जवान लड़का – भाग 4
जैसे कि हमने पहले के भागों में देखा कि हर्ष एक जवान लड़का है जो अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पा रहा था। वो लगातार किसी लड़की की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। उसका मन और शरीर दोनों उसे बेचैन किए हुए थे। एक दिन वो एक जगह गया, लेकिन पुलिस की रेड के चलते उसे खाली हाथ लौटना पड़ा। हताश और निराश हर्ष ने आखिरकार एक लड़की को फोन कर अपने घर बुला लिया।
जब लड़की उसके घर आई, तभी अचानक हर्ष के मम्मी-पापा भी वापस घर आ गए। स्थिति को संभालने के लिए हर्ष ने जल्दी से उस लड़की को अपने कमरे में छुपा दिया। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था और दिमाग में बस एक ही सवाल था – "अब क्या करूं?"
हर्ष ने अपनी माँ से कहा, “माँ, मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ।” माँ ने जवाब दिया, “ठीक है बेटा, शाम को बात करेंगे।” हर्ष ने राहत की सांस ली और कमरे में जाकर उस लड़की से मिला। लड़की ने उसे देखते ही गले लगा लिया और बोली, “अब और इंतजार नहीं होता, चलो ना...” हर्ष ने उसे शांत करते हुए कहा, “तुम जितने पैसे मांगोगी, मैं दूंगा… बस आज रात यहीं रुको और चुप रहो।”
लड़की मान गई। हर्ष ने अपने एक दोस्त को फोन किया और उसे कहा कि वह उसके चाचा की आवाज़ में बात करे और माँ-पापा को बताए कि चाचा की तबीयत खराब है, इसलिए उन्हें तुरंत आना होगा। प्लान सफल रहा।
हर्ष के मम्मी-पापा जल्दी-जल्दी में घर से निकल गए और बोले, “बेटा, हम चाचा के पास जा रहे हैं, उनकी तबीयत बहुत खराब है।” अब हर्ष को पूरा मौका मिल गया।
कमरे में लौटकर उसने उस लड़की के साथ अपने दिल और शरीर दोनों की भावनाओं को खुलकर साझा किया। वो सब कुछ महसूस कर रहा था, जिसकी उसे चाह थी – पास आने की, अपनापन पाने की, और उस जवानी की बेचैनी को मिटाने की, जो लंबे समय से उसे परेशान कर रही थी।
लगभग दो घंटे तक हर्ष और लड़की ने साथ समय बिताया – बातचीत की, हँसे, और फिजिकल क्लोजनेस भी रही। पर जैसे-जैसे समय बीतता गया, हर्ष का शरीर थकने लगा। उम्र और अनुभव के लिहाज से वो अब ज्यादा देर तक खुद को एक्टिव नहीं रख पा रहा था। आखिरकार, लड़की ने घड़ी देखी और कहा, “अब तो दोपहर के दो बज गए हैं, मुझे अब जाना होगा।”
हर्ष ने थके हुए लहजे में कहा, “जा, दफा हो जा अब।” लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा, “बच्चा है तू… बच्चा बनकर ही ठीक रहेगा।” हर्ष चिढ़ गया और बोला, “दिमाग मत खा, जा न!”
जैसे ही लड़की घर से बाहर निकली, हर्ष के माता-पिता अचानक वापस लौट आए। उन्होंने देखा कि एक लड़की छोटे-छोटे कपड़ों में हर्ष के कमरे से बाहर आ रही है। दृश्य देखकर दोनों चौंक गए।
हर्ष को जब यह पता चला तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह डर के मारे काँपने लगा। उसने घबराते हुए कहा, “मम्मी... वो... वो मेरी दोस्त है बस।” उसकी माँ ने गंभीरता से उसे बैठाया और कहा:
“बेटा, मैं समझ सकती हूँ कि तुम्हारी उम्र में ऐसा होना स्वाभाविक है। लेकिन अगर तुम खुद पर नियंत्रण नहीं रखोगे, तो जीवन में कैसे आगे बढ़ोगे? अपने आप को इस तरह काबू से बाहर रखना तुम्हारे लिए ही नुकसानदायक है। आज तो घर पर थे, पर सोचो अगर कुछ और हो जाता तो?”
हर्ष की माँ की बातें उसके दिल में उतर गईं। उसे पहली बार एहसास हुआ कि वो जिस रास्ते पर जा रहा था, वह उसके लिए सही नहीं था। उसने शर्मिंदा होकर माँ से कहा, “माँ, मैं आगे से ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा।” यह कहकर वो अपने कमरे में चला गया और काफी देर तक सोचता रहा।
वो खुद से वादा करता है – "अब चाहे जो भी हो, मैं अपनी भावनाओं को काबू में रखूंगा। मुझे अपने भविष्य के लिए सही निर्णय लेने होंगे। मैं खुद को संभालूंगा, तभी एक बेहतर इंसान बन पाऊंगा।"