इसवक्त अस्पताल का ये रूम नम्बर 55 गहरे सन्नाटे में डूबा हुआ था। सिर्फ मशीनों की बीप और शांति जी की धीमी सांसों की आवाज ही इस खामोशी को तोड़ रही थी।
कमरे की ठंडक में भी, पावनी का चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। वह शांति जी के पास बैठी, उनका हाथ थामे हुए थी। उसके चेहरे पर डर, बेचैनी, और भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था।
शांति जी की हालत देखकर पावनी की आंखों से आंसू बह रहे थे। वह कभी उनके चेहरे को निहारती, तो कभी उन मशीनों की तरफ देखती, जो उनकी जिंदगी की डोर को पकड़े हुए थीं।
शांति जी ने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलीं और पावनी को अपने पास बैठा देखा। उनकी आंखों में दर्द था, लेकिन उस दर्द के पीछे एक सुकून भी था। वह जानती थीं कि उनकी बेटी उनके पास है।
लेकिन जैसे ही उन्होंने पावनी को देखा, उनकी आंखों में अतीत के दृश्य एक एक करके तैरने लगे। जिन्हें सोचकर ही उनकी आत्मा कांप उठती थी।
अतीत की यादें।
आज भी शांति जी उस डरावने हादसे को सोचती तो उनकी रूह कांप उठती थी। वह ठंडी सर्दियों की रात थी। शांति जी उस वक्त तीस के आसपास की थीं। उनकी जिंदगी का हर दिन अपने आप में एक संघर्ष था। एक अनाथ और अकेली औरत, जो समाज की तमाम मुश्किलों का सामना करके एक अनाथालय चला रही थी।
वैसे तो शांति जी का बचपन भी कोई कम संघर्षों में नहीं गुजरा था। उंन्होने जब से होश संभाला था एक भिखारी समूह के बीच पली बढ़ी थी। वो तब किसी गैंग के लिए भीख मांगने का काम किया करती थी ।
लेकिन एक दिन गंगा जी जो इस आशीर्वाद अनाथालय की मुखिया थी उनकी नजर शांति जी पर पड़ गई और वहीं से शांति जी का जीवन पॉसिटिवली इतना ज्यादा चेंज हुआ था।
उन दिनों गंगा जी ने उन्हें काफी मुश्किलों के बाद अडॉप्ट किया था और शान्ति जो उंन्होने ही ये शांति नाम दिया था। क्योंकि वो बचपन से बहुत नर्म दिल और कोमल स्वभाव की लड़की रही थी।
खैर जब शांति जी को ये बात पता चली की गंगा जी के पति सिर्फ इसलिए उन्हें छोड़कर चले गए थे क्योंकि वो बच्चे नहीं पैदा कर सकती थी ,तो ये सब सुनकर शांति जी ने भी उसी दिन एक प्रण लिया था कि वो अपने जीवन में कभी शादी नहीं करेगी बल्कि अपने जैसे लावारिस बच्चों के भविष्य को सुधारेगी। और इसी में उंन्होने अपना जीवन न्योछावर कर दी थी।
देखते देखते वक्त जा पहिया घुमा और गंगा जी की किसी दुर्घटना में डेथ हो गई जिसके बाद उन्होंने उस अनाथालय को संभाला और साथ ही कई सारे एनजीओ के साथ मिलकर वो कार्य कर रही थी।
लेकिन उस सर्दी की रात, जब वह अपने काम से लौट रही थीं, तो एक सुनसान जंगल के पास से आगे होल्डर एक हाईवे की तरफ से जब वो गुजर रही थी, तो सड़क किनारे से एक अजीब सी आवाज आई।
यह आवाज किसी नवजात की रोने की थी। उन्होंने तुंरन्त ड्राइवर से गाड़ी साइड में लेजाकर रोकने के लिए कहा और खुद बाहर उतरकर इधर-उधर देखा, लेकिन उन्हें कुछ नजर नहीं आया। फिर थोड़ी देर बाद, उनकी नजर वहीं साइड में एक पोल के पास एक डॉग और उसके सामने रखे गत्ते के डिब्बे पर पड़ी।
