता: अध्याय 1, श्लोक 6
संस्कृत श्लोक:
युधामन्युश्च विक्रान्तः उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥६॥
सरल हिंदी अनुवाद:
(पाण्डवों की सेना में) विक्रान्त युधामन्यु, शक्तिशाली उत्तमौजा, अभिमन्यु (सुभद्रा का पुत्र), और द्रौपदी के पाँचों पुत्र हैं—ये सभी महारथी (महान योद्धा) हैं।
सार:
इस श्लोक में दुर्योधन पाण्डवों की सेना के और भी शक्तिशाली योद्धाओं का उल्लेख करता है, जैसे युधामन्यु, उत्तमौजा, अभिमन्यु, और द्रौपदी के पाँच पुत्र। ये सभी महारथी हैं, अर्थात् युद्ध में अत्यंत कुशल और शक्तिशाली। दुर्योधन का यह वर्णन उसकी बढ़ती चिंता और पाण्डवों की सेना की ताकत के प्रति उसके भय को और गहरा करता है। यह श्लोक युद्ध की विशालता और दुर्योधन के मन में चल रहे द्वंद्व को और स्पष्ट करता है।
शब्दों का भावार्थ (Line-by-line):
1. युधामन्युश्च विक्रान्तः: युधामन्यु, जो अत्यंत वीर और पराक्रमी है। (युधामन्यु एक शक्तिशाली योद्धा है, जो पाण्डवों का समर्थन करता है।)
2. उत्तमौजाश्च वीर्यवान्: और शक्तिशाली उत्तमौजा। (उत्तमौजा, एक और महान योद्धा, जो अपनी वीरता के लिए जाना जाता है।)
3. सौभद्रो: सुभद्रा का पुत्र (अभिमन्यु)। (अभिमन्यु, अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र, जो युवा होते हुए भी असाधारण योद्धा है।)
4. द्रौपदेयाश्च: और द्रौपदी के पुत्र। (द्रौपदी के पाँच पुत्र—प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक, और श्रुतसेन—जो सभी युद्ध में कुशल हैं।)
5. सर्व एव महारथाः: ये सभी महारथी हैं। (ये सभी योद्धा अकेले हजारों सैनिकों का सामना करने में सक्षम हैं।)
जीवन से जुड़ी सीख:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि जब हम किसी बड़ी चुनौती का सामना करते हैं, तो हमारा मन अक्सर दूसरों की ताकत और संसाधनों की ओर भटक जाता है, जिससे हमारी अपनी क्षमताएँ धुंधली पड़ सकती हैं। दुर्योधन की तरह, हम भी दूसरों की ताकत को गिनाने में खो जाते हैं और अपनी शक्तियों को भूल जाते हैं। यह श्लोक हमें यह भी सिखाता है कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें अपनी ताकत पर भरोसा करना चाहिए और दूसरों की शक्ति को देखकर हतोत्साहित होने के बजाय, अपनी रणनीति और संकल्प को मजबूत करना चाहिए।
गहराई से उदाहरण (भावुक):
कल्पना करें, एक युवा उद्यमी अपनी नई कंपनी शुरू कर रहा है। वह देखता है कि उसका प्रतिद्वंद्वी, एक बड़ी कंपनी, के पास अनुभवी कर्मचारी, बड़े निवेशक, और मशहूर सलाहकार हैं। वह अपने दोस्त से कहता है, "उनके पास तो इतने सारे बड़े लोग हैं—उनका सीईओ, मार्केटिंग हेड, और तकनीकी विशेषज्ञ, सभी इतने शानदार हैं। मैं कैसे मुकाबला करूँ?" उसका यह डर दुर्योधन की तरह है, जो पाण्डवों की सेना के महारथियों को देखकर घबरा रहा है। यह स्थिति हमें सिखाती है कि दूसरों की ताकत को देखकर निराश होने के बजाय, हमें अपनी मेहनत, जुनून, और अनूठी दृष्टि पर ध्यान देना चाहिए।
आत्म-चिंतन सवाल:
क्या मैं दूसरों की ताकत को देखकर अपनी क्षमताओं को कम आँकता हूँ?
क्या मैं अपनी अनूठी शक्तियों और संसाधनों का सही उपयोग करता हूँ, या दूसरों की तुलना में खुद को कमजोर मान लेता हूँ?
क्या मैं चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने लक्ष्यों और रणनीति पर ध्यान केंद्रित करता हूँ?
भावनात्मक निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें हमारे भीतर की उस कमजोरी की ओर इशारा करता है, जहाँ हम दूसरों की शक्ति को देखकर अपने आत्मविश्वास को खो देते हैं। दुर्योधन की तरह, हम भी कई बार दूसरों की ताकत को गिनाने में इतना खो जाते हैं कि अपनी संभावनाओं को भूल जाते हैं। लेकिन गीता हमें सिखाती है कि सच्ची जीत वही है, जो अपने मन को संयमित करे और अपनी शक्तियों पर भरोसा करे। यह श्लोक हमें प्रेरित करता है कि हम दूसरों की ताकत को सम्मान दें, लेकिन अपनी यात्रा और अपने कर्तव्यों पर अटल रहें। यह हमें साहस देता है कि हम अपनी अनूठी शक्ति को पहचानें और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें।