Mera Rakshak - 16 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | मेरा रक्षक - भाग 16

Featured Books
Categories
Share

मेरा रक्षक - भाग 16


शाम के चार बजे थे। सूरज ढलने को था, और आसमान में हल्की सुनहरी सी रोशनी फैली हुई थी। शहर की भीड़भाड़ से दूर एक शांत कैफ़े — “Café Breezy” — जहां अक्सर कम ही लोग आते थे।


Meera आज बहुत थकी हुई, टूटी हुई और अंदर से खाली महसूस कर रही थी। कई हफ़्तों से उदास थी, किसी से बात करने का मन नहीं होता था, लेकिन उसकी दोस्त Rozy ने उसे समझाया, “चल ना, थोड़ा बाहर निकल। Café चलते हैं, तेरा मन हल्का हो जाएगा।”


दोनों कैफ़े के कोने वाली टेबल पर बैठ गईं। Rozy कुछ funny बातें करने की कोशिश कर रही थी, पर Meera मुस्कराने की भी एक्टिंग नहीं कर पा रही थी। तभी अचानक, कैफ़े के अंदर बने एक private zone से किसी की चीखने की आवाज़ आने लगी।


“सर… सर मुझे माफ़ कीजिए… मैंने उसे कुछ नहीं बताया.....please 

चीख, दहशत और घबराहट—ये सब एक साथ गूंज उठी थीं। कैफ़े का माहौल पल में बदल गया। जो कुछ सेकंड पहले peaceful था, अब वहां खामोशी और डर का जादू छा गया था। Customers एक-दूसरे की तरफ देखने लगे, कुछ उठकर दरवाज़े की ओर बढ़ने लगे।


फिर उसी private zone से 5–6 आदमी बाहर निकले। उनकी आंखों में गुस्सा था, चाल में आतंक, और पीछे—एक आदमी… रणविजय सिंह राठौड़।

White crisp shirt, जिसकी cuffs पर हल्का सा fresh blood का निशान था। Black sunglasses जो उसकी आँखों की सच्चाई छुपा रहे थे। उसके बाल perfectly backward set थे और उसकी दाढ़ी हल्की मगर तीखी थी। चेहरा कठोर, चाल धीमी लेकिन इतनी भारी कि ज़मीन भी उसके नीचे कांपती दिखे। उसके पीछे 3 bodyguards थे—हर एक की आँखें बस ऑर्डर की तलाश में थीं।


Meera की सांस अटक गई। उसकी आँखें पल भर के लिए झपकी ही नहीं। वो उसे देख रही थी—उस रणविजय को, जिसे वो वो जानती थी। लेकिन ये वो नहीं था। ये कोई और था। किसी और दुनिया का दरिंदा।


Ranvijay अभी तक Meera को notice नहीं कर पाया था। वो सीधा जाकर एक खाली कुर्सी पर बैठ गया। कैफ़े का सारा स्टाफ और customers डर के मारे बाहर भाग चुके थे। अब सिर्फ बचे थे:


Ranvijay, उसके साथी, कैफ़े का owner, Meera और Rozy।

कैफ़े का owner काँपते हुए Ranvijay के पास आया और उसके सामने घुटनों पर गिर पड़ा।

"बता किसने दिया address?" Ranvijay की आवाज़ low थी, लेकिन उसमें ज्वालामुखी दबी थी।

“सर... सर… मैं कसम खाता हूं, मैंने नहीं दिया..."

धड़ाक! — Ranvijay का एक मुक्का उसके मुँह पर पड़ा। Owner के मुँह से खून टपकने लगा। उसकी नाक से बहता खून सफेद फर्श पर गहराता जा रहा था।


Meera का शरीर सुन्न हो गया। आंखों से आंसू नहीं निकले, पर दिल चीख रहा था। वो यकीन नहीं कर पा रही थी कि ये वही Ranvijay था…  


John—Ranvijay का भरोसेमंद आदमी—ने Meera को देख लिया। उसका चेहरा भी एक पल को सफेद पड़ गया। वो सीधा Meera की ओर आया।

“मीरा, आप please यहां से चली जाएं" उसने धीमी आवाज़ में कहा।

लेकिन Meera ने John की तरफ देखा तक नहीं। उसकी नज़रें अब भी सिर्फ Ranvijay पर थीं, जो अभी भी owner को पकड़ कर धमका रहा था। उसकी आँखें गुस्से से भरी थीं, और हाथ… हाथ खून में सने हुए।

Meera खामोशी से उठी।

Rozy ने उसका हाथ पकड़ना चाहा, “Meera मत जा…”

लेकिन Meera ने उसका हाथ धीरे से हटा दिया। वो बगैर किसी डर के सीधा Ranvijay की तरफ बढ़ी।

जब Meera उसकी नज़रों के सामने आ खड़ी हुई, Ranvijay ने एक पल को भी सोचा नहीं कि सामने कौन है। लेकिन जैसे ही उसकी आँखें Meera से मिलीं… सब कुछ थम सा गया।

Ranvijay के हाथ कांपने लगे।

उसका चेहरा एकदम सफेद पड़ गया।

उसने धीरे से अपनी Bloody fingers को देखा… और फिर Meera को।

वो लड़की, जिसे रणविजय कभी भी अपना ये रूप नहीं दिखाना चाहता था… आज उसी लड़की ने उसे अपने सबसे डरावने रूप में देख लिया था।

Meera कुछ सेकंड तक कुछ नहीं बोली। फिर उसकी आवाज़ टूटी, कांपती हुई लेकिन बहुत गहरी।

“तुम जानवर हो रणविजय….. जानवर..."

Ranvijay की आँखें नम हो गईं। कुछ कहना चाहा, पर जुबान ने साथ नहीं दिया।

Meera पलटी, और तेज़ी से बाहर चली गई।

Ranvijay वहीं खड़ा रह गया। जैसे किसी ने उसके वजूद से सारी जान खींच ली हो। वो धम्म से कुर्सी पर बैठ गया।

John, Rozy, और बाकी सब लोग चुप थे। सिर्फ Ranvijay की नज़रें उस दरवाज़े पर टिकी थीं, जहां से Meera अभी-अभी बाहर निकली थी।

उसकी आत्मा कांप रही थी।

आज उसने सिर्फ एक आदमी को नहीं मारा था…

आज उसने Meera की नज़रों में खुद को मार दिया था।