मीरा वहीं खड़ी थी, जहाँ रणविजय ने उसे छोड़ दिया था बिल्कुल अकेली, बेजान-सी। उसके कानों में रणविजय के वो आख़िरी शब्द गूंज रहे थे...
"आज के बाद न मैं तुम्हें जानता हूँ और न तुम मुझे..." " ये हमारी आख़िरी मुलाकात है"
मीरा ने कभी नहीं सोचा था कि जिस इंसान की आँखों में उसने पहली बार अपने लिए फिक्र देखी थी, वो यूँ एक झटके में उसे पराया कर देगा। उसकी रूह काँप गई थी, जिस्म सुन्न था। आँसू बहते रहे, और दिल जैसे जवाब दे गया हो।
वो धीरे-धीरे dining टेबल की कुर्सी पर जा बैठी। मिस रोज़ी ने दूर से देखा तो समझ गई कि कुछ तो हुआ है। लेकिन मीरा की हालत ऐसी थी कि कोई उससे सवाल भी नहीं कर सकता था।
मीरा ने अपना चेहरा दोनों हाथों में छिपा लिया।
“मैंने ऐसा क्या किया रणविजय...? कल तक तो तुम मुझे खुद से दूर नहीं होने देते थे… आज खुद ही मुझे पराया कर दिया…” — मन ही मन वो खुद से लड़ रही थी।
वो अपनी जगह से उठी और सीधा अपने कमरे में चली गई। आज पहली बार उस कमरे में आकर उसे सुकून नहीं मिला। कल तक यही जगह उसे रणविजय के करीब लाती थी, आज वही जगह उसे काटने लगी थी।
दरवाजा बंद करते ही वो फूट-फूटकर रो पड़ी।
"क्यूँ इस तरह से बात की मुझसे रणविजय... एक बार तो बता देते... कोई गलती हो गई क्या मुझसे...?"
मीरा की आँखें सूज गई थीं, लेकिन जवाब... कोई नहीं था।
उधर रणविजय library में फिर से अपनी टीम के साथ बैठा था, लेकिन मन कहीं और था। मीरा की भीगी आंखें, उसकी टूटी हुई आवाज़ — सब उसकी आँखों के सामने घूम रहा था।
जॉन रणविजय को देखकर समझ गया था कि रणविजय का ध्यान किधर है, जॉन रणविजय का सिर्फ बॉडीगार्ड नहीं बल्कि एक बड़े भाई की तरह भी था।john रणविजय के पास गया ।
जॉन ने धीरे से कहा, "Boss…... आपको मीरा से इस तरह से बात नहीं करना चाहिए थी, जो हो रहा है उसमें उनकी कोई गलती नहीं है। आपको जाकर उनसे बात करनी चाहिए।"
रणविजय ने आँखें बंद कर लीं, “नहीं जॉन… जितनी दूरी बना लूंगा, उतनी ही वो महफूज़ रहेगी।”
जॉन ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसका दिल भी भारी था। मीरा, जो अब तक सिर्फ एक आम सी मासूम लड़की थी, अब रणविजय के सबसे नर्म हिस्से को छू चुकी थी — और अब वही सबसे ज्यादा चोट खा रही थी।
रणविजय ने मीटिंग खत्म की। उसकी सारी टीम अब लाइब्रेरी से जा चुकी थी, बस जॉन गेट के पास खड़ा था।
मीरा अपने कमरे से नीचे आई। उसके आते ही Ms. Rosy ने उसे गले लगा लिया। मीरा भी Ms. Rosy से लिपटकर रो दी।
रणविजय लाइब्रेरी में बैठकर मीरा की सिसकियां सुन रहा था। उसका दिल टूट रहा था, पर वो ये सब सह रहा था सिर्फ मीरा के लिए।
मीरा ने Ms. Rosy से विदा ली और लाइब्रेरी की तरफ देखा। उसे पता था रणविजय लाइब्रेरी ही है। मीरा का दिल टूट चुका था। वो मन ही मन सोच रही थी "क्या मैं रणविजय की ज़िंदगी में उन लड़कियों की तरह थी जिन्हें रणविजय सिर्फ शौक के लिए लाता था जैसा बाकी दुनिया कहती है।"
मीरा ने अपने आंसू पूछे और वो रणविजय के घर से बाहर निकल गई, बाहर रॉकी गाड़ी में उसका इंतेज़ार कर रहा था। मीरा गाड़ी में बैठ गई और गाड़ी चल दी।
रणविजय लाइब्रेरी की खिड़की में से मीरा को जाते हुए देख रहा था, खुद से दूर।
रणविजय की आंखों से एक आंसू गिरा, जो रणविजय की मज़बूरी की दास्तां कह गया।
मीरा hospital आ गई थी। शिवा का इलाज पूरा हो रहा था, लेकिन मीरा की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। हर बीतते पल के साथ उसके चेहरे से वो रौनक गायब होती जा रही थी जो रणविजय के आने से आई थी।
3 दिन मीरा शिवा के साथ हॉस्पिटल में रही। रणविजय के कहने पर Rocky भी 3 दिन hospital मीरा की सुरक्षा के लिए तैनात था। मीरा ने कई बार रॉकी को जाने को कहा पर रणविजय का कहा रॉकी ताल नहीं सकता था। मीरा को अब रणविजय से related कोई भी चीज या याद अपने पास चाहिए थी।
वो रणविजय की ज़िंदगी में बाकी लड़कियों की तरह ही थी।
शिवा पूरी तरह से ठीक हो गया था, अब मीरा ओर शिवा के घर जाने का वक्त आ गया था। रॉकी ने शिवा और मीरा को घर छोड़ने के लिए गाड़ी में बैठाया।
वो उसी कार में बैठी रही, खिड़की से बाहर देखते हुए। दिल में सिर्फ एक ही सवाल — "रणविजय ने ऐसा क्यों किया?"
शिवा ने जब मीरा के चेहरे पर थकान देखी तो पूछा, “दीदी... सब ठीक है ना?”
मीरा मुस्कुराई, लेकिन वो मुस्कान बस एक मुखौटा थी, जिससे वो अपने टूटे हुए दिल को छुपा रही थी।
“हाँ, सब ठीक है… बस थोड़ी थक गई हूँ,” उसने धीरे से कहा।
मीरा अब अपने घर आ गई थी। वो घर जहां उसे कभी वो सुकून नहीं मिल सकता था जो उसे रणविजय के पास मिला........