Mera Rakshak - 8 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | मेरा रक्षक - भाग 8

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मेरा रक्षक - भाग 8

 8. सपने


 मीरा को नींद नहीं आ रही थी। उसे शिवा की याद सता रही थी। उसने शिवा से फोन पर बात कर ली थी पर फिर भी उसे शिवा के पास जाने की इच्छा थी।

मीरा अपने कमरे से उठकर, बाहर garden में चली गई। वहां ठंडी हवा उसके गालों को छू रही थी।  मीरा आँखें बंद करके इन हवाओं को महसूस कर ही रही थी तभी कोई उसके पास आकर बैठ गया और उसे खबर भी नहीं थी।


रणविजय मीरा को बस देखे जा रहा था। मीरा के उड़ते बाल उसे  किसी जाल के जैसे लग रहे थे जिनमें  वो अपनी मर्ज़ी के बिना फंसता जा रहा था।


मीरा की आंख के  कोने से एक आंसू गिरा। रणविजय को पहली बार दिल में दर्द का अनुभव हुआ। रणविजय ने बहुत लोगों की चीखें सुनी, आंसू देखे पर  उसका दिल कभी नहीं पसीजा। पर आज मीरा के एक आंसू ने रणविजय के दिल में एक दर्द की सिरहन पैदा कर दी।
उससे रहा नहीं गया.... 


"क्या हुआ मीरा? तुम रो क्यूं रही हो।"

मीरा ने आंखें खोली और देखा रणविजय बहुत ही परेशान नजरों से उसे देख रहा था। उसने अपने आसूं पोछे और बोली


"मैं कहां रो रही? वो तो ये हवा इतनी तेज चल रही कि आंखों से पानी आने लगा। आप कब आए, आपने अपने आने की आहट भी नहीं की।"


रणविजय जनता था ये हवा से बहने वाला आंखों का पानी नहीं था। बल्कि ये अनकहे जज़्बात थे जो आंखों से बह रहे थे। 

"आप यहां? आपको नींद नहीं आ रही क्या? मीरा ने पूछा।


"नींद तो तुम्हें भी नहीं आ रही।"


"कल शिवा का ऑपरेशन है तो उसी बारे में सोच रही थी, बस इसलिए नींद नहीं आ रही थी।"


"शिवा का ऑपरेशन अच्छे से हो जाएगा। मैंने इस country के best doctors की टीम से बात कर ली है वो कल सुबह सब संभाल लेंगे। तुम आराम से सो जाओ।" मीरा को समझ नहीं आ रहा था वो कैसे रणविजय का शुक्रिया अदा करे। 


 "आपने पहले ही रुपए दे दिए अब आप और एहसान मत कीजिए मुझपर, मैं चुका नहीं पाऊंगी।"

"मीरा ये एहसान नहीं था। ये ................ये तुम्हारे भाई के लिए था। तुम बस उसके ठीक होने पर ध्यान दो। अब जाओ सो जाओ, कल सुबह शिवा के पास जाना है न।"


"आपको नींद क्यों नहीं आ रही थी।"मीरा ने पूछा।


"नींदों को मुझसे दुश्मनी है मीरा। मैंने कहा था न मेरे बहुत दुश्मन है उनमें से एक ये नींद भी है।" रणविजय ने  ये कहकर मेरा के सवाल को टाल दिया। असल में रणविजय को बचपन से ही मां के जाने के बाद से बुरे सपने आते थे जो उसे सोने नहीं देते थे।


" Good night मीरा"

"Good night रणविजय"

रणविजय ओर मीरा सोने जा चुके थे।  


"मां!!!!!!!!मां!!!!!!!! नहीं छोड़ दो मेरी मां को!!!!!!! मां!!!!!...........

मीरा ने रणविजय की आवाज सुनी वो रणविजय के कमरे की तरफ भागी। रणविजय के कमरे के बाहर Ms. Rosy और जॉन दोनों खड़े थे पर दोनों में से कोई अंदर नहीं जा रहा था
मीरा ने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गई। जॉन और Ms. rosy दोनों में से किसी ने मीरा को अंदर जाने से नहीं रोका। क्योंकि दोनों जानते थे कि अब मीरा ही है जो रणविजय को संभाल सकती है।


"रणविजय, रणविजय रणविजय....... उठो..... रणविजय उठो.... "


रणविजय ने देखा मीरा परेशान नजरों से उसे देख रही है। रणविजय पसीने से लथपथ था।  रणविजय की सांसे फूल रही थीं पर मीरा को देखते ही उसको कुछ हल्का सा महसूस होने लगा था।  उसने मीरा को गले लगा लिया जैसे सिर्फ मीरा ही है जो उसे इन सपनों की दुनिया से दूर ले जा सकती है।


"रणविजय मैं यहीं हूं। तुम बिल्कुल ठीक हो। सब ठीक है। कुछ नहीं हुआ है, बस बुरा सपना था जो तुमने देखा। सब ठीक है।
मीरा रणविजय को समझा रही थी। मीरा समझ नहीं पा रही थी ऐसा क्या ही सपना आया होगा जो एक माफिया को भी डरा दे...........