Jawan Ladka - 3 in Hindi Human Science by Katha kunal books and stories PDF | जवान लड़का – भाग 3

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जवान लड़का – भाग 3



जैसा कि आपने पिछले दो भागों में पढ़ा, हर्ष एक ऐसा किशोर था जो शारीरिक आकर्षण की ओर खिंचता जा रहा था। जब उसने अपने इलाके में एक लड़की से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की, तो अचानक पुलिस की रेड से वह बुरी तरह डर गया और वहां से भाग निकला। घर लौटकर उसने सोचना शुरू किया कि ऐसा क्या किया जाए जिससे वो इन सब उलझनों से दूर भी रह सके और अपनी इच्छाओं को भी शांत कर सके।

उसी दिन उसे उस इलाके के बाहर दीवार पर एक फोन नंबर लिखा हुआ याद आया। उसने हिचकिचाते हुए उस नंबर पर कॉल किया। कॉल रिसीव होते ही एक महिला की आवाज़ आई — "हाँ साहब, बोलिए?" क्या चाहिए ? हर तरह का मॉल मिलेगा मोटा पतला सब कौन सा लेगा तू ?

हर्ष थोड़ा संकोच में था, फिर बोला, "मैं हर्ष बोल रहा हूँ, मुझे एक लड़की चाहिए थी।"

वो महिला तुरंत बोली, "तो आ जाइए, मिल जाएगी।"

हर्ष ने घबराकर कहा, "नहीं... वहाँ पर पुलिस का डर है और वो जगह भी बहुत छोटी और जोखिम भरी लगती है।"

महिला ने हँसते हुए जवाब दिया, "तो फिर आपको ‘होम डिलीवरी’ चाहिए क्या साहब?"

हर्ष थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, "हाँ, अगर ऐसा हो सकता है तो मुझे लड़की घर पर भेज दो... सुबह 8 बजे तक।"

महिला ने कहा, "2000 रुपए लगेंगे और कितनी देर के लिए रखोगे?"

हर्ष बोला, "शाम 3 बजे तक।"

महिला ने हामी भरते हुए कहा, "ठीक है, लड़की कल सुबह पहुँच जाएगी। आप अपना एड्रेस भेज दीजिए।"

अब हर्ष पूरी तैयारी में लग गया। उसने अगले दिन के लिए खाना-पीना समय पर लेना शुरू किया ताकि उसके शरीर में ऊर्जा की कमी न हो। मन में उत्साह भी था और थोड़ा डर भी।

अगले दिन सुबह हर्ष जल्दी उठ गया। जैसे ही उसके माता-पिता स्कूल के लिए निकले, हर्ष ने तुरंत महिला को कॉल कर पूछा, "कब तक पहुँचेगी लड़की?"

तभी उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई।

हर्ष दौड़कर गया और दरवाज़ा खोला। सामने एक लड़की खड़ी थी — देखने में सुंदर, छोटे चमकीले कपड़ों में और हाथ में एक छोटा बैग।

हर्ष ने उसे अंदर बुलाया और कहा, "पहले कमरे में चलो।"

लड़की कमरे में जाकर बैठ गई और हँसते हुए बोली, "तू तो अभी बच्चा ही लग रहा है।"

हर्ष झल्लाकर बोला, "देखो, जो काम करने आई हो, बस वही करो। ज़्यादा बात मत बनाओ।"

लड़की मुस्कुराकर अपने कपड़े उतारने ही वाली थी कि तभी अचानक दरवाज़े पर ज़ोर से दस्तक हुई।

"हर्ष बेटा, दरवाज़ा खोलो!" उसकी माँ की आवाज़ थी।

हर्ष का दिल धड़कने लगा। वो घबरा गया और कांपते हुए लड़की से बोला, "छिप जाओ... जब तक मैं न कहूँ, बाहर मत आना।"

लड़की जल्दी से एक कोने में छिप गई। हर्ष ने दरवाज़ा खोला तो उसकी माँ अंदर आईं और बोलीं, "आज स्कूल की छुट्टी हो गई। शायद किसी राजनीतिक वजह से बंद कर दिया गया।"

हर्ष अंदर से डर के मारे कांप रहा था। वो सोचने लगा कि अगर उसकी माँ को सब पता चल गया, तो क्या होगा? घर में उसकी क्या इज़्ज़त बचेगी? समाज में उसके माता-पिता का क्या होगा?

उसके मन में अब डर, शर्म और पछतावा सब एक साथ उमड़ने लगे थे।