वो डॉग उन्हें देखकर जोर जोर से बार्क कर रहा था जिसपर शांति जी ने अपने ड्राइवर से कहकर उसे बिस्किट्स खाने को दिया और खुद आगे आ गई।
लेकिन जब आगे बढ़कर उंन्होने देखा तो उस डिब्बे के अंदर एक छोटी-सी बच्ची थी। ठंड के मारे उसकी हालत खराब हो रही थी। उसका नन्हा-सा चेहरा आंसुओं से भरा था। अधिक रोने से उसकी सांस कम ज्यादा हो रही थी। उस कोमल बच्ची को देखकर शांति जी का दिल मोम की तरह पिघल गया। वह तुरंत उस बच्ची को उठाकर अपने आलिंगन में भरकर उसे चुप कराने लगी।
“हे भगवान, ये बच्ची यहां कैसे? आखिर कोई इतना जालिम कैसे हो सकता है। ” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा।
बच्ची की हालत बहुत नाजुक थी। वह इतनी छोटी थी कि शायद उसे अपनी मां का दूध भी ठीक से नसीब नहीं हुआ था। उसके साथ एक छोटा-सा सिल्वर बॉक्स और एक लिफाफा रखा हुआ था।
शांति जी ने उस डिब्बे को देखा और फिर उस बच्ची को। इतने में वो डॉग शांति जी को सलाम करते हुए वहां से तेजी से आगे जंगल की ओर भाग गया था। शांति जी ये सब देखकर इतना तो समझ गई थीं कि यह कोई आम बच्चा नहीं था। उसे यहां छोड़ने का कोई बड़ा कारण था। और फिर उस बच्ची के चेहरे का तेज उन्हें लुभाने लगा था।
“तुम्हें इस दुनिया में अकेला छोड़ने वाला कितना पत्थरदिल होगा।” उन्होंने बच्ची को ममतामयी होकर अपने सीने से लगाते हुए कहा।
इतने में एक गाड़ी उनके सामने से आगे काफी स्पीड से बढ़ी और अचानक उस गाड़ी का बैलेंस बिगड़ा और वो गाड़ी उनके सामने ही उछलते हुए नीचे खाई में गिर गई थी।
ये सब देखकर शांति जी का कलेजा फटने को हो गया था । क्योंकि उस गाड़ी की जगह उनकी गाड़ी भी हो सकती थी।
तभी जब ड्राइवर ने आकर उन्हें बताया की आगे सड़क पर काफी सारे नुकीले कील को बिछाया गया था तो शांति जी ने ये सुनकर एक नजर पावनी को देखा। वो इसवक्त बहुत क्यूटली उन्हें निहार रही थी।
उस एक पल में ही उन्होंने फैसला कर लिया था कि यह बच्ची अब उनकी जिम्मेदारी है। वह उसे अपनी बेटी की तरह पालेंगी।
अगले दिन, शांति जी ने बच्ची को अपने अनाथालय में लाकर रखा। उन्होंने उसका नाम "पावनी" रखा, जिसका मतलब होता है "पवित्रता।"
पावनी का आना उनके जीवन में जैसे एक नई रोशनी लेकर आया था। वह बच्ची उनके जीवन का केंद्र बन गई। उन्होंने उसके लिए दिन-रात मेहनत की। उसकी हर जरूरत का ध्यान रखा।
लेकिन उनके मन में हमेशा एक सवाल था—पावनी कौन थी? उसके माता-पिता कौन थे? और उन्होंने उसे इस तरह छोड़ने का फैसला क्यों किया? लेकिन उंन्होने उन्हें ढूढ़ने की कभी कोशिश भी नहीं कि थी।
क्योंकि वो पावनी को खोना नहीं चाहती थी। उन्हें उस बच्ची से एक अजीब सा मोह हो गया था। अपनी माँ गंगा देवी के चले जाने बाद इतना जुड़ाव उंन्होने पहली बार किसी के साथ महसूस की थी।
