The Secret of the Well - 3 in Hindi Thriller by Dhananjay Surate books and stories PDF | कुंए का रहस्य - भाग 3

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कुंए का रहस्य - भाग 3

"गांव बंटने लगा था... लेकिन रहस्य अब भी एक था।"

गांव में पिछले कुछ दिनों से कुछ ऐसा घट रहा था जिसे कोई समझ नहीं पा रहा था। कुएं से निकलती नीली रोशनी अब रोज़ दिखने लगी थी। कई बार दिन में भी — हल्की सी चमक, जैसे पानी के नीचे कुछ जिंदा हो।
एक दिन, गांव के सबसे बूढ़े व्यक्ति भोलू काका का पोता खेलते-खेलते लापता हो गया। वो कुएं के पास खेल रहा था, लेकिन फिर मानो हवा में घुल गया। गांव में अफरा-तफरी मच गई। कुछ लोग कहने लगे, "यही नकाब वाली लड़की कुछ कर रही है। पहले तो देवी समझा, अब तो डर लगने लगा है।"
पर कुछ लोग अब भी उसी लड़की की तरफ थे — खासकर जिनकी मदद वो कर चुकी थी। उसने किसी की फसल बचाई थी, किसी के बीमार बच्चे को दवा दी थी। लेकिन उसने आज तक कभी अपना चेहरा नहीं दिखाया।
अर्जुन, जो कुएं वाली रात का राज़ जानता था, अंदर से टूट रहा था। वो चाहता था कि किसी से बात करे, कुछ बोले... पर शांति की आंखें हर बार उसे रोक देती थीं — हाँ, वही आंखें जो नकाब वाली लड़की की आंखों से मिलती थीं। लेकिन क्या ये सिर्फ भ्रम था?
उस रात अर्जुन को एक अजीब सपना आया। वह अंधेरे जंगल में था, और सामने वही नकाब वाली लड़की खड़ी थी। वह बोल रही थी —
"अगर तुमने सच बताया, तो सब खत्म हो जाएगा... ना मैं रहूंगी, ना ये गांव।"
अर्जुन पसीने-पसीने होकर जागा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो किसी और के लिए डर रहा है, या खुद के लिए।

अगली सुबह, गांव में एक और घटना ने सबका ध्यान खींचा। रामधारी, जो पुरानी हवेली का चौकीदार था, दौड़ते हुए आया, “मंदिर के पीछे वाली गुफा में कुछ मिला है! बहुत पुराना!”
लोग दौड़ते हुए वहाँ पहुंचे। वहाँ एक पत्थर की स्लैब थी, जिस पर कुछ पुरानी लिपि में लिखा था। किसी ने पुकारा, “पंडित जी को बुलाओ!”
पंडित जी ने पढ़ा और चौंक गए, “ये... ये तो चेतावनी है। लिखा है – ‘यह कुआं जल नहीं, समय है। इसका द्वार खोलोगे, तो समय अपने हिसाब से तुम्हें निगलेगा।’”

गांव में सन्नाटा छा गया।

उसी शाम, एक अजनबी गांव में आया — एक बूढ़ा साधु, जिसे कुछ लोग "त्रिलोक बाबा" कहते थे। उसने गांव के बीचोंबीच खड़े होकर कहा:
“तुम सब जिस लड़की को पूज रहे हो, वो देवी नहीं, चेतावनी है। वो रक्षक भी हो सकती है, और विनाशक भी। यह कुआं एक दरवाज़ा है — और वो दरवाज़ा खुल चुका है।”
कुछ लोग डर के मारे घरों में बंद हो गए, तो कुछ साधु की बात को बकवास समझकर हँसने लगे।

गांव अब दो हिस्सों में बंट चुका था —
एक वो जो नकाब वाली लड़की को आशा मानते थे,
और दूसरा वो जो उसे अंधेरा कहते थे।
अर्जुन के लिए ये सबसे कठिन समय था। वह जानता था कि जवाब उसी कुएं में छुपा है।
उसने ठान लिया कि अगली सुबह वो फिर से कुएं के पास जाएगा — चाहे जो हो।
लेकिन उससे पहले रात को कुछ हुआ।
अर्जुन के दरवाज़े पर दस्तक हुई। जब खोला, तो ज़मीन पर कुछ रखा था — एक पुराना सा कागज़ और एक चूड़ी।
कागज़ पर लिखा था:
"अगर तुम सच तक पहुँचने को तैयार हो, तो उस आइने में झाँको जो तुम्हें मिला था। वो आइना सच दिखाता है — लेकिन हर कोई उसका सामना नहीं कर सकता।"

अर्जुन भागा उस संदूक की ओर जो पहले मिली थी। उसने धीरे से आइना उठाया और उसमें देखा...
...और उसकी आंखें फटी रह गईं।
आइने में कोई चेहरा नहीं था — बल्कि उसने खुद को कुएं में खड़ा देखा, और पीछे नकाब वाली लड़की... बिना नकाब के।
उसका चेहरा कुछ पल के लिए साफ दिखा — और वो चेहरा... बहुत जाना-पहचाना था।
अर्जुन की आंखें भर आईं।
कहानी अब उस मोड़ पर पहुंच चुकी थी जहां सच सामने था, पर ज़ुबान बंद थी।
क्या अर्जुन अब सबको बताएगा?
क्या शांति ही नकाब वाली है?
और अगर है... तो वो अब क्या चाहती है?

भाग 4 में जारी...