inteqam, bhag- 8 in Hindi Love Stories by Mamta Meena books and stories PDF | इंतेक़ाम - भाग 8

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इंतेक़ाम - भाग 8

आज निशा की शादी थी  बुआ जी बढ़-चढ़कर शादी की तैयारियों में लगी हुई थी वह नहीं चाहती थी कि कोई भी कमी रहे,

निशा की शादी में  मेहमान आ चुके थे तभी निशा की दादी आई उसे अकेले देखकर निशा और उसकी बुआ हैरान रह गए,

तब निशा की दादी निशा के पास आई और उसके गले लगाकर बोली बेटा चाहे किसी को एहसास हो या ना हो लेकिन मुझे अपनी गलती का एहसास है हो सके तो अपनी दादी को माफ कर देना,,,,

यह कहकर वह फूट-फूट कर रो पड़ी और बोली बेटी मैंने तुम्हारे साथ हमेशा बहुत गलत किया है लेकिन बेटा मुझे इसका अफसोस है मैं कभी भी अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगी,,,

यह कहकर  वह निशा के गले लग गई निशा भी अपनी दादी के गले लग कर रो पड़ी और बोली दादी आपके आंसुओं में आपके सारे गुनाह  बह गए अब मैंने आपको दिल से माफ कर दिया,

तब निशा की दादी ने अपने थैली में से एक सोने का हार निकालकर निशा को पहनाते हुए कहां बेटा यह अपनी दादी की तरफ से तोहफा समझना,,,,

यह देखकर निशा फिर अपनी दादी के गले लग गई शादी होने के बाद निशा भी दुल्हन बन कर विदा हो गई,

सभी रिश्तेदार भी चले गए निशा की दादी भी अब वापस चली गई थी, 

अब निशा की बुआ जी काफी अकेली हो गई थी क्योंकि उसके बेटे और बहू दोनों ही अमेरिका में डॉक्टर थे इसलिए वे दोनों तो कभी मुश्किल से चार-पांच साल में ही इंडिया आते थे,

उन्होंने काफी बार निशा की बुआ जी और अपनी मां से भी अपने साथ चलने के लिए कहा, लेकिन बुआ को विदेश में रहना पसंद नहीं था उसे तो अपने देश अपने ही मिट्टी से प्यार था और वह चाहती थी कि वह हमेशा यही रहे क्योंकि इस घर और इस देश से उसकी बहुत सी यादें जो जुड़ी थी,

निशा से उसकी बुआ का मन लगा रहता था लेकिन निशा के जाने के बाद में वह काफी अकेली पड़ गई थी,

निशा विजय और अपनी सास के साथ खुश थी विजय अच्छा लड़का था ,लेकिन उसे जिंदगी में सबसे ज्यादा प्यार अपने काम से था वह बहुत ही ज्यादा महत्वकांक्षी युवक था वह हर समय इस कोशिश में लगा रहता कि जितना ज्यादा हो सके उतना ज्यादा पैसा कमाए जाए ,वह हर चीज की तुलना बस पैसों से करता था उसके लिए प्यार परिवार की अपनी जिंदगी में जैसे अहमियत ही नहीं थी उसे लगता था कि पैसे से हर चीज खरीदी जा सकती है, दुनिया की हर खुशी पैसे से खरीदी जा सकती है वह हमेशा बस पैसे कमाने की धुन में लगा रहता,,,,

निशा कभी-कभी सोचती थी कि अपने काम के प्रति समर्पित होना अच्छी बात है लेकिन पैसों के प्रति इतना लालच अच्छा नहीं है आखिर परिवार भी कुछ होता है वह काफी बार विजय को समझाने की कोशिश करती, लेकिन विजय यह कहकर हमेशा डाल देता यार निशा तुम नहीं समझोगे आज के जमाने में पैसा ऐसा है तो सब कुछ है वरना कुछ नहीं और यह प्यार व्यार कुछ नहीं होता पैसा है तो प्यार है वरना नहीं निशा के समझाने का विजय पर कोई फर्क नहीं पड़ता,

निशा कभी-कभी सोचती कि उस ने कितना कुछ सोचा था विजय को लेकर कितने सपने सजाए थे लेकिन विजय को देख कर तो लगता है कि उसे अपनी जिंदगी में सिर्फ पैसे से ही प्यार है, 

निशा अंदर ही अंदर घुटती रहती लेकिन विजय से कुछ नहीं कहती उधर विजय पैसे कमाने की धुन में लगा रहता ,