खैर वक्त बीतता गया। पावनी बड़ी होने लगी। शांति जी ने कभी उसे यह महसूस नहीं होने दिया कि वह उनकी सगी बेटी नहीं है। उन्होंने उसे हर खुशी दी। हालांकि पावनी हमेशा से ये बात जानती थी कि शांति जी उसकी बायलोजिकल मदर नहीं है। लेकिन उसने भी कभी उनसे अपने बायलोजिकल पेरेंट्स के बारे में पूछताछ नहीं कि। क्योंकि उसे कभी इन सब चीजों की जरूरत महसूस ही नहीं हुई थी।
वर्तमान में शांति जी की सोच अचानक टूट गई। जब पावनी ने सुबकते हुए उनका हाथ थाम लिया।
“मां, आप क्या सोच रही हैं? प्लीज, कुछ बोलिए न,” पावनी ने रोते हुए कहा।
शांति जी ने धीरे से मुस्कुराया। वह जानती थीं कि उनके पास अब वक्त बहुत कम बचा है। वह अपने दर्द को और ज्यादा छुपा नहीं सकती थीं।
“पानु,” उन्होंने धीमी आवाज में कहा, “तुम्हें पता है, जब मैं तुम्हें पहली बार मिली थी, वह रात मेरी जिंदगी की सबसे खास रात थी।”
“क्या मतलब, माँ? ” पावनी ने अचानक चौंककर पूछा। वो हैरान थी कि शांति जी ने आज अचानक इतने सालों में उसके असली पहचान के बारे में बात क्यों छेड़ी थी। वो एकटक उन्हें देख रही थी।
“तुम मेरी बेटी हो, तुम्हें मैंने जन्म नहीं दिया तुम इतना तो जानती हो मेरी बच्ची, लेकिन मैं अब चाहती हूं तुम अब अपनी असली पहचान खोजो। ” शांति जी ने कांपती आवाज में कहा।
यह सुनकर पावनी के चेहरे पर दर्द उभर आया। “मां, ये आप क्या कह रही हैं? बेशक से हमारे बीच खून का रिश्ता नहीं है लेकिन मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता ।”
“ माँ आप जानती हैं जब दिल के रिश्ते इतने ब्यूटीफुल हो तो फिर खून के वो जबर्दस्ती के रिश्ते झूठे और फीके लगने लगते हैं। मुझे तो सिर्फ मेरी माँ चाहिए माँ। ”
इतने में शांति जी ने हल्के से उसका हाथ दबाया। वो बोली-“पावनी, तुम, तुम सच में कितनी बड़ी हो गई हो, बच्चा तुम जानती हो तुम मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा हो। लेकिन सच यही है कि मैंने तुम्हें सड़क किनारे एक डिब्बे में पाया था। और।” इतना कहते ही उनके मुंह से ब्लड निकलने लगा था जिससे पावनी बहुत ज्यादा घबरा गई थी।
पावनी जोर से चिल्लाई-” माँ, डॉक्टर नर्स क्या कोई है, प्लीज जल्दी आओ मेरी माँ को देखो, ये क्या हो रहा है आपको माँ।” कहते हुए वो साइड टेबल पर रखे कॉटन से उनके मुंह के आस पास से ब्लड साफ करने लगी थी।
इसवक्त पावनी के आंसू अपने आप उसके आंखों से झरझर करके गालों पर लुढ़क रहे थे। शांति जी ने उसके बाजू को कसकर पकड़ रखा था। वो कुछ बोलने को हुई लेकिन पावनी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा- “ प्लीज मां, आप कुछ मत कहिए, मुझे कुछ नहीं सुनना, आप ही मेरी माँ हो बस इतना काफी है मेरे लिए आप इतनी सी बात क्यों नहीं समझती हां, देखो तो हम सबका ख्याल रखते रखते क्या हालत कर ली आपने अपनी।”
उसे देखकर शांति जी के आंखों में नमी उतर गई लेकिन उन्होंने अपने आंसुओ को बमुश्किल कंट्रोल किया हुआ था।
पावनी अपनी रुआंसी आवाज़ में आगे बोली-” आपको पता है जितना मैंने अब तक समझा है एक मां बनने के लिए बच्चे को जन्म देना ही जरूरी नहीं होता माँ। आपने मुझे अगर तब अपनाया नहीं होता तो आज इस दुनिया में मेरा शायद कोई अस्तित्व ही नहीं होता।”
“ माँ जिन्होंने मुझे पैदा किया उंन्होने तो मुझे त्याग दिया था ना, सिर्फ आपने मुझे अपने दिल से अपनाया है। आप नहीं जानती आप मेरे लिए क्या हो। “ ये कहते हुए उसने शांति जी के माथे से अपना माथा टिका लिया था।
“ तुम भी मेरी जान हो पानु प्लीज ऐसी बातें करके मुझे दुःखी मत करो मैं जीते जी मर जाऊंगी बेटा ।” शांति जी ने इतना कहकर जोर से अपनी आंखें मूंद कर ली।
यह सुनकर पावनी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। उसने तुंरन्त शांति जी के सीने में हल्के से अपना सिर रखा और सिसकने लगी।
“मां, आप मुझे कभी छोड़कर नहीं जा सकतीं। आप ही मेरी असली मां हैं। आपने मुझे पाला, मुझे जिंदगी दी। आपके बिना मैं कुछ भी नहीं हूं, अगर आप कहीं जाने वाली हैं तो मुझे भी अपने साथ लेकर चलना मां।” उसने रोते हुए कहा।
शांति जी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा। “बेटा, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी। मेरी यादें, मेरा प्यार, सब तुम्हारे साथ रहेगा। और याद रखना, तुम मेरी सबसे बड़ी ताकत हो। मुझे तुम पर गर्व है।”
पावनी ने झट से उनसे अलग होकर उन्हें देखा, वो अपने अंदर इसवक्त एक असहनीय दर्द महसूस कर रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे धीरे धीरे करके कोई उससे उसकी प्राण छीनने की कोशिश कर रहा है।
इतने में वहांपर निशान डॉक्टर परिवेश को लेकर भागता हुआ आ गया और हक्का बक्का होकर शांति जी को देखने लगा। इसवक्त वहीं जानता था उसने कितनी मुश्किल से खुद को संभाला हुआ था। वरना अगर वो भी कमजोर पड़ गया तो फिर पावनी को कौन सम्भालेगा।
तभी डॉक्टर परिवेश ने निशान को पावनी को लेकर थोड़ी देर के लिए बाहर जाने के लिए कहा और जब वो दोनों वहां से बाहर गए तो उन्होंने शांति जी का चेकअप करना शुरू कर दिया।
परिवेश ने शांति जी को देखते हुए कहा-“सच में मुखिया जी आप कितनी हिम्मत वाली हैं ,आप इतनी सकारात्मक विचार की धनी हैं कि आपसे मिलकर मेरा ये जीवन सफल हो गया।”
शांति जी हल्के से मुस्कुरा दी और बोली-” डॉक्टर परिवेश , हालत चाहें कैसी भी क्यों न हो हिम्मत तो रखनी ही पड़ती है। लेकिन आज उसे सच पता चल गया और लग रहा है जैसे सिर से एक बड़ा बोझ उतर गया है। आपने इन दिनों मेरा बहुत साथ दिया है और मुझे उम्मीद है आप भविष्य में हमेशा उस आश्रम को अपनी पनाह में रखेंगे।”
जिसपर डॉक्टर परिवेश बोला-” आप चिंता मत कीजिए मुखिया जी मैं हमेशा उस आशियाने का ख्याल रखूंगा।”
वहीं बाहर आकर पावनी के आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसे चुप कराना निशान के लिए बहुत ज्यादा मुश्किल हो रहा था।
निशान ने उसे चुप कराते हुए कहा-” पानु यार प्लीज शांत हो जा ,देख तू ये ठीक नहीं कर रही है, अभी उन्हें सबसे ज्यादा तेरे जरूरत है, प्लीज तू ऐसे हार मत मान।”
जिसपर पावनी अपने बाजुओं से आंसुओ को साफ करते हुए बोली-” निशान अगर मेरी माँ को आज कुछ भी हुआ न तो मैं नर्क में जाकर उस मौत के सौदागर यमराज जी को जान से मार दूंगी, देखना तुम।"