टाम ज़िंदा है।---------------(5)
बदले की तड़प इंसान को कभी कभी जो सोचा नहीं होता वो बना देती है। पुलिस की वर्दी पर लगा दाग धोना हर किसी के दिमाग़ मे नहीं चलता। कुछ चीजे हम भूल नहीं सकते। कि दुश्मन इतना शातिर हो सकता है।
प्रेम की हसन की बात रिकॉर्डिंग हो चुकी थी। उसको हसन ने रेलवे की पछचिम की ओर एक पुराने पोस्ट ऑफिस की ओर बुलाया था, पहले यहां डाक घर होता था, अब वो वीरान था।
एक पेटी खेप बारूद की थी.. ओर कुछ 32 बोर के कटे..
एक दो बंदूके।
हसन वही अमन बन चूका था उसका इडनटी एक गोरमिंट कार्ड था।
समय के मुताबिक वो पुहच चूका था। पर प्रेम कैसे लेट हो गया था... "कोई दाल मे काला तो नहीं " उसने सोचा था।
मकेनिक की वर्दी पहने जिन्होंने हाथ काले किये हुए थे वही तीन चार आदमी वही इंजन खडे को ठीक करने मे मशगुल थे। जयादा और कम धयान उनका चल रही शतरज के खेल पर था।
---------------------तभी प्रेम की लम्मी अम्बेसडर कार धीरे से रुकी। ताजुब था। साथ मे प्रेम के एक और लड़की थी जिसको हसन भी जानता नहीं था।
प्रेम के संग वो दोनों वो एक वीरान कमरे मे थे -----" "ताजुब है मिया अमन इस एडटी से कैसे बन गए " फिर वो उसकी चुस्ती पे हस पड़ा। " पहचान नहीं होते हो। "
"ज्योति ने ठीक ही कहा था, कि वो चकरा गयी है। "रुक कर बोला ----" माल जो दिखा रहे हो एक दम परफेकट है ---" प्रेम ने बकसे को खोला ही था... तभी पीछे से पुलिस ने" हेड जप कहा...कोई चलाकी नहीं... " प्रेम और उस लड़की के पसीने छूट गए। " हसन उर्फ़ अमन वाह, खूब तमाशा लगा दिया.... कच्ची गोली कोई नहीं खेलता... " प्रेम एक और गिर गया... तभी ब्लास्ट हुआ... पता है किसका... वही कार का... बहुत जबरदस्त धमाका। आग की लपटो से सब टेशनेश हो गया... प्रेम भी सेहकते हुए मर गया... और लड़की का कुछ पता नहीं लगा... तीन पुलिस वाले जिन्होंने ने मकेनिको की वर्दी पहनी थी.. वो भी भस्म हो चुके थे। हसन जान बचाता खिसक गया। उसकी भी एक टांग जख्मी थी।
तुरंत रिपोर्ट पुलिस थाने ------
"--- इतना बड़ा जोख्म महगा पड़ा... कोई बात नहीं... शहीद हो गये।" त्रिपाठी के शिकन माथे पर चेहरे पर थे।
"पता चला, वो भाग गया। " किसी ने कहा।
" कौन " त्रिपाठी ने ऐसे कहा जैसे कितना ही विचार आधीन हो।
" सर हमें बताये.... समग्लिग कितनी देर से हो रही है। "
त्रिपाठी ने उम्दा कहा ----" अगर हमें पता होता, ऐसे बहुदे सवाल का, तो फिर बात ही कया थी। "
उस डाक घर की वराने की जगह तबाह हो गयी थी, बिल्डिंग टूट चुकी थी... आग की लपटे उच्ची उच्ची फायर बरगेड वाले बड़ी मशक्त से बुझा रहे थे।
उधर त्रिपाठी को बेहद दुःख हो रहा था... शातिर प्रेम इतना तेज आपनी जान पे खेल जायेगा... सोचा नहीं था।
और ऐसे कितने प्रेम होंगे.... अब काम को कुछ ठहराव देकर करना होगा... बड़ी चलाकी से। नहीं तो हाथ मे आती गेम कभी भी ठोक सकती थी।
कुछ महीनों के बाद ------
शाम ढल रही थी... शहर बम्बे रात के आगोश मे जा रहा था। तभी त्रिपाठी का लड़का छोटा घर नहीं आया था। ये दुखदायी घटना थी। कमीशनर साहब ने चेतावनी के साथ पेश होने को त्रिपाठी को कहा था...
त्रिपाठी को आज पेश होना था... आधे घंटे पहला ही जा पंहुचा था।
" मै इ कमिंग सर। "
"यस... आओ त्रिपाठी जी। "
"सिट डाउन "
"त्रिपाठी तुम्हारे बच्चे का कुछ पता चला.... आज एक दिन हो चूका है ---"
"नहीं सर ---" हताश सा बोला।
केस बंद था त्रिपाठी --- फिर ये खोला --- फिर हाथयार बरामदगी मे उनका आदमी... कया नाम ---- हाँ हाँ प्रेम मारा गया। " फिर कमीशनर साहब रुक कर बोले ----" अब बच्चा लापता है, त्रिपाठी.... "
त्रिपाठी ने हौसला दिखाते बोला, " सर ये केस मै इतना तो होता ही रहता है... देश के लिए शपथ खायी है, साहब जी। ऐसे कई बच्चे कुर्बान करता हूँ, जितनी देर पता नहीं ला लेता। " त्रिपाठी ने एक लम्मा सास छोड़ा....
कमीशनर ने ताड़ी मारी.... " त्रिपाठी जी आप काबले तरीफ है.... " कमीशनर ने मुस्कराते हुए कहा। " मेरी कही भी जरूरत पड़े, मै हाज़र हूँ। "
"जी साहब " -----!!
त्रिपाठी रूम से बाहर आ चूका था। फिर बाहर उसने एक छोटे से स्टाल से काफ़ी पी थी।
(चलदा)---------------------------------- नीरज शर्मा ।
शाहकोट, जालंधर।