गाँव में नकाब पहने उस लड़की की चर्चा चारों ओर गाँव में नकाब पहने उस रहस्यमयी लड़की की चर्चा अब आम हो गई थी।
कौन थी वह? कहाँ से आई थी? कोई नहीं जानता था।
लेकिन सबने एक बात महसूस की थी — जहाँ भी जरूरत होती, वह वहाँ पहुँच जाती थी।
कभी बीमारों को दवा पहुँचाती, कभी टूटे मकानों की मरम्मत कराती, तो कभी गरीब बच्चों को खाना खिलाती।
लोग उसे देखकर हैरान होते थे।
"कौन है ये? किसकी बेटी है?"
"कहीं वही शांति तो नहीं?"
फुसफुसाहटें गाँव के हर कोने में गूंजने लगी थीं।
लेकिन शांति तो महीनों पहले गायब हो गई थी।
और वह भी ऐसी लड़की जिसे कोई ढूंढ़ना नहीं चाहता था।
गाँव के लिए शांति का होना या न होना — बस एक बात बनकर रह गई थी।
अब जो लड़की आई थी, वह नकाब के पीछे अपना चेहरा छुपाए रहती थी।
उसकी आँखों में भी अजीब सी चमक थी — एक अनकही पीड़ा, एक अदृश्य शक्ति।
एक रात अर्जुन, जो गाँव के सबसे निडर लड़कों में गिना जाता था,
अपने दोस्तों से शर्त लगाकर नकाब वाली लड़की का पीछा करने निकल पड़ा।
चाँदनी रात थी। पूरा गाँव सो चुका था।
अर्जुन दबे पाँव उस लड़की के पीछे-पीछे चला।
लड़की सीधे जंगल की तरफ बढ़ रही थी — वही घना जंगल जहाँ गाँव वाले दिन में भी जाने से डरते थे।
अर्जुन का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, लेकिन उसकी जिज्ञासा डर से ज्यादा थी।
कुछ दूर चलने के बाद लड़की रुक गई — एक पुराने, भूले-बिसरे कुएं के पास।
अर्जुन एक पेड़ के पीछे छुपकर देखने लगा।
नकाब वाली लड़की कुएं के पास झुकी, कुछ बुदबुदाई।
तभी अचानक — कुएं से नीली रोशनी निकलने लगी!
जैसे पानी की सतह के नीचे कोई चीज़ चमक रही हो।
ठंडी हवा के झोंके से अर्जुन का बदन काँप उठा।
उसने अपने कानों में एक धीमी सी फुसफुसाहट सुनी —
जैसे कोई कुएं से पुकार रहा हो... या फिर चेतावनी दे रहा हो।
पर अर्जुन वहीं चुपचाप जमा रहा।
वह जानता था, अगर अभी कोई हलचल की, तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा।
और उसने मन ही मन फैसला किया —
जो कुछ उसने देखा, वह किसी को नहीं बताएगा।
न गाँव वालों को, न अपने दोस्तों को।
अगले दिन गाँव में एक नई खबर फैल गई।
"किसी ने रात को जंगल में अजीब सी रोशनी देखी!"
"जरूर कोई आत्मा है... या फिर कोई टोना-टोटका!"
लोग डरने लगे थे।
बुजुर्गों ने टोने-टोटके के निवारण के लिए हवन करवाने की सोची।
कुछ ने सोचा गाँव छोड़ने में ही भलाई है।
लेकिन उसी समय, नकाब वाली लड़की एक बार फिर प्रकट हुई —
और इस बार उसने एक बूढ़ी औरत की जान बचाई, जो खाट पर अंतिम साँसें गिन रही थी।
लोग अब और उलझन में थे —
"अगर ये आत्मा होती, तो मदद क्यों करती?"
"अगर ये कोई बुरी ताकत होती, तो गाँववालों का भला क्यों करती?"
अब गाँव में दो धड़े बन गए थे —
एक जो उसे फरिश्ता मानते थे, और दूसरा जो उसे खतरा समझते थे।
पर सच्चाई कोई नहीं जानता था।
अर्जुन भी चुप था, क्योंकि वह जानता था कि सच कहने पर लोग उसे झूठा या पागल कहेंगे।
कुएं के आसपास की घटनाएँ अब और अजीब होने लगी थीं।
रात को कभी-कभी किसी लड़की की धीमी हँसी गूंजती थी,
तो कभी कुएं से नीली रौशनी निकलती थी और फिर अचानक गायब हो जाती थी।
कभी किसी को सपने में कोई अजनबी चेहरा दिखता था, जो मदद का हाथ बढ़ा रहा था।
गाँव वालों का डर अब आदत में बदलने लगा था।
जैसे सब जानते थे कि कुछ तो रहस्य है, पर कोई उसे छेड़ना नहीं चाहता था।
एक दिन सुबह गाँव के चौपाल पर एक लकड़ी की पेटी मिली।
उस पर खुरच कर लिखा था —
"सच्चाई वह नहीं जो दिखाई देती है, सच्चाई वह है जो समय पर प्रकट होती है।"
सबने पेटी को खोला — पर अंदर सिर्फ एक दर्पण था।
एक साधारण सा दर्पण, लेकिन जब कोई उसमें देखता, तो अपनी आँखों के नीचे हल्की नीली चमक देखता था — जैसे किसी ने उसे छूकर आशीर्वाद दिया हो।
अब गाँव में एक नई फुसफुसाहट फैल रही थी —
"शायद वह कोई आम लड़की नहीं थी..."
"शायद वह अब इंसान से ज्यादा कुछ बन गई है..."
"शायद कुएं ने उसे बदल दिया है।"
कुएं का रहस्य अब और भी गहरा गया था।
शांति थी या कोई और?
यह सवाल अब भी हवा में तैर रहा था।
लेकिन एक बात साफ थी —
अब गाँव और उसका भाग्य, दोनों हमेशा के लिए बदल चुके थे।
(भाग 2 समाप्त)