कुछ तो बदल रहा है
रणविजय की नींद टूटी, लेकिन वो अपनी आँखें कुछ सेकंड तक बंद रखे रहा। उसके जिस्म पर अभी भी मीरा की बाँहें थीं…उसके सीने से सटी मीरा की गर्म साँसे, उसकी गर्दन को छू रही थीं।
धीरे-धीरे उसने आँखें खोलीं…हल्की-सी रौशनी पर्दे से छनकर अंदर आ रही थी, और उसकी पहली नज़र गई — मीरा पर।
मीरा ठीक उसके पास थी। इतनी पास कि उसकी एक-एक साँस रणविजय की त्वचा पर उतर रही थी। उसकी लटें कुछ उलझी हुई थीं, माथे पर एक बेक़रार सी मासूमियत थी… और होंठों पर हल्की-सी शांति। उसे ये सब एक सपने जैसा लग रहा था।
रणविजय उठकर बैठ सकता था, लेकिन नहीं बैठा। वो बस एकटक मीरा को देखता रहा — जैसे उसकी ज़िंदगी में पहली बार कुछ ऐसा था जिसे वो खोना नहीं चाहता था। वो लड़की, जो उसके लिए बस एक मासूम चेहरा थी… जो अब एक एहसास बन चुकी थी। एक ऐसा एहसास जिसे उसने कभी महसूस नहीं किया था।
"तुम कैसे हो इतनी मासूम…" वो मन ही मन बुदबुदाया।
"और क्यों लगता है जैसे मैं तुमसे पहले भी मिल चुका हूँ… कई बार…"उसने अपनी उंगलियाँ मीरा के माथे से उलझी हुई लट को हटाने के लिए बढ़ाई, लेकिन बीच में ही रुक गया —डर था… कहीं ये सपना ना टूट जाए।
उसने गहरी साँस ली…मीरा का चेहरा उसके दिल के बहुत करीब था, लेकिन फासले अभी भी थे।
रणविजय का दिल भारी हो रहा था —क्योंकि वो जानता था कि उसके हाथों में जो नींद से भरी लड़की थी, वो उसकी दुनिया को उल्टा-पलटा सकती थी…या शायद पहली बार उसे "दुनिया" का मतलब समझा सकती थी।
उसने हल्के से अपने हाथ से मीरा की हथेली को छुआ —नाज़ुक, ठंडी, लेकिन उस एक छुअन में इतना यकीन था, कि रणविजय की आँखें नम हो आईं। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो इस तरह किसी को देखेगा —ना डर के साथ, ना घमंड के साथ —बस एक बेबस चाहत के साथ।
मीरा अब भी गहरी नींद में थी , उसका सिर रणविजय की छाती से थोड़ा नीचे सरक गया था…और वो उसके दिल की धड़कनों से अंजान, उसे थामे सोई हुई थी।
रणविजय ने खुद को उस पल में खो दिया था —उसे लगा जैसे दुनिया की सारी लड़ाइयाँ, सारे जख्म, सारे बदले…बस इस एक लड़की की बाँहों में आकर शांत हो गए थे।
"तुम जानती नहीं मीरा…तुम्हारी खामोशी ने मुझे तोड़ भी दिया, और जोड़ भी दिया…"
उसकी आवाज़ धीमी थी, आँखें भारी, लेकिन उसमें जो सच्चाई थी —वो किसी कसम से कम नहीं लग रही थी।उसने अब धीरे से मीरा के माथे पर अपने होठों को रखा…बहुत धीरे, बहुत संजीदगी से।
रणविजय को मीरा इतनी नाज़ुक लग रही थी कि उसे छूने से भी वो डर रहा था कहीं उसके छूते ही वो टूट न जाए
"तुम मेरी नहीं हो शायद अभी... पर मैं… शायद अब से तुम्हारा ही हूँ…"
फिर वो चुपचाप उसकी ओर देखता रहा —उन आँखों में वो सुकून था, जिसे रणविजय ने बरसों से सिर्फ किताबों और झूठी बातों में पढ़ा था…पर आज, उसे अपनी साँसों में महसूस किया था — मीरा की नींद जैसी सच्चाई में।
रणविजय अब भी उसकी ओर देख रहा था, जैसे वक़्त की रफ्तार थम गई हो। उसके चेहरे पर अब कोई सख्ती नहीं थी… बस एक अजीब-सी बेचैनी थी —जैसे कोई सवाल अंदर ही अंदर उसे तोड़ रहा हो।
"तुम जाग जाओगी तो क्या मैं फिर से वही बन जाऊँगा…?"
"या तुम्हारा होना मुझे सच में बदल देगा…?"
उसने अपनी उंगलियाँ मीरा की हथेली से धीरे-धीरे घुमाते हुए उसके हाथ को थाम लिया —बिलकुल वैसे जैसे कोई टूटा हुआ इंसान उम्मीद थाम लेता है।
मीरा की पलकों में अब हल्की सी हरकत होने लगी थी…वो अब करवट बदल रही थी, और रणविजय की छाती पर से उसके होंठ गुजर गए।
रणविजय की साँसें रुक-सी गईं।
एक पल को लगा —
"अगर ये नींद का हिस्सा है, तो मैं कभी नहीं जागना चाहता…"
उसने अपनी पकड़ ज़रा और मजबूत कर ली…ना मीरा को जगा रहा था, ना खुद को संभाल रहा था —बस उस पल को जी रहा था, जितनी देर भी वो पल ठहरा था।
रणविजय अब पहली बार 'रणविजय' नहीं लग रहा था,
बस एक ऐसा लड़का था जो पहली बार किसी को खोने से डर रहा था,बिना उसे कभी पूरी तरह पाया भी नहीं।
"तुम बस यूँ ही मेरी ज़िन्दगी में बनी रहना मीरा…"
"मैं अपने सारे गुनाह तुम्हारे सीने से लगाकर भुला दूँगा…"
और फिर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, उस खामोशी को सीने में भरते हुए —जिसमें एक माफ़ी भी थी, मोहब्बत भी, और मजबूरी भी।