Bhagwat Geeta Kya hai aur ise kyo padhna Chahiye - 1 - Shlok - 3 in Hindi Spiritual Stories by parth Shukla books and stories PDF | भगवद गीता क्या है और इसे क्यों पढ़ना चाहिए - अध्याय 1 - श्लोक 3

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भगवद गीता क्या है और इसे क्यों पढ़ना चाहिए - अध्याय 1 - श्लोक 3

श्लोक (अध्याय 1, श्लोक 3):

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥

1. सरल हिंदी अनुवाद:
दुर्योधन ने कहा: हे आचार्य, देखो, पांडवों की इस विशाल सेना को, जो तुम्हारे बुद्धिमान शिष्य, द्रुपद के बेटे (धृष्टद्युम्न) ने युद्ध के लिए व्यवस्थित की है।
सार: इस श्लोक में दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य से कहता है कि वे पांडवों की विशाल और अच्छी तरह तैयार सेना को देखें, जिसे द्रोणाचार्य के बुद्धिमान शिष्य, धृष्टद्युम्न (द्रुपद का बेटा), ने संगठित किया है। यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें अपने सामने वाले की ताकत को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। द ुर्योधन ने पांडवों की सेना की ताकत और उनके लीडर की समझदारी को खुलकर स्वीकार किया, जो हमें बताता है कि सच्चाई को देखना और उसका सम्मान करना जरूरी है। यह श्लोक नेतृत्व के महत्व को भी दर्शाता है—धृष्टद्युम्न ने अपनी सेना को मजबूत और संगठित बनाया, जो हमें सिखाता है कि एक अच्छा लीडर अपनी टीम को एकजुट और तैयार रखता है। इसके अलावा, यह हमें जागरूकता और रणनीति की अहमियत बताता है। किसी भी चुनौती का सामना करने से पहले हमें सामने वाली ताकत को समझना और अपनी तैयारी को बेहतर करना चाहिए। यह श्लोक हमें प्रेरित करता है कि हम डर को छोड़कर, सच्चाई को स्वीकार करें और अपनी रणनीति को मजबूत करें। अगर हम दुर्योधन की तरह सामने वाली ताकत को देखकर सतर्क रहें और सही कदम उठाएँ, तो हम जिंदगी की हर जंग में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।


2. शब्दों का आसान भावार्थ (Line-by-line):
पश्यैतां:    इसे देखो।
 अर्थ:    दुर्योधन अपने गुरु से कह रहा है कि सामने की चीज़ को ध्यान से देखें।

पाण्डुपुत्राणाम्:    पांडवों के (पांडु के बेटों की)।
 अर्थ:   यहाँ पांडवों की सेना की बात हो रही है।

आचार्य:   हे गुरु (द्रोणाचार्य)।
 अर्थ:   दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य को संबोधित कर रहा है।

महतीं चमूम्:    विशाल सेना को।
 अर्थ:   पांडवों की बहुत बड़ी और शक्तिशाली सेना।

व्यूढां:  व्यवस्थित की गई।
 अर्थ:  सेना को युद्ध के लिए सही तरह से तैयार किया गया है।

द्रुपदपुत्रेण:  द्रुपद के बेटे (धृष्टद्युम्न) ने।
 अर्थ:   धृष्टद्युम्न, जो द्रुपद का बेटा है, ने सेना को संगठित किया।

तव शिष्येण धीमता:  तुम्हारे बुद्धिमान शिष्य ने।
 अर्थ: धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य का शिष्य है और बहुत समझदार है।

3. जीवन की सीख:
दूसरों की ताकत को समझो: अपने सामने वाले की शक्ति और तैयारी को हल्के में न लें।
सच्चाई का सामना करो: दुर्योधन ने पांडवों की ताकत को देखा और उसे स्वीकार किया। हमें भी अपनी कमजोरियों और दूसरों की ताकत को ईमानदारी से देखना चाहिए।
नेतृत्व की अहमियत: एक अच्छा नेता (जैसे धृष्टद्युम्न) अपनी टीम को मजबूत बनाता है। हमें भी अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाना चाहिए।
तैयारी का महत्व: किसी भी काम में अच्छी योजना और संगठन जरूरी है।

4. भावुक उदाहरण:
मान लो, एक स्कूल की छात्रा, राधा, अपनी कक्षा में होने वाली डिबेट प्रतियोगिता की तैयारी कर रही है। वह बहुत मेहनत करती है, लेकिन जब वह अपनी प्रतिद्वंद्वी, नेहा की टीम को देखती है, तो उसे लगता है कि नेहा की टीम बहुत अच्छी तरह तैयार है। नेहा की टीम का नेतृत्व उनका दोस्त, रवि, कर रहा है, जो बहुत समझदार है और सबको एकजुट रखता है। राधा को डर लगता है कि वह हार जाएगी।
वह अपनी टीचर, मिसेज गुप्ता, के पास जाती है और कहती है, “मैम, नेहा की टीम बहुत मजबूत है। रवि ने सब कुछ इतना अच्छे से तैयार किया है।” टीचर उसे समझाती हैं, “राधा, उनकी ताकत को देखकर डरो मत। अपनी मेहनत पर भरोसा रखो और अपनी टीम को और मजबूत करो।”
राधा उनकी बात मानती है। वह अपनी टीम के साथ मिलकर और मेहनत करती है, कमजोरियों को सुधारती है, और एक नई रणनीति बनाती है। प्रतियोगिता में वह अपनी पूरी ताकत से हिस्सा लेती है। भले ही वह पहला स्थान न जीत पाए, लेकिन उसकी मेहनत और हिम्मत की सब तारीफ करते हैं। राधा समझ जाती है कि सामने वाले की ताकत को देखकर डरने की बजाय, अपनी तैयारी को और बेहतर करना जरूरी है।

5. आत्म-चिंतन सवाल:
क्या मैं दूसरों की ताकत को देखकर डर जाता हूँ या उससे सीखने की कोशिश करता हूँ?
क्या मैं अपनी कमजोरियों को ईमानदारी से स्वीकार करता हूँ?
क्या मैं अपने काम को और बेहतर करने के लिए सही योजना बनाता हूँ?
मैं अपनी “टीम” (परिवार, दोस्त, या सहकर्मी) को कैसे और मजबूत कर सकता हूँ?

6. भावनात्मक निष्कर्ष:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि जिंदगी में कई बार हमें लगता है कि सामने वाला हमसे ज्यादा ताकतवर है। दुर्योधन ने पांडवों की मजबूत सेना को देखा, लेकिन उसे छिपाया नहीं। ठीक वैसे ही, हमें भी अपनी चुनौतियों को खुली आँखों से देखना चाहिए। राधा की तरह, अगर हम डर को छोड़कर अपनी मेहनत और तैयारी पर ध्यान दें, तो हम हर मुश्किल को पार कर सकते हैं। यह श्लोक हमें हिम्मत देता है कि हम दूसरों की ताकत से प्रेरणा लें और अपने रास्ते पर मजबूती से चलें। 🌟