गाँव सजनपुर, जहाँ हर कोई एक-दूसरे को जानता था, एक ऐसा स्थान था जहाँ गलती की गूँज, सच्चाई से ज़्यादा तेज़ सुनाई देती थी। वहाँ की गलियाँ, वहाँ के लोग, सब जैसे एक परिवार का हिस्सा थे। लेकिन एक दिन, कुछ ऐसा हुआ जिससे पूरे गाँव में हंगामा मच गया — एक ऐसी बात जो किसी की गलती नहीं थी, फिर भी किसी का जीवन बदलने को थी।
रामकिशोर, गाँव का स्कूल मास्टर, अनुशासनप्रिय और शांत स्वभाव का व्यक्ति था। पिछले बीस वर्षों से वह गाँव के बच्चों को पढ़ाता आ रहा था। न कोई शिकायत, न कोई बदनाम कहानी — बस एक साधारण जीवन, जिसमें उसका सबसे बड़ा गौरव था उसका ईमान और बच्चों का विश्वास।
एक दिन स्कूल में लंच ब्रेक के बाद अचानक हड़कंप मच गया। कक्षा पाँच की एक छात्रा, सीमा, रोते-रोते स्टाफ रूम में आई। उसकी नोटबुक फटी हुई थी और वह कह रही थी कि "मास्टर जी ने डाँटकर उसकी किताब फाड़ दी और उसे बाहर खड़ा कर दिया।"
शुरू में किसी को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन सीमा के माता-पिता उसी शाम स्कूल पहुँच गए। उनके साथ गाँव के कुछ नेता जैसे लोग भी थे — जिन्हें हर बात में साज़िश की गंध आती थी। बात बढ़ती गई, और अगले ही दिन पूरे गाँव में चर्चा फैल गई — "मास्टर रामकिशोर ने बच्ची पर हाथ उठाया!"
गाँव की चौपाल से लेकर स्कूल तक, हर जगह सिर्फ एक ही चर्चा थी। मीडिया तक ख़बर पहुँच गई — "एक मास्टर द्वारा बच्ची पर अत्याचार!" टीवी चैनलों पर रामकिशोर की तस्वीरें चलने लगीं।
विद्यालय के प्राचार्य, जो रामकिशोर से पूर्व में किसी कारण नाराज़ थे, उन्होंने बिना जाँच के ही रामकिशोर को निलंबित कर दिया।
रामकिशोर स्तब्ध था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। जिस स्कूल को उसने अपना मंदिर माना था, उसी से बाहर निकाल दिया गया। सबसे बड़ी चोट उसे तब लगी, जब गाँव के कुछ पुराने मित्र भी उससे नज़रें चुराने लगे।
रामकिशोर ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। लेकिन उसकी पत्नी मीना ने हार नहीं मानी। उसने कहा —
"अगर गलती तेरी नहीं है, तो डर किस बात का? हम सच के लिए लड़ेंगे।"
मीना ने एक पुरानी छात्रा, कविता, से संपर्क किया जो अब शहर में वकील थी। कविता, जिसने कभी रामकिशोर से गणित सीखा था, तुरंत गाँव आई। उसने कहा —
"गुरुजी, आपने हमें लड़ना सिखाया था, अब बारी मेरी है।"
कविता ने पूरे मामले की स्वतंत्र जाँच शुरू की। उसने सबसे पहले स्कूल की अन्य छात्राओं से बात की, जिसमें यह सामने आया कि सीमा ने खुद अपनी किताब ग़ुस्से में फाड़ी थी क्योंकि वह होमवर्क करना भूल गई थी। रामकिशोर ने उसे बस डाँटा था, लेकिन उसने डर से कहानी गढ़ दी थी।
गहराई से पड़ताल में यह भी सामने आया कि प्राचार्य ने यह सब जानबूझकर तूल पकड़ा, क्योंकि वह रामकिशोर की लोकप्रियता से ईर्ष्या रखते थे।
एक दिन मीना और कविता ने गाँव के पंचायत प्रमुख और सभी प्रमुख लोगों को एकत्र किया। उन्होंने सबूतों के साथ पूरी सच्चाई सामने रखी — बच्चों के बयान, कैमरे की रिकॉर्डिंग (जो स्कूल के कंप्यूटर लैब में लगी थी), और सीमा की माँ का वह ऑडियो जिसमें वह कहती है कि "हमें सबक सिखाना है, मास्टर को।"
गाँव वालों की आँखें खुली की खुली रह गईं। जिस व्यक्ति पर वे शक कर रहे थे, वह तो एक निर्दोष था। और जिसे वे झूठ का प्रतीक समझ रहे थे, वह सच्चाई की मूर्ति निकला।
पंचायत ने तत्काल प्रभाव से प्राचार्य को हटाने और रामकिशोर को स्कूल में पुनः नियुक्त करने का निर्णय लिया। गाँव के लोग शर्मिंदा थे।
सीमा और उसके माता-पिता रोते हुए रामकिशोर के घर पहुँचे।
"माफ कर दीजिए मास्टरजी, हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई।"
रामकिशोर ने एक गहरी साँस ली और कहा —
"मैं तुम्हें माफ करता हूँ, लेकिन इस घटना ने जो घाव दिया है, वह जल्दी नहीं भरेगा। सच्चाई को पहचानने में देर लगी, लेकिन शुक्र है कि वो आई।"
रामकिशोर वापस स्कूल गया। बच्चों ने तालियाँ बजाकर उनका स्वागत किया। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन चेहरा गर्व से भरा हुआ।
कविता ने जाते-जाते कहा —
"गुरुजी, सच्चाई देर से आती है, लेकिन जब आती है, तो अंधकार को पूरी तरह मिटा देती है।"
रामकिशोर ने आसमान की ओर देखा और मुस्कुराया —
"गलती किसी की ना होते हुए भी हो गया बड़ा हंगामा, लेकिन दे रहा है दुरुस्त आए।"