आसमान में काले बादल घिर आए थे, जैसे प्रकृति भी रोहन के मन की उदासी को महसूस कर रही हो। वह अपनी छत पर खड़ा था, आंखों में आंसू और हाथ में पिता की दुकान का कर्ज चुकाने का नोटिस। "कैसे पूरा करूंगा अपना सपना?" वह सोचने लगा। उसके पिता गंभीर बीमारी के कारण दुकान चला नहीं पा रहे थे और अब उस पर लाखों रुपये का कर्ज चढ़ चुका था।
मां की आवाज आई, "रोहन बेटा, खाना खा लो।"
"आता हूंँ मां," कहकर रोहन नीचे तो चला गया, लेकिन उसके दिल में चिंता का सैलाब उमड़ रहा था।
अगले दिन कॉलेज में उसके सबसे अच्छे दोस्त अमन ने एक सुझाव दिया, "मेरे चाचा की कंप्यूटर शॉप है, दो घंटे की पार्ट-टाइम जॉब मिल सकती है। पैसे भी मिलेंगे और काम भी सिखने को मिलेगा।"
रोहन को लगा जैसे अंधेरे में एक छोटी-सी रोशनी दिख गई हो। उसने हां कह दी। अब उसकी दिनचर्या कठिन हो गई—सुबह कॉलेज, शाम को दुकान पर काम और रात को पढ़ाई। लेकिन उसने हार नहीं मानी।
कुछ हफ्तों बाद एक दिन दुकान में एक ग्राहक का लैपटॉप अचानक खराब हो गया। गलती रोहन की नहीं थी, लेकिन सारा दोष उसी पर मढ़ा गया। अमन के चाचा ने गुस्से में उसे नौकरी से निकाल दिया। यह उसके लिए बहुत बड़ा झटका था। निराश होकर घर लौटते समय वह रास्ते में अपनी स्कूल की टीचर श्रीमती शर्मा से टकराया।
"क्या बात है रोहन? बहुत थके हुए लग रहे हो," उन्होंने चिंता से पूछा।
रोहन ने सब कुछ बता दिया। श्रीमती शर्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम मेरे बेटे को ट्यूशन पढ़ाओ। अगर अच्छा लगा तो मैं और स्टूडेंट्स दिलवा दूंगी।"
यह एक नई शुरुआत थी। रोहन ने जी-जान से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। हालांकि शुरुआत में कई अभिभावकों ने उसकी उम्र को लेकर संदेह जताया। "तुम्हें क्या अनुभव है?" एक पेरेंट ने कहा।
रोहन ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, "मैं एक महीना मुफ्त में पढ़ाऊंगा, अगर बच्चे की प्रगति हुई तो आप फीस दे देना।" यह दाँव चल गया। जल्द ही उसके पास दस से ज्यादा छात्र हो गए।
रोहन अब न सिर्फ घर का खर्च निकाल रहा था, बल्कि अपने पिता की दवाइयों का इंतजाम भी कर रहा था। उसकी पढ़ाई भी चल रही थी, लेकिन तभी एक और संकट आया। इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा से एक महीने पहले उसके पिता की तबीयत और बिगड़ गई।
अब उसे सुबह 4 बजे उठकर अस्पताल जाना पड़ता, दिन में कॉलेज, शाम को ट्यूशन और रात में पढ़ाई करनी होती। वह थक जरूर जाता, लेकिन कभी हार नहीं मानी। एक रात जब वह अस्पताल में पिता के पास बैठा था, उसने अपनी डायरी निकाली और लिखा:
"मैं थक तो रहा हूं, लेकिन रुकूंगा नहीं। यह सब मेरे सपने की उड़ान का हिस्सा है।"
परीक्षा के दिन वह पूरी तैयारी के साथ गया। जब नतीजे आए, तो उसने पूरे राज्य में टॉप 100 में स्थान पाया। उसकी कहानी एक स्थानीय अखबार में छपी और कई संस्थाओं ने उसे स्कॉलरशिप की पेशकश की।
आज रोहन एक सफल इंजीनियर है और एक एनजीओ चलाता है जो आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को मुफ्त शिक्षा देता है। वह अक्सर कहता है, "मुसीबतें मुझे डराने नहीं, निखारने आई थीं।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिनाइयां चाहे जितनी भी हों, अगर इरादे मजबूत हों, तो सपनों की उड़ान कोई नहीं रोक सकता।