चंद्रा पूरे महल में इधर-उधर देखती हैं लेकिन उसको कुछ भी दिखाई नहीं देता है फिर चंद्रा को समझ में आता है कि यह आकाशवाणी थी और उसक़ो चेतावनी देने की कोशिश कर रही थी चंद्रा को गुस्सा आता है और चंद्रा गुस्से में बोलती है कि "कौन मुझे धोखा देगा???ऐसा करने की हिम्मत इस राज्य में किसकी है जो मुझे धोखा दे सके???
जो चंद्रा के सामने आंख उठाकर भी खड़ा हो पाए??"
तभी आसमान से फिर एक आवाज आती है
"तुम्हारा यह घमंड ही तुम्हें एक दिन ले डूबेगा चंद्रा "
और वह आवाज फिर हंसने लगती है
उसकी यह बात सुनकर चंद्रा के होश उड़ जाते हैं और वह गुस्से आग बबूला होकर होश खो बैठती है
और फिर गुस्से में आसमान की तरफ देखकर बोलती है" मैं चंद्रा हूं इस पूरी धरती पर सिर्फ मैं इकलौती महारानी हूं जिसे अमृत्व प्राप्त है
और मेरा जन्म इस पूरे ब्रह्मांड पर साम्राज्य करने हेतु हुआ है मेरी मौत बनना तो दूर की बात है मेरी तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत भी किसी के पास नहीं है
और तुम यह बात भूल गए हो कि मैं विध्वंस बनकर आई हूं और किसी के लिए भी धरती पर कुछ नहीं बचेगा "
चंद्रा की आंखों में अंगारे साफ दिखाई दे रहे थे
और अभी उसे वक्त चंद्रा के सामने दुनिया की कोई भी ऐसी ताकत नहीं थी जो उसके सामने टिक जाए
और चंद्रा का वह रूद्र रूप देखकर वह आसमान की आवाज कहीं गायब हो गई
आखिर उस सपना का सच क्या है चंद्रा अपने बिस्तर पर चिंतित होकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी
वहीं दूसरी तरफ कोई और था जिसकी आंखों में नींद नहीं थी और बेचैनी दिल में थी यह कोई और नहीं बल्कि दक्ष था उसे रात तक लेटा हुआ था और वह चाहकर भी सो नहीं पा रहा था कि उसके दिमाग में यह विचार चल रहे थे तभी उसके कानों में उसकी मां की आवाज आती है" कैसे हो बेटा?? "
उसकी मां भानुमति दक्ष के मुंह पर से कंबल उठाकर कहती है तो दक्ष अपनी मां की तरफ बड़े ही प्यार से देखता है और कहता है कि" कल तुम मुझे प्रतियोगिता में लेकर जाओगे ना मां??
इस बार में पवित्र प्रतियोगिता क़ो जीत कर ले आऊंगा" तब उसकी मां कहती है कि" तुम 15 साल से हर बार जा रहे हो और हर बार ही अपनी बेज्जती करवा कर रहे हो
काम है या तुम्हें फिर और अपमानित होना है??
आपको और अपमानित होने की जरूरत नहीं है और वैसे भी आपकी तबीयत ठीक नहीं है आप आराम कीजिए"
भानुमति की आवाज में एक अलग है दर्द और उसकी आंखों में पानी साफ झलक रहा था और उसके आंखों में पानी देखकर दक्ष बोल पड़ता है
"मेरे जैसा बच्चा पैदा करना यह आपके लिए आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होगा मां......
इससे अच्छा तो घर में पैदा ही नहीं हुआ होता "
"ऐसा मत कहो बेटा तुम मेरे जीवन का सबसे बड़ा उपहार हो....मेरे लिए केवल तुम ही हो" भानुमति अपने बेटे की तरफ देखते हुए आंखों में पानी लिए हुए उसक़ो कहती है
दक्ष जब पैदा हुआ था तब से ही वह किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहता था और तक उसक़ो हर किसी ने ठुकरा दिया था
और दक्ष की तरफ देखते हुए भानुमति उठकर खड़ी हो जाती है और कहती है कि" बिना कुछ सोच समझ तुम सो जाओ ठीक है कल वैद आएंगे और नई दवा देंगे "
इतना बोलने के बाद भानुमति वहां से चली जाती है दक्ष की मां पिंडारी पर शासन करने वाले राजा की आठवीं पत्नी थी और उसकी मां को कभी भी रानी होने का अधिकार नहीं मिला था इसलिए वह हमेशा अपने बेटे की ठीक होने की दुआ करती रहती
और उस दिन जैसे ही भानुमति अपने बेटे दक्ष के कमरे से बाहर निकलती है तो तक की अपने बिस्तर पर मौत हो जाती है
और उसकी यही इच्छा अधूरी रहती
लेकिन विधि का विधान तो कुछ अलग ही लिखा हुआ था जैसे ही दक्ष ने अपनी प्राण त्याग दिए थे तो पूरे आसमान में बादल काले घने हो गए थे मौसम बिल्कुल बदल गया
ऐसा लग रहा था मानो आसमान गलत कर बिजली के साथ फटकर गिर पड़ेगा
बिजली की आवाज कानों को चीरते हुए जा रही थी ऐसा मौसम पिंडारी में पहले कभी किसी ने नहीं देखा था वह तेज हवाओं के कारण पूरे महल की बत्तियां बुझ गई थी और दक्ष के कमरे में अंधेरा हो गया था तभी अंधेरों को चीरते हुए एक रोशनी टिमटिमाते हुई तक के कमरे में आती है और उसके शरीर में प्रवेश कर जाती है
और वैसे ही दक्ष ने अपनी आंखें खोल दी और उसी के साथ एक चमत्कार भी हुआ
दक्ष को उसके सारे दर्द से मुक्ति मिल गई थी और उसकी सारी बीमारियां भी ठीक हो गई थी
दक्ष के अंदर जी रोशनी ने प्रवेश किया था दरअसल वह एक आत्मा थी और यह आदमी 800 साल पुरानी थी
और यह आत्मा किसी और कि नहीं बल्कि पवित्र साम्राज्य के राजा दक्ष की थी
जिसकी जान 8 साल पहले एक दुष्ट महिला के धोखे के कारण चली गई थी
और वह आत्मा 800 साल से सिर्फ इसी तलाश में थी कि जिसकी आदमी की खोज में राज परिवार का खून दौड़ता हो और उसका नाम भी उस आत्मा की नाम पर ही हो
और इसी वजह से यह भानुमति के बेटे तक की मौत होते ही उस आत्मा ने उसे शरीर में प्रवेश कर लिया जो 800 सालों से भटक रही थी
पिंडारी के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा जा रहा था
वही प्रतापगढ़ में आकाशवाणी की आवाज सुनकर और आसमानी बिजली की आवाज सुनकर चंद्रा को चिंताएं होने लगी
और उसकी शंकाय होने लगी उन्हें शंकाओं के साथ चंद्रा अपने बिस्तर पर चली जाती और लेट जाती है
वह अपनी आंखें बंद करते हुए सोने की कोशिश कर रही थी तभी 800 साल पहले घटी एक घटना उसकी आंखों के सामने आ जाती है
8 साल पहले चंद्रा ने अपने प्रेमी को धोखा दिया था और उसकी जान ले ली थी दक्ष की आत्मा को उस वक्त उसके अकाल मृत्यु की वजह से मुक्ति नहीं मिल पाई थी और उसकी धोखे की वजह भी उसको पता नहीं थी और तक को उसे चंद्रा को उसके गुना की बहुत ही भयंकर सजा देनी थी
और तब से उन दोनों के बीच में बदले की प्रक्रिया शुरू हो गई और यह प्रक्रिया आज भी जा रही है