दक्षिण भारत के एक छोटे से गांव में एक लड़की रहती थी — शांति। उसका नाम तो शांति था, लेकिन उसकी ज़िंदगी हर उस तूफान से भरी थी जो इंसान को अंदर से तोड़ देता है। जन्म से ही उसका चेहरा सामान्य नहीं था। गांववालों की नजर में वो "मनहूस", "डायन", और न जाने क्या-क्या थी।
शांति के माता-पिता का देहांत तब हो गया था जब वो सिर्फ तीन साल की थी। उसके बाद से ही वो गांव के एक किनारे, टूटी-फूटी झोपड़ी में अकेले रहने लगी थी। किसी ने उसे अपनाया नहीं, न प्यार दिया, न इंसान समझा। स्कूल जाने का सपना भी कभी नहीं देखा उसने, क्योंकि गांव के लोग उसे वहां भी नहीं घुसने देते थे।
हर दिन लोग उसे चिढ़ाते, उसका मजाक उड़ाते। बच्चे उसका चेहरा देखकर रोने लगते, और बड़े उसे देख कर रास्ता बदल लेते। लेकिन शांति फिर भी ज़िंदा थी, क्योंकि शायद कहीं न कहीं उसे उम्मीद थी कि कोई तो होगा जो उसे समझेगा। लेकिन वो दिन कभी नहीं आया।
एक शाम जब गांव के एक बच्चे ने उसके झोपड़े में पत्थर फेंक कर चिल्लाया, "भूतनी जा मर कहीं जाकर!", तब उसके अंदर की आखिरी उम्मीद भी मर गई। उस रात शांति ने ठान लिया कि अब उसे इस दुनिया से विदा ले लेनी है।
गांव से तीन किलोमीटर दूर एक पुराना, वीरान जंगल था। लोग कहते थे कि वहां एक शापित कुआं है। वर्षों पहले कुछ लोग वहां गए थे और फिर कभी वापस नहीं आए। गांववालों का मानना था कि उस कुएं में आत्माएं रहती हैं जो किसी को भी ज़िंदा नहीं छोड़तीं।
शांति को अब किसी डर की परवाह नहीं थी। वो उसी कुएं के पास जाने निकल पड़ी। रास्ता अंधेरा था, झाड़ियों से भरा, लेकिन उसका दिल उससे भी ज्यादा अंधेरा हो चला था।
जैसे ही वो कुएं के पास पहुँची, ठंडी हवा का एक झोंका उसके चेहरे से टकराया। उसने अपनी आंखें बंद कीं, और कहा, “अब और नहीं सहा जाता… बस अब ख़त्म…”
लेकिन तभी… कुएं से एक नीली रोशनी उठी। हल्की-हल्की हवा में कुछ मंत्र-से शब्द गूंजने लगे। शांति चौंक गई। उसके पैर कांपने लगे लेकिन वो जमी रही।
फिर उसे एक आवाज़ सुनाई दी — "शांति…"
वो आवाज़ किसी इंसान की नहीं थी, लेकिन डरावनी भी नहीं। वो शांत थी, लेकिन गहराई लिए हुए। जैसे कोई बहुत दूर से उसके दर्द को समझ रहा हो।
"तू जो यहां आई है, वो मरने नहीं… जीने के लिए है। तू जिस दुनिया से भाग रही है, वो तुझे तोड़ नहीं सकती। क्योंकि तू उनके जैसी नहीं है। तू अलग है — और यही तेरा वरदान है।"
शांति ने आंखें खोलीं। कुएं की रोशनी अब तेज हो गई थी, और उस रोशनी में उसे अपने बचपन के कुछ पल दिखे — जब मां ने उसे गले लगाया था, जब पापा ने उसे झूले पर झुलाया था। उसे याद आया कि कभी वो भी मुस्कुराया करती थी।
उसके आंसू बहने लगे। वो अब कुएं में कूदना नहीं चाहती थी। वो उठना चाहती थी, जीना चाहती थी, और अपने जैसे औरों के लिए रोशनी बनना चाहती थी।
अचानक कुएं की रोशनी वापस अंदर चली गई। लेकिन शांति के अंदर एक नई उम्मीद की लौ जल गई थी। उसने आकाश की ओर देखा और धीरे से मुस्कुराई।
उस रात शांति वापस अपने झोपड़े में नहीं लौटी। अगली सुबह गांववालों ने देखा कि उसके घर का दरवाज़ा खुला था, लेकिन शांति कहीं नहीं थी।
लोगों ने समझा कि वो कुएं में कूद गई। लेकिन कुछ दिन बाद, पड़ोस के गांव में लोगों ने एक लड़की को देखा जो मास्क पहनकर लोगों की सेवा कर रही थी — ज़ख्मी जानवरों का इलाज, बेसहारा बच्चों को खाना, और अकेले बुजुर्गों का सहारा बन रही थी।
किसी ने उसका नाम नहीं पूछा, लेकिन सब उसे एक ही नाम से पुकारते थे —
"दीदी, जो अंधेरे में भी रौशनी की तरह आई